2021 में राजस्थान विधानसभा उप चुनाव / राजस्थान में बड़ा खेल करने की तैयारी में जुटी राकांपा, गुजरात के रास्ते प्रवेश कर सकती है यह सुनामी

Zoom News : Dec 19, 2020, 09:47 AM
जयपुर | राजस्थान की राजनीति में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बड़ा खेल करने की तैयारियों में जुटी है। गुजरात के रास्ते यह राजनीतिक सुनामी प्रवेश करने की कोशिशों में जुटी है। पार्टी की रणनीति कैसे और क्या होगी, इस पर एनसीपी के सिपहसालार फिलहाल मौन है, लेकिन उनकी गतिविधियों से स्पष्ट हो रहा है कि राजस्थान में  अब वैकल्पिक राजनीति का अवसर तलाश रहे हैं। बीजेपी-कांग्रेस का प्रदेश में बड़ा वोट बैंक है और बसपा इसमें किंचित घुसपैठ करती रही है। परन्तु बसपा के जीते उम्मीदवार अपनी ही पार्टियों को धोखा देते रहे हैं। यहां तक कि उसके जीते हुए विधायक बसपा संगठन की पोल यह कहकर खोल चुके हैं कि यहां तो पैसे लेकर टिकट दिए जाते हैं। पड़ोसी राज्य गुजरात में एनसीपी अब पैर जमा चुकी है और 2022 में होने वाले चुनावों में खम ठोकने के लिए तैयार है। परन्तु इससे पहले 2021 में राजस्थान विधानसभा उप चुनाव को वह प्री बोर्ड एक्जाम की तरह अपने आपको परखने का मन बना चुकी है। देखने वाली बात यह है कि राजस्थान में यह कैसे अपना प्रभाव व्यापक कर पाती है।


प्रदेश में राजनीतिक विकल्प तलाश रहे लोगों का एक बड़ा धड़ा तो है, लेकिन उनके पास ज्यादा अवसर नहीं है। ऐसे में शरद पवार की अध्यक्षता वाली एनसीपी जो कि बीते 22 सालों से महाराष्ट्र के साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में अपना अहम स्थान रखती है ने राजस्थान की नब्ज टटोलनी शुरू की है। यहां पर 200 विधानसभा और 25 लोकसभा की सीटे हैं। एनसीपी के स्थानीय नेतृत्व ने 2021 में राजस्थान की तीन विधानसभा सीटों पर स्वतंत्र चुनाव लड़ने की बात कहकर कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी की भी नींद उड़ाई है। स्थानीय प्रदेशाध्यक्ष उम्मेदसिंह चम्पावत का कहना है कि शीर्ष नेतृत्व के निर्देशानुसार आगामी रणनीति पर काम चल रहा है। तीनों सीटों पर ऐसे समीकरण बन रहे हैं कि पार्टी यहां पर प्रभावी प्रदर्शन कर सकती है। इन्हीं समीकरणों के आधार पर संगठन काम कर रहा है। संभावित उम्मीदवार के नाते कई लोग सम्पर्क भी साध रहे हैं और एनसीपी को यहां चुनाव मैदान में आने का निमंत्रण भी दे रहे हैं। ये जनभावनाएं हैं जो आज तक शासन करती आई पार्टियों के विरुद्ध खड़ी हुई है। चम्पावत कहते हैं कि लोकतंत्र की खासियत यही है कि लोगों को चयन के लिए प्रभावी और निष्पक्ष राजनीति का विकल्प मिले और हम वही अवसर लोगों को देने के लिए आए हैं।

गुजरात का रास्ता अपनाएंगे राजस्थान में ?

एनसीपी ने 2012 में कांग्रेस के साथ गठबंधन करते हुए गुजरात में चुनाव लड़ा और कांग्रेस के सहयोग से दो विधायक जिताए। पार्टी की एंट्री प्रदेश में हो गई और 2017 के चुनाव में राकांपा ने स्वतंत्र चुनाव लड़ा। हालांकि पार्टी एक ही सीट जीती, लेकिन अपने दम पर। यही नहीं कांग्रेस को कई सीटों पर एनसीपी की वजह बड़ा नुकसान हुआ। कहना गलत नहीं होगा कि गुजरात चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के बीच कड़ी हुई टक्कर में एनसीपी एक बड़ी वजह रही। अब एनसीपी ने गुजरात में अपना संगठन खड़ा कर  लिया और वह चुनावों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसी अंदाज में 2018 में एनसीपी ने कांग्रेस से गठबंधन किया, लेकिन कांग्रेस ने एक सीट दी और उस पर पार्टी जीत तो नहीं पाई, लेकिन कड़ी टक्कर दी। अब यह पार्टी उप चुनाव अपने दम पर लड़ने की बात कह रही है और साथ ही आगामी चुनाव स्वतंत्र रहकर लड़ने का दावा कर रही है। इससे साफ है कि प्रदेश में एक नए राष्ट्रीय राजनीतिक दल का आगाज हो चुका है और वह गुजरात की तर्ज पर यहां भी चुनावी समीकरण साधेगी। इस मुद्दे पर प्रदेशाध्यक्ष चम्पावत कहते हैं कि पार्टी की रणनीति क्या और कैसे रहेगी? यह सब संगठन की अंदरुनी बातें हैं, लेकिन समय रहते हम अपना वजूद बनाएंगे। राजस्थान में विकास की प्रबल संभावनाओं को हम आकार देंगे  और जनता के हितों में काम करेंगे। फिलहाल पूरा फोकस 2021 में होने वाले विधानसभा उप चुनाव पर कर रहे हैं।

इन सीटों पर होने हैं चुनाव



सुजानगढ़: मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल के निधन के बाद यहां पर चुनाव होने हैं। यहां करीब दो लाख साठ हजार मतदाता हैं। यहां सुजानगढ़ और बीदासर दो बड़ी नगरपालिकाएं हैं। अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व इस सीट पर हर बार मेघवाल जाति से ही प्रत्याशी जीत रहा है। अन्य दलित वर्ग से प्रतिनिधित्व दोनों ही पार्टियों ने आज तक किसी को नहीं दिया है। यहां एनसीपी के लिए एक बड़ा अवसर बनता है। साथ ही यहां पर राजपूत और वैश्य वोटर्स की अधिकता भी है और मुम्बई में व्यापार करने वाले प्रवासियों की संख्या अधिक है। इन पर एनसीपी का प्रभाव भी है। यदि एनसीपी यहां प्रभावी उम्मीदवार उतारती है तो निश्चित तौर पर परिणाम बीजेपी और कांग्रेस की अपेक्षा प्रतिकूल ही आएंगे।


राजसमंद: पूर्व मंत्री किरण माहेश्वरी के निधन के बाद यहां होने वाले चुनावों में जीत के लिए कांग्रेस अपना दम-खम लगा रही है। कांग्रेस यहां से राजपूत उम्मीदवार को टिकट देती रही है और बीते चार चुनाव में लगातार हार रही है। यदि जातीय समीकरणों को यहां साधा जाए तो परिणाम यहां भी प्रभावित ही होंगे। यहां करीब दो लाख 20 हजार वोटर्स हैं।


सहाड़ा: विधायक कैलाशचंद्र त्रिवेदी के निधन के बाद से यहां सीट रिक्त है और चुनाव करवाए जाने हैं। यहां करीब ढाई लाख मतदाता हैं और यहां भी प्रवासियों की संख्या अच्छी खासी है। ऐसे में मुम्बई से सीधा प्रभाव वाली एनसीपी यहां के वोटबैंक में बड़ा सेंध मार सकती है।

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