Jayant Chaudhary News / असल मर T20 नहीं टेस्ट वाली है पॉलिटिक्स! समझें जयंत की NDA से दूरी के पीछे का खेल

Zoom News : Aug 14, 2023, 06:58 PM
Jayant Chaudhary News: राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के प्रमुख जयंत चौधरी ने बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के बजाय विपक्षी गठबंधन के साथ रहने का फैसला किया है. आरएलडी 2024 के चुनावी मैदान में बीजेपी के साथ मिलकर आसानी से जीत दर्ज कर सकती है, लेकिन वर्तमान की सियासी फायदा उठाने के बजाय भविष्य की सियासत करने का फैसला जयंत ने लिया है. क्रिकेट की भाषा में समझें तो टी-20 की बजाय टेस्ट मैच के फॉर्मेट वाली पॉलिटिक्स करने की दिशा में जयंत चौधरी अपने कदम बढ़ा रहे हैं.

भविष्य को देखते हुए जयंत चौधरी में विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A के साथ जाने का फैसला लिया है, साथ ही पार्टी और बीजेपी के खिलाफ दो-दो हाथ करेगी.

पश्चिमी में जयंत का नया समीकरण

उत्तर प्रदेश की सियासत में जयंत चौधरी बहुत ही संभल कर चल रहे हैं. पश्चिमी यूपी के समीकरण के लिहाज से आरएलडी अपनी राजनीतिक बिसात बिछा रही है. जयंत अपने कोर वोटबैंक जाट समुदाय को जोड़े रखते हुए मुस्लिम, दलित और गुर्जर कंबिनेशन बनाने के मिशन पर काम कर रही है. मुजफ्फरनगर के खतौली विधानसभा उपचुनाव में आरएलडी को इसी फॉर्मूले से बीजेपी के खिलाफ जीत भी मिल चुकी है, जिससे जयंत चौधरी के हौंसले और भी बुलंद हो गए हैं.

पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम-दलित और गुर्जर समुदाय एक साथ आकर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. पश्चिम के जिलों में मुस्लिम 30 से 45 फीसदी तक हैं तो जाट भी 20 से 30 फीसदी हैं. दलित मतदाता भी करीब 25 फीसदी के आसपास हैं. इसी तरह से गुर्जर समुदाय भी राजनीतिक क्षमता रखते हैं. अगर चार जातियां एक साथ मिल जाती हैं तो बीजेपी के लिए पश्चिमी यूपी में काफी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.

पश्चिमी यूपी में मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतने के लिए जयंत चौधरी ने सपा से हाथ मिला रखा है तो दलित वोटों के लिए चंद्रशेखर आजाद के साथ अपनी मजबूत दोस्ती बना रखी है और कांग्रेस को भी गठबंधन में शामिल किए जाने की लगातार पैरवी कर रहे हैं. ऐसे में बीजेपी के साथ जाने पर उनके मुस्लिम-दलित को आरएलडी के जोड़ने के सियासी फॉर्मूले पर ग्रहण लग सकता है. इसीलिए जयंत चौधरी ने इंडियन इस्लामिक कल्चरल सेंटर में मुस्लिम बुद्धिजीवियों की बैठक के दौरान साफ कह दिया है कि वे विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A के साथ हैं और रहेंगे. बीजेपी के साथ गठबंधन की बातें मीडिया की मनगढ़ंत है.

वर्तमान से ज्यादा भविष्य की चिंता

आरएलडी की बीजेपी के साथ गठबंधन के कयास लगाए रहे हैं. जयंत चौधरी यह बात भी जानते हैं कि बीजेपी के साथ गठबंधन करके 2024 का चुनाव जीता जा सकता है, लेकिन सियासत में बहुत लंबी पारी नहीं खेली जा सकती है. बीजेपी के साथ गठबंधन करने पर जाट वोटर्स तो एकजुट हो सकता है. जाट वोटों के दम पर तीन-चार सीटें भी जीतने में सफल हो सकते हैं और केंद्र में मंत्री भी बन सकते हैं.

साल 2009 के चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर आरएलडी पांच लोकसभा सीटें जीतने में सफल भी रही थी, लेकिन जयंत चौधरी का ख्वाब अब उससे कहीं ज्यादा है. पश्चिमी यूपी में जयंत जो सियासी फॉर्मूला बनाना चाहते हैं, उस मंसूबे को बीजेपी के साथ रहकर अमलीजामा नहीं पहना सकेंगे. यही वजह है कि जयंत चौधरी मौजूदा फायदा उठाने से ज्यादा भविष्य की अपनी सियासत की मजबूती को देख रहे हैं.

जयंत चौधरी को पता है कि बीजेपी के साथ हाथ मिलाते हैं तो मुसलमानों को अपने साथ जोड़कर नहीं रख पाएंगे, क्योंकि मुस्लिम वोटिंग पैटर्न ही बीजेपी विरोधी रहा है. बीजेपी के साथ जयंत अगर हाथ मिलाते हैं तो मुस्लिम फिर कभी भी उनके साथ नहीं आएगा. इसके अलावा वह चंद्रशेखर के जरिए दलित वोटर्स को जोड़ने की मुहिम पर लगे हैं. उन्हें उम्मीद है कि बसपा अगर कमजोर होती है तो मायावती का विकल्प चंद्रशेखर आजाद बन सकते हैं. ऐसी स्थिति में चंद्रशेखर के साथ दोस्ती का सियासी फायदा उन्हें भी मिलेगा, लेकिन बीजेपी के साथ गठबंधन करने पर चंद्रशेखर को साथ रखना आसान नहीं है. दलितों के बीच बन रहे विश्वास को भी झटका लग सकता है.

NDA से ज्यादा INDIA बनी पसंद

पश्चिमी यूपी की सियासत को जयंत चौधरी बाखूबी समझ रहे हैं. जयंत यह भी जानते हैं कि उनके बिना विपक्ष के लिए पश्चिम यूपी में बीजेपी से मुकाबला करना आसान नहीं है. इसीलिए आरएलडी पश्चिमी यूपी की एक दर्जन लोकसभा सीटों की डिमांड कर रही है और इन सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी भी कर रही है. उन्हें यह भी लग रहा है कि बीजेपी के साथ गठबंधन करने पर आरएलडी को चार से पांच सीटें ही मिल सकती हैं जबकि विपक्षी गठबंधन में उन्हें कम से कम 6 से 8 सीटें मिलने का अनुमान है.

इस तरह आरएलडी को सीटों के लिहाज से एनडीए की तुलना में I.N.D.I.A में फायदा ज्यादा दिख रहा है. इसके अलावा विपक्षी खेमे में रहते हुए वह अपनी भविष्य की सियासत को धार दे सकते हैं. यही वजह है कि जयंत चौधरी को सत्ता पक्ष के बजाय विपक्षी खेमा सियासी तौर पर ज्यादा सूट कर रहा है.

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