Team India / अब टीम इंडिया में फिटनेस टेस्ट एक मजाक, एशिया कप से पहले खुल गई पोल

टीम इंडिया के फिटनेस टेस्ट को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। रोहित शर्मा, गिल और बुमराह सहित सभी खिलाड़ियों ने हालिया टेस्ट पास किया, जबकि विराट कोहली ने लंदन में टेस्ट दिया। रिपोर्ट के मुताबिक नतीजे सार्वजनिक नहीं किए गए, जिससे ये टेस्ट केवल औपचारिकता बनकर रह गए हैं।

Team India: हाल ही में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में रोहित शर्मा, शुभमन गिल, जसप्रीत बुमराह जैसे प्रमुख भारतीय क्रिकेटरों ने फिटनेस टेस्ट दिया। वहीं, खबरों के मुताबिक, विराट कोहली ने लंदन में अपना फिटनेस टेस्ट पूरा किया। सभी खिलाड़ियों ने इस टेस्ट को पास कर लिया, लेकिन अब एक नई रिपोर्ट ने इन टेस्ट्स की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। दावा किया जा रहा है कि ये टेस्ट केवल दिखावे के लिए थे, क्योंकि न तो इसके परिणाम सार्वजनिक किए गए और न ही मीडिया को इसकी कोई जानकारी दी गई।

फिटनेस टेस्ट: पहले अनिवार्य, अब मजाक?

विराट कोहली और रवि शास्त्री के युग में यो-यो टेस्ट भारतीय क्रिकेट में खिलाड़ी चयन का एक महत्वपूर्ण मानदंड हुआ करता था। उस दौरान, जो खिलाड़ी इस टेस्ट में विफल होते थे, उन्हें राष्ट्रीय टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता था। हालांकि, हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शास्त्री-कोहली युग के बाद से फिटनेस टेस्ट केवल एक औपचारिकता बनकर रह गए हैं। ये टेस्ट अब खिलाड़ियों के चयन का आधार नहीं हैं, जिससे इनकी प्रासंगिकता पर सवाल उठ रहे हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में एक सूत्र के हवाले से कहा गया है, “ऐसे लोग हैं जो भारतीय क्रिकेट के लिए दिल से जुड़े हैं, लेकिन कुछ प्रभावशाली आवाजों ने यो-यो और फिटनेस टेस्ट की चर्चा को दबा दिया है। पहले यो-यो टेस्ट के मानकों को और सख्त किया जाता था, लेकिन अब यह एक सामान्य दौड़ बनकर रह गया है। जब नतीजों का कोई असर ही नहीं होता, तो खिलाड़ी इसे गंभीरता से क्यों लेंगे?”

खिलाड़ियों की राय: चोट का खतरा बढ़ाते हैं टेस्ट?

कई बड़े खिलाड़ियों का मानना है कि यो-यो और ब्रॉन्को जैसे टेस्ट चोट के जोखिम को बढ़ाते हैं। वे अपने शरीर को अन्य तरीकों से बेहतर ढंग से मैनेज करना चाहते हैं। यह दृष्टिकोण फिटनेस टेस्ट की अनिवार्यता को और कमजोर करता है। सूत्रों के अनुसार, “2 किमी दौड़ का टेस्ट भी अब केवल एक रस्म बन गया है। पहले इसे मानकों को ऊंचा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब यह सिर्फ एक नियमित प्रक्रिया है।”

पूर्व कोच का खुलासा

भारत के पूर्व स्ट्रेंथ एंड कंडीशनिंग कोच सोहम देसाई ने भी इस मुद्दे पर खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि 2019 वर्ल्ड कप के बाद से यो-यो टेस्ट कभी भी चयन का मानदंड नहीं रहा। देसाई के अनुसार, “हम हर साल कॉन्ट्रैक्ट खिलाड़ियों के लिए तीन बार यो-यो टेस्ट आयोजित करते हैं। लेकिन यह केवल एक फिटनेस आकलन पैरामीटर है। इससे हमें खिलाड़ियों की फिटनेस का एक सामान्य अंदाजा मिलता है, लेकिन यह चयन का आधार नहीं है।”

क्या है आगे का रास्ता?

यह विवाद भारतीय क्रिकेट में फिटनेस संस्कृति और खिलाड़ी चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाता है। जब फिटनेस टेस्ट केवल औपचारिकता बनकर रह जाते हैं, तो क्या वे खिलाड़ियों को उच्च स्तर की फिटनेस बनाए रखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं? बीसीसीआई को इस मुद्दे पर पारदर्शिता लाने और फिटनेस टेस्ट को फिर से प्रभावी बनाने की जरूरत है, ताकि भारतीय क्रिकेट की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धात्मकता बरकरार रहे।