Israel-Iran War / जिस परमाणु को लेकर छिड़ी जंग, उसका रूस है असली किंग, कैसे बना बाहुबली?

इजराइल-ईरान तनाव के पीछे परमाणु ताकत की होड़ है, लेकिन असली परमाणु महाशक्ति रूस है। SIPRI रिपोर्ट के मुताबिक रूस के पास 5459 परमाणु हथियार हैं, जो अमेरिका (5177) और चीन (600) से भी ज्यादा हैं। पुतिन के नेतृत्व में रूस इस रेस में सबसे आगे है।

Israel-Iran War: इजराइल और ईरान के बीच परमाणु विवाद ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान पश्चिम एशिया की ओर खींच लिया है। दोनों देशों के बीच यह संघर्ष किसी आम सैन्य झगड़े से कहीं बड़ा है — यह संघर्ष परमाणु ताकत हासिल करने और रोकने की जिद का है। इजराइल और अमेरिका की स्पष्ट नीति है कि ईरान को परमाणु शक्ति नहीं बनने दिया जाएगा। वहीं, ईरान किसी भी कीमत पर परमाणु संपन्न बनना चाहता है।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस पूरी खींचतान में असली ‘परमाणु महाराजा’ कौन है? जवाब है — रूसस्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, रूस के पास 5,459 परमाणु बम हैं — दुनिया में सबसे ज्यादा। इस सूची में अमेरिका 5,177 हथियारों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि तीसरे नंबर पर चीन है, जिसके पास सिर्फ 600 परमाणु बम हैं।

बाकी देशों की बात करें तो फ्रांस के पास 290, यूके के पास 225, भारत के पास 180, पाकिस्तान के पास 170, इजराइल के पास 90 और उत्तर कोरिया के पास 50 परमाणु हथियार मौजूद हैं।


रूस कैसे बना परमाणु ताकत का सरताज?

रूस की इस शक्ति की जड़ें द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में हैं। 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए थे। यह दृश्य सोवियत संघ (अब रूस) के नेता जोसेफ स्टालिन ने भी देखा और यह समझ लिया कि दुनिया में टिके रहना है तो परमाणु शक्ति अनिवार्य है।

स्टालिन ने तुरंत अमेरिका की बराबरी करने के लिए परमाणु कार्यक्रम शुरू किया। सोवियत जासूसों ने अमेरिका के परमाणु हथियारों के डिज़ाइन की जानकारी चुराई और 1949 में पहला सफल परीक्षण किया — RDS-1 (फर्स्ट लाइटनिंग)। इसके बाद सोवियत संघ ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

1961 में रूस ने दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु बम “Tsar Bomba” (ज़ार बम) का परीक्षण किया, जिसकी ताकत ने पूरी दुनिया को हिला दिया।


राजनीतिक दांवपेचों में परमाणु की भूमिका

1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद रूस को उसकी पूरी परमाणु विरासत मिली। इसके बाद अमेरिका और रूस के बीच कई समझौते हुए — जैसे START I, START II, और ABM संधि — जिनका मकसद हथियारों की संख्या को नियंत्रित करना था। लेकिन राजनीतिक बदलावों, अविश्वास और भू-राजनीतिक तनावों की वजह से इनमें से कई संधियां कभी लागू ही नहीं हो पाईं।

2001 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने ABM संधि से अमेरिका को बाहर कर दिया, जिससे यह प्रयास औपचारिक रूप से खत्म हो गया।


ओबामा युग: शांति की उम्मीद और नए तनाव की शुरुआत

2009 में राष्ट्रपति बने बराक ओबामा ने परमाणु निरस्त्रीकरण को अमेरिका की नैतिक जिम्मेदारी बताया। उन्होंने रूस से संबंध सुधारने की पहल की। लेकिन उसी दौरान 2014 में रूस और यूक्रेन का विवाद शुरू हो गया। यह विवाद आज पुतिन के शासन में एक पूर्ण युद्ध में बदल चुका है, जिसने परमाणु हथियारों के खतरे को और गहरा किया है।


मिडिल ईस्ट में जंग, मगर असली ताकत कहीं और

इजराइल और ईरान के बीच भले ही परमाणु को लेकर संघर्ष हो रहा हो, लेकिन असली किंग रूस है। उसके पास केवल हथियार ही नहीं, इतिहास, अनुभव और राजनीतिक रणनीति भी है जो उसे इस युद्ध के मोहरे से ऊपर का खिलाड़ी बनाती है।