नई दिल्ली / फिर रुलाने लगी प्याज की महंगाई, सरकार की क्या है तैयारी?

प्याज ने फिर से रुलाना शुरू कर दिया है। प्याज के रिटेल दाम लगातार बढ़ रहे हैं। प्याज के दाम में एक महीने में 75 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई है। खुदरा दाम 40 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं। प्याज के बफर स्टॉक को खुले मार्केट में उतारने के लिए कहा गया है। कीमत वृद्धि को लेकर दो महीने पहले ही सरकार ने 50 हजार टन प्याज बफर स्टॉक बनाया है। प्याज के दाम में तेजी का कारण फसल का खराब होना और आवक में कमी बताए जा रहे हैं।

नई दिल्ली. प्याज ने फिर से लोगों को रुलाना शुरू कर दिया है। प्याज के रिटेल दाम लगातार बढ़ रहे हैं। प्याज के दाम में एक महीने में 75 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई है। खुदरा दाम 40 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं। बढ़ते दाम ने सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। यही कारण है कि सरकार प्याज के थोक और खुदरा दामों की समीक्षा करने लगी है। उपभोक्ता मंत्रालय में बैठकों का दौर चलने लगा है। सरकार ने फिलहाल नैफेड और एनसीसीएफ को खुले मार्केट में प्याज बेचने को कहा है। प्याज के बफर स्टॉक को खुले मार्केट में उतारने के लिए कहा गया है। संभावित कीमत वृद्धि को लेकर दो महीने पहले ही सरकार ने 50 हजार टन प्याज खरीदकर बफर स्टॉक बनाया है। उपभोक्ता मंत्री रामविलास पासवान ने कहा है कि यह मौसमी तेजी है, मगर सरकार प्याज के दामों को कृत्रिम रूप से बढ़ने नहीं देगी। 

प्याज के दाम में तेजी का कारण फसल का खराब होना और आवक में कमी बताए जा रहे हैं। कारोबारियों का कहना है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे प्याज उत्पादक राज्यों में बारिश की वजह से फसल खराब हो रही हैं। इसके चलते पिछले 15 दिनों में देश की सबसे बड़ी मंडी आजादपुर मंडी में प्याज के थोक दाम में 10 रुपये प्रति किलो तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। प्याज के कारोबारी राजेश शर्मा का कहना है कि प्याज की डिमांड में कमी नहीं आई है, मगर आवक में कमी आ चुकी है। यही कारण है कि प्याज के दाम बढ़ रहे हैं। पिछले पांच दिनों में प्याज के थोक दाम में 20 पर्सेंट उछाल आने से स्थिति सबसे ज्यादा खराब हुई है। 

नई फसल आने में 2 महीने का समय? 

कृषि एक्सपर्ट देवेंद्र शर्मा का कहना है कि तकनीकी रूप से कहा जाए तो प्याज की नई फसल आने में अभी दो महीने का समय बाकी है। इसका मतलब है कि प्याज में तेजी दो महीने तक जारी रह सकती है। मगर यह काफी कुछ सरकार पर निर्भर करती है कि वह किस तरह से मार्केट सोर्स पर नियंत्रण करती है। 

खाता है पूरा देश, उगाते हैं कुछ ही राज्य? 

लगभग सभी भारतीय प्याज का उपभोग करते हैं, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1000 में से 908 व्यक्ति, लेकिन इसका उत्पादन देशभर में नहीं होता है। आधे से अधिक प्याज का उत्पादन केवल तीन राज्यों (महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश) में होता है और कुल 90 फीसदी केवल 10 राज्यों में उगाया जाता है। कीमतों में वृद्धि या कमी फसलों के तीन सीजन (अप्रैल-अगस्त, अक्टूबर-दिसंबर और जनवरी-मार्च) से आपूर्ति पर निर्भर है। कीमतों में तेज वृद्धि बिक्री की वजह बिक्री का तरीका भी है। भारत के आधे प्याज की दैनिक आवक 10 बड़े मार्केट से गुजरती है, जिनमें से 6 महाराष्ट्र और कर्नाटक में हैं। इसके अलावा कुछ व्यापारी और निर्यातक बेहद प्रभावशाली हैं। केंद्रीकरण कीमतों में हेरफेर को आसान बनाती है। 

बढ़ती कीमतों से किसे फायदा? 

कीमतों में वृद्धि का भुगतान उपभोक्ताओं को करना पड़ता है, लेकिन दाम बढ़ने का हमेशा यह अर्थ नहीं कि किसानों को फायदा हो रहा है। अन्य सब्जियों की तरह सरकार प्याज के लिए भी मिनिमम सपॉर्ट प्राइस तय नहीं करती है, क्योंकि सरकार हमेशा इसकी खरीद नहीं करती है। 

सरकार कैसे करेगी नियंत्रण? 

बफर स्टॉक (6 रुपये प्रति किलो की खरीद) सरकार की मदद कर सकती है। हालांकि, बफर स्टॉक का यह मतलब नहीं कि सरकार द्वारा खरीदा गया सारा प्याज बाजार तक पहुंचेगा, क्योंकि सरकार के पास उन्हें स्टोर करने का उचित प्रबंध नहीं है। पिछले साल सरकार द्वारा खरीदे गए 13 हजार टन बफर स्टॉक में से 6,500 टन प्याज खराब हो गया था। सरकार निर्यात को रोक सकती है और आयात को ड्यूटी फ्री कर सकती है ताकि घरेलू बाजार में प्याज की आवक बढ़े और कीमत कम हो। 

कब कदम उठाएगी सरकार? 

आप जल्द ही ऐक्शन की उम्मद कर सकते हैं। सरकार चांस नहीं लेना चाहती है, क्योंकि प्याज की महंगाई ने कई सरकारों को गिराने में भूमिका निभाई है। 1980 में इंदिरा गांधी ने प्याज की बढ़ती कीमतों की वजह से सत्ता में वापसी की थी। 1998 में बीजेपी ने प्याज की बढ़ी कीमतों की वजह से ही बड़े राज्यों में सरकार गंवाई थी।