MGNREGA Row / मनरेगा पर केंद्र-बंगाल में तनातनी: ममता ने सरेआम फाड़ी नए आदेश की कॉपी, बताया 'अपमानजनक'

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र के मनरेगा से जुड़े नए आदेश को 'बेकार और अपमानजनक' बताते हुए सरेआम फाड़ दिया. केंद्र ने तीन साल के निलंबन के बाद कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्देश पर योजना बहाल की, लेकिन कई शर्तें लगाईं. ममता ने कहा कि बंगाल 'दिल्ली की खैरात' नहीं मांगेगा और अपनी वर्क स्कीम चलाएगा.

पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर केंद्र और राज्य सरकार के बीच तीखी तनातनी देखने को मिल रही है और इस बार विवाद का केंद्र महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कूचबिहार में एक जनसभा के दौरान केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा के तहत. जारी किए गए नए नियमों वाले नोट को सरेआम फाड़ दिया, इसे 'बेकार और अपमानजनक' करार दिया. उनका यह कड़ा रुख ऐसे समय में सामने आया है जब राज्य में अगले. साल विधानसभा चुनाव होने हैं और राजनीतिक माहौल पहले से ही गरमाया हुआ है.

मनरेगा निलंबन और बहाली का घटनाक्रम

केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल में ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा के क्रियान्वयन को लगभग तीन साल पहले निलंबित कर दिया था और यह निलंबन 9 मार्च, 2022 से प्रभावी हुआ था, जब केंद्र सरकार ने मनरेगा, 2005 की धारा 27 का हवाला देते हुए 'केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन नहीं करने' के कारण राज्य को फंड जारी करना बंद कर दिया था. इस निलंबन के बाद से राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन पर गहरा असर पड़ा था. हालांकि, कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्देशों के बाद इस योजना को बहाल करने का रास्ता खुला. सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर को केंद्र की स्पेशल लीव पिटीशन को खारिज कर दिया था, जिसमें हाई कोर्ट के 18 जून के आदेश को चुनौती दी गई थी. हाई कोर्ट ने केंद्र को बंगाल में मनरेगा को 1 अगस्त, 2025 से लागू. करने और 'खास शर्तें' लगाने का फैसला केंद्र पर छोड़ने का निर्देश दिया था. इसी के अनुपालन में, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 6 दिसंबर को मनरेगा को तत्काल प्रभाव से फिर. से शुरू करने का आदेश जारी किया, लेकिन यह बहाली कई नई और सख्त शर्तों के साथ आई है.

केंद्र द्वारा लगाई गई नई शर्तें

केंद्र सरकार ने मनरेगा योजना को पश्चिम बंगाल में फिर से शुरू करने के लिए कई नई और कड़ी शर्तें लगाई हैं, जिन पर राज्य सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई है. इन शर्तों में सबसे प्रमुख यह है कि राज्य को सभी मजदूरों का 100% ई-केवाईसी (e-KYC) पूरा करना होगा, और मस्टर रोल अनिवार्य ई-केवाईसी के बाद ही जारी किए जाएंगे. यह कदम योजना में पारदर्शिता और लाभार्थियों की सटीक पहचान सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया प्रतीत होता है. इसके अलावा, केंद्र ने लेबर बजट की मंजूरी के संबंध में भी एक नई शर्त लगाई है. अब बंगाल के लिए लेबर बजट तिमाही आधार पर मंजूर किया जाएगा, जबकि अमूमन इसे पूरे साल के लिए मंजूर किया जाता है. इस शर्त के अनुसार, परफॉर्मेंस और नई शर्तों के पालन के आधार पर ही तिमाही आधार पर लेबर बजट जारी किया जाएगा. यह राज्य के लिए योजना के क्रियान्वयन में एक बड़ी चुनौती पेश कर सकता है, क्योंकि उन्हें हर तिमाही में अपनी प्रगति और अनुपालन को साबित करना होगा.

परियोजनाओं पर भी सख्त नियम

केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों पर भी सख्त नियम लागू किए हैं. नए आदेश के अनुसार, 20 लाख रुपये से ज्यादा अनुमानित. लागत वाले किसी भी काम की इजाजत नहीं दी जाएगी. यह सीमा छोटे और मध्यम स्तर के कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए लगाई गई है. साथ ही, सभी सामुदायिक कामों के लिए डीपीआर (DPR - Detailed Project Report) बनाना अनिवार्य होगा. इस डीपीआर को जिला मजिस्ट्रेट (DM) और जिला कार्यक्रम समन्वयक (DPC) द्वारा 20 लाख रुपये तक की कीमत के लिए मंजूर किया जाएगा. इसके अलावा, सभी अनुमान अनिवार्य रूप से 'सिक्योर सॉफ्ट' (SECURE Soft) नामक सॉफ्टवेयर के जरिए बनाए जाएंगे. ये सभी शर्तें योजना के कार्यान्वयन में अधिक जवाबदेही, पारदर्शिता और दक्षता लाने के उद्देश्य से लागू की गई हैं, लेकिन राज्य सरकार इन्हें अपने ऊपर एक अतिरिक्त बोझ और अपमानजनक मान रही है.

ममता बनर्जी का तीखा विरोध

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र की इन शर्तों को 'बेकार और अपमानजनक' बताते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कूचबिहार में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र की ओर से उन्हें एक पत्र मिला. था, जिसमें कहा गया था कि 6 दिसंबर से उन्हें तिमाही लेबर बजट जमा करना होगा और ट्रेनिंग देनी होगी. ममता ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि दिसंबर चल रहा है और अगले साल की शुरुआत में राज्य में चुनाव होने हैं, ऐसे में लोगों को कब ट्रेनिंग देंगे और कब नौकरियां देंगे और उन्होंने इस कागज के टुकड़े को 'बेकार' बताते हुए फाड़ दिया और स्पष्ट किया कि बंगाल 'दिल्ली की खैरात' नहीं मांगेगा. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार 'कर्मश्री योजना' के तहत 70 दिन का काम दे रही है, जिसे अब बढ़ाकर 100 दिन किया जाएगा. ममता ने दृढ़ता से कहा, 'हमें आपकी दया नहीं चाहिए.

हम आपसे भीख नहीं मांग रहे और इसीलिए मैं यह नोट फाड़ रही हूं. मुझे लगता है कि यह हमारे लिए अपमानजनक है. ' उन्होंने यह भी दोहराया कि 'बंगाल कभी झुका नहीं है और न ही आगे कभी झुकेगा. बंगाल जानता है कि सिर उठाकर कैसे चलना है. मनरेगा को लेकर केंद्र और बंगाल सरकार के बीच यह तनातनी राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक माहौल को और गरमा रही है और ममता बनर्जी का यह कदम केंद्र सरकार के प्रति उनके विरोध और राज्य की स्वायत्तता पर जोर देने का एक स्पष्ट संकेत है.

केंद्र सरकार का तर्क है कि ये शर्तें योजना में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं, जबकि राज्य सरकार इन्हें अपने अधिकारों पर अतिक्रमण और राजनीतिक हस्तक्षेप मान रही है. यह विवाद ग्रामीण रोजगार और विकास के मुद्दे को चुनावी बहस के केंद्र में ला सकता है. ममता बनर्जी अपनी 'कर्मश्री योजना' को मनरेगा के विकल्प के रूप में पेश कर रही हैं, जो केंद्र. पर निर्भरता कम करने और राज्य के अपने संसाधनों से रोजगार प्रदान करने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. यह देखना दिलचस्प होगा कि इस विवाद का आगामी चुनावों पर क्या असर पड़ता है और ग्रामीण आबादी इस पर कैसे प्रतिक्रिया देती है.