कोटा / 7 साल की मन्नतों के बाद घर में बेटा हुआ, 24 घंटे भी जिंदा न रहा, डॉक्टरों की लापरवाही से गयी जान

Dainik Bhaskar : Jan 05, 2020, 07:45 AM
कोटा | जेके लोन सरकारी अस्पताल में 35 दिन से नवजातों की मौतों का सिलसिला जारी है। अब तक 107 बच्चे दम तोड़ चुके हैं। इस बीच, टीम उन पीड़ित परिवारों के घर पहुंचा जिन्होंने तब अपने बच्चों को खो दिया, जब यह मामला सामने नहीं आया था। बातचीत में पता चला कि डॉक्टरों की लापरवाही और चिकित्सा उपकरणों की कमी के कारण कई परिवारों की खुशियां छिन गईं। ऐसा ही एक परिवार है कोटा के दीनदयाल योगी और तुलसी बाई का। जिनके घर 7 साल मन्नतें करने के बाद पोता हुआ था, जो 24 घंटे भी जिंदा नहीं रह सका।

पीड़ित परिवारों को कहना है कि कोई मिलने नहीं पहुंचा

पीड़ित परिवारों ने बताया कि बच्चों की मौत के 10-15 दिन बीतने के बाद भी आज तक कोई उनसे मिलने नहीं पहुंचा। मीडिया में खबरें आने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट यहां पहुंचे थे। इससे पहले न किसी ने खबर ली। न ही किसी तरह के मुआवजे की बात की गई।

केस 1

कोटा की किशोर सागर कॉलोनी में रहने वाली तुलसी बाई ने बताया- 17 दिसंबर को बहू पूजा को जेके लोन अस्पताल में डिलीवरी के लिए भर्ती कराया था। पूजा ने 18 तारीख की रात बेटे को जन्म दिया तो घर में खुशी छा गई। इसके लिए परिवार ने 7 साल तक मन्नतें, झाड़फूंक और भगवान से गुहार लगाई थी। लेकिन अगले ही दिन सुबह बच्चे की तबीयत बिगड़ी। उसे सांस लेने में तकलीफ हुई थी। अस्पताल में मशीनों की कमी के कारण उसने दम तोड़ दिया। बच्चे की मौत की खबर सुनकर पूजा की तबीयत खराब हो गई। उसका ब्लड प्रेशर बढ़ गया। हमने उसे मायके भेज दिया ताकि वह सदमे से बाहर आ सके।

पूरी रात ऑक्सीजन पंप को हाथ से दबाती रही

दादी तुलसी बाई ने कहा कि मेरे पोते के साथ वार्ड में दूसरा लड़का भी था, डॉक्टरों ने जिसे मशीन में रखा था। वो जिंदा भी है लेकिन मुझे पंप दे दिया। मैं पूरी रात बच्चे को सांस दिलाने के लिए पंप दबाती रही। सुबह जब हमने ऑक्सीजन सिलेंडर लगाने के लिए कहा तो डॉक्टर ने बच्चे को जांच कर कहा कि इसे ले जाओ। ये तो खत्म हो गया। बच्चे के दादा दीनदयाल ने कहा कि सरकार से कहना चाहता हूं कि मेरा पोता तो गया। आने वाले जो हैं उनकी गोद सूनी नहीं हो। मशीनें खराब पड़ी हैं, उन्हें सही कराएं।

केस 2

कोटा के प्रेम नगर में रहने वाले किशन चौधरी की पत्नी पूजा की डॉक्टरों ने 6 महीने में ही डिलिवरी करा दी। नतीजा ये रहा कि उनकी बच्ची 3 घंटे भी जिंदा नहीं रहा। करीब 15 दिन पहले हुए घटनाक्रम के बाद कोई भी परिवार की सुध लेने नहीं पहुंचा। शनिवार को सांसद ओम बिड़ला उनके घर पहुंचे तो परिवार की पीड़ा सामने आई। बच्ची के दादा राजू चौधरी के मुताबिक, करीब 15 दिन पहले बहू पूजा के पेट में दर्द हुआ। जिसके बाद हम उसे रात 12 अस्पताल लेकर गए थे। उस वक्त बच्चा सिर्फ 6 महीने का था। डॉक्टर ने दो इंजेक्शन लगा दिए। जिसके बाद भी दर्द ठीक नहीं हुआ। फिर सुबह 4.30 बजे डिलिवरी हो गई। डॉक्टरों की लापरवाही से बच्ची की मौत हुई।

केस 3 

कोटा की सतीश विहार कॉलोनी में रहने वाले आसिम हुसैन ने बताया कि 15 दिसंबर को पत्नी रुखसार बानो ने बेटी को जन्म दिया था। इतनी सर्दी के बाद भी अगले दिन छुट्टी कर दी गई। 29 दिसंबर को तबीयत खराब होने पर उसे अस्पताल लेकर पहुंचे थे। उसे बस थोड़ा बुखार था। ऑक्सीजन देने के लिए उसे वेंटिलेटर पर रखा गया था। एक डॉक्टर रात को शराब पीकर आया था। मां रुखसार ने कहा कि हमारे बेटी को लेकर बहुत अरमान थे। घर में खुशी की कोई हद नहीं थी। मेरे साथ जैसा हुआ है किसी के साथ भी न हो। 1 जनवरी 2020 को हमारी शादी की पहली सालगिरह थी। लेकिन 3 दिन पहले ही बेटी दुनिया को अलविदा कह गई।

केस 4 

कोटा की बड़ा बस्ती इलाके में रहने वाली एक महिला की बेटी टोली को बेटा हुआ था। बच्चे की मौत के बाद उसे इतना गहरा सदमा लगा कि वो जन्म की तारीख ही भुल गई। महिला ने बताया कि अस्पताल में कर्मचारी गाली देकर बात करते थे। अस्पताल के कर्मचारियों को बच्चे का इलाज करना चाहिए। इस परिवार के पास लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला भी पहुंचे। जिन्होंने 15 हजार की आर्थिक मदद दी है।

केस 5

कोटा शहर के संजय रावल की पत्नी पद्मा ने बेटे को जन्म दिया था। जिनके घर दो बेटियों के बाद बेटा हुआ था। रावल ने बताया कि बच्चे को निमोनिया की शिकायत थी। कर्मचारी ड्रिप लगाकर चाय पीने चले जाते थे। वहां बैठकर हंसी-मजाक करते रहे थे। दूध तो पिलाने के लिए पहले ही मना कर दिया था। ओआरएस पिलाने के लिए भी पूछने पर भी चिल्लाते थे। अगर हम कुछ कहते थे तो बोलते थे कि तुम्हारा बच्चा अभी मर नहीं रहा है।

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