करिश्मा कपूर के पूर्व पति और 30000 करोड़ रुपये के कारोबारी साम्राज्य के मालिक संजय कपूर की वसीयत को लेकर चल रहा विवाद अब एक नए और पेचीदा मोड़ पर आ गया है। उनकी तीसरी पत्नी प्रिया सचदेव कपूर द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट में। पेश की गई वसीयत की प्रामाणिकता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। गुरुवार को हुई सुनवाई में गवाहों के बदलते बयानों और कानूनी विसंगतियों ने इस संदेह को और गहरा कर दिया है कि क्या यह वसीयत वास्तव में संजय कपूर की अंतिम इच्छा थी या संपत्ति को उनके बच्चों से दूर रखने का एक प्रयास।
विवादास्पद वसीयत और उसकी सामग्री
संजय कपूर का 12 जून 2025 को लंदन में कार्डियक अरेस्ट से निधन हो गया था। उनके निधन के 47 दिन बाद, 21 मार्च 2025 की एक वसीयत प्रिया कपूर द्वारा पेश की गई। इस वसीयत में संजय कपूर की पूरी व्यक्तिगत संपत्ति प्रिया को देने की बात कही गई है, जबकि उनकी दूसरी। पत्नी करिश्मा कपूर, उनके बच्चों समायरा और कियान, और उनकी मां रानी कपूर को पूरी तरह से बाहर रखा गया है। यह एक ऐसा बिंदु है जिस पर बच्चों के वकील महेश जेठमलानी ने विशेष रूप से आपत्ति जताई है, क्योंकि यह एक पिता के अपने बच्चों के प्रति सामान्य व्यवहार के विपरीत है।
एग्जीक्यूटर के बदलते बयान
गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान, वसीयत में नामित एग्जीक्यूटर श्रद्धा सूरी मारवाह के बयानों में लगातार विरोधाभास देखने को मिला। पहले सूरी ने दावा किया था कि उन्हें वसीयत प्रिया से मिली थी। हालांकि, बाद में उन्होंने अपना बयान बदलते हुए कहा कि उन्हें 14 जून को 'दिनेश अग्रवाल' नामक व्यक्ति ने ईमेल के जरिए वसीयत भेजी थी और उन्हें एग्जीक्यूटर बनने के लिए कहा था। इस ईमेल के साथ पहले गलती से ट्रस्ट डीड भेज। दी गई थी और बाद में सही वसीयत भेजी गई। इस तरह के घटनाक्रम को कानूनी रूप से बेहद संदिग्ध माना जा रहा है, क्योंकि यह दर्शाता है कि वसीयत की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी थी।
सूरी के दावों पर संदेह
श्रद्धा सूरी मारवाह ने यह भी स्वीकार किया कि उन्हें यह भी पता नहीं था कि उन्हें वसीयत का एग्जीक्यूटर बनाया गया है। उनके पास कोई वकील नहीं था और वह वसीयत की सत्यता के बारे में भी निश्चित नहीं थीं और इन बयानों से यह संदेह और गहरा हो जाता है कि उन्हें यह दस्तावेज बाद में दिया गया था, न कि संजय कपूर ने स्वयं उन्हें यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी थी। एक एग्जीक्यूटर का यह कहना कि उसे दस्तावेज की प्रामाणिकता पर संदेह है,। अपने आप में वसीयत की वैधता पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।
प्रिया कपूर के विरोधाभासी दावे
प्रिया कपूर ने पहले सूरी से कहा था कि यह संजय की आखिरी और एकमात्र वसीयत है। हालांकि, बाद में कोर्ट में उन्होंने स्वीकार किया कि वह केवल नॉमिनी हैं, मालिक नहीं। भारतीय कानून के तहत, एक नॉमिनी केवल संपत्ति का प्रबंधन करता है, उसे मालिकाना हक नहीं मिलता। प्रिया के इन विरोधाभासी बयानों ने उनके दावों को कमजोर कर दिया है और पेश की गई वसीयत की मंशा पर और अधिक संदेह पैदा किया है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि प्रिया के बयानों में भी स्थिरता का अभाव है, जो मामले को और जटिल बनाता है।
कानूनी विसंगतियां और बच्चों का पक्ष
बच्चों के वकील महेश जेठमलानी ने वसीयत में कई गंभीर गलतियों की ओर इशारा किया है और उन्होंने बताया कि वसीयत में नाम गलत, सरनेम गलत, पते गलत और भाषा उलझी हुई है। कई जगहों पर संजय कपूर को ही वसीयत देने वाली कहा गया है। जेठमलानी का तर्क है कि हार्वर्ड-शिक्षित और 30000 करोड़ के बिजनेस एम्पायर के मालिक संजय कपूर जैसे व्यक्ति ऐसी गलतियों वाली वसीयत को कभी स्वीकार नहीं कर सकते थे। यह दर्शाता है कि वसीयत को शायद जल्दबाजी में या किसी और के इशारे पर तैयार किया गया था।
**अगर वसीयत फर्जी साबित हुई तो क्या होगा?
यदि यह वसीयत अदालत में असली साबित नहीं होती है, तो संजय कपूर की संपत्ति भारतीय उत्तराधिकार कानून के अनुसार सभी वारिसों, विशेष रूप से उनके बच्चों समायरा और कियान में बराबर बंट जाएगी। सूरी की वकील ने भी कोर्ट में इस बात को स्वीकार किया है और सूरी ने प्रिया से हर्जाना भी मांगा, जो एक एग्जीक्यूटर का काम नहीं होता अगर उसे वसीयत पर भरोसा होता। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें कभी वसीयत को प्रोबेट कराने की जरूरत। नहीं लगी, जो दर्शाता है कि सही कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
कुल मिलाकर, श्रद्धा सूरी के बदलते बयान, प्रिया के सिर्फ नॉमिनी होने का खुलासा, और वसीयत में मौजूद गंभीर गलतियां इस शक को मजबूत करती हैं कि यह वसीयत संजय कपूर की असली इच्छा नहीं है। यह मामला अब एक जटिल कानूनी लड़ाई में बदल गया है, जहां संजय कपूर की विशाल संपत्ति और उनके बच्चों के भविष्य का फैसला होना है। अदालत की अगली सुनवाई में इस मामले में और भी खुलासे होने की उम्मीद है।