कबड्डी / टूटा राजस्थान की 'कप्तान' का सपना,चूल्हे-चौके तक सिमट गई जिंदगी

Zoom News : Dec 15, 2020, 06:36 PM
दो बार राजस्थान (Rajasthan) और 10 बार से ज्यादा जिले का नेतृत्व कर अपनी खेल प्रतिभा (Sports talent) का परिचय देने वाली खिलाड़ी आज घर के चूल्हे-चौके तलक ही सीमित है. खेल के मैदान में जिसने झंडे गाड़े, वह अब घर में झाड़ू-पोछे को मुकद्दर बना चुकी है. 

अगर सरकारी प्रोत्साहन (Government Incentives) मिले तो यह प्रतिभा खुद जैसे कई हुनरमंदों को तैयार करने का जज्बा रखती है लेकिन देश भर में कबड्डी में नाम कमाने के बाद भी गुमनामी की जिंदगी जी रही.

सरहद के अंतिम छोर पर बसे रेतीले बाड़मेर (Barmer) के सोड़ियार की मांगी चौधरी (Mangi Choudhary) ने शुरु से ही अपने खेल में डंका बजाया. प्राथमिक शिक्षा (Primary Education) से लेकर सीनियर तक की पढ़ाई के दरमियां मांगी चौधरी (Mangi Choudhary) ने कबड्डी खेल में अपनी अलग ही पहचान बनाई. दो बार राजस्थान टीम (Rajasthan Team) का नेतृत्व करने का गौरव हासिल किया मगर सरकार की और से कोई प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण आज मांगी की प्रतिभा केवल चूल्हा-चौका तक ही सीमित रह गई. 

बीस बार स्टेट लेवल पर अपना दबदबा दिखाया

इन दिनों मांगी अपने खेतों में पशुओं को चारा खिलाने और खेतीबाड़ी (Framing) के साथ ग्रहणी बनकर घर का काम संभाल रही हैं. बाड़मेर (Barmer) की मांगी चौधरी (Mangi Choudhary) ने बीस बार स्टेट लेवल पर अपना दबदबा दिखाया. साल 2010 में बाड़मेर (Barmer) जिले की प्रथम छात्रा जो राजस्थान कबड्डी (Rajasthan Kabaddi) टीम का नेतृत्व करने का गौरव हासिल किया. इसी तरह 2012 में फिर राजस्थान टीम (Rajasthan Team) का नेतृत्व कर सबको चौका दिया. 

मांगी का पसंदीदा खेल कबड्डी रहा 

मांगी के खेल को देश के कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों सराहा. खेल संसाधन (Sports resources) के अभाव के बावजूद भी मांगी ने अपनी प्रतिभा का झंडा बुलंद किया. मांगी बताती हैं कि मेरा हमेशा पसंदीदा खेल कबड्डी रहा है. वह बताती हैं कि उन्हें कई जिलों और राज्यों में कबड्डी (Kabaddi) खेलना का सौभाग्य मिला मगर मेरे मन में बाड़मेर जिले कबड्डी (Kabaddi) कोच बनने की तमन्ना थी मगर सरकार से प्रोत्साहन नहीं मिला. इस वजह से यह प्रतिभा केवल चुल्हे चौके तक ही सीमित रह गई है.

खेतों और पशुओं की कर रही देखभाल

कभी कबड्डी (Kabaddi) के मैदान में चक्कर लगाने वाली मांगी चौधरी आज अपने खेत, अपने पशुओं के आसपास ही नजर आती हैं. सरकारी प्रोत्साहन के अभाव में मांगी के सपने धीरे-धीरे खोते जा रहे हैं. मांगी कहती हैं कि अभावों ने भले ही चारों तरफ से घेर रखा है लेकिन हिम्मत नहीं हारी है. मांगी बताती हैं कि किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएं लेकिन आंखों में मदद की उम्मीदें अब भी तैरती नजर आती हैं.

एक तरफ जहां राज्य और केंद्र सरकार बेटियों को आगे बढ़ाने की बात करती है, वहीं, मांगी चौधरी जैसी प्रतिभाओं के हालात देख कर लगता है कि सरकारी बाते महज बातों तलक ही सीमित है. मांगी चौधरी जैसी प्रतिभाओं को अगर सरकारी प्रोत्साहन मिले तो सही मायने में बेटियों को आगे बढ़ाने के नारे सार्थक नजर होते नजर आएंगे.


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