Maharashtra Politics / चाचा-भतीजों की सियासी घरानों में जंग है पुरानी, जानिए कब कौन पड़ा भारी

महाराष्ट्र की सियासत में चाचा-भतीजे के बीच सियासी वर्चस्व की जंग छिड़ गई है. चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार एक-दूसरे के सामने खड़े हो गए हैं. अजित पवार 40 एनसीपी विधायकों के साथ बीजेपी गठबंधन की सरकार में शामिल हो गए हैं. ऐसे में एनसीपी पर कब्जे को लेकर चाचा-भतीजे सुप्रीम कोर्ट में कानूनी और सड़क पर जनता के बीच लड़ाई के लिए उतर चुके हैं. देश की सियासत में जब भी चाचा-भतीजे के बीच अदावत छिड़ी है तो भतीजे ही हमेशा से

Vikrant Shekhawat : Jul 04, 2023, 05:45 PM
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की सियासत में चाचा-भतीजे के बीच सियासी वर्चस्व की जंग छिड़ गई है. चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार एक-दूसरे के सामने खड़े हो गए हैं. अजित पवार 40 एनसीपी विधायकों के साथ बीजेपी गठबंधन की सरकार में शामिल हो गए हैं. ऐसे में एनसीपी पर कब्जे को लेकर चाचा-भतीजे सुप्रीम कोर्ट में कानूनी और सड़क पर जनता के बीच लड़ाई के लिए उतर चुके हैं. देश की सियासत में जब भी चाचा-भतीजे के बीच अदावत छिड़ी है तो भतीजे ही हमेशा से भारी पड़े हैं. ऐसे में अब देखना है कि अजित पवार बगावत का झंडा उठाकर क्या चाचा शरद पवार पर भारी पड़ेंगे?

शरद पवार बनाम अजित पवार

महाराष्ट्र की सियासत के बेताज बादशाह कहे जाने वाले एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने अपनी विरासत बेटी सुप्रिया सुले को सौंपा तो भतीजे अजित पवार ने बागी रुख अपना लिया. अजित पवार खुद को शरद पवार के सियासी वारिस के तौर पर देख रहे थे, क्योंकि पिछले साढ़े तीन दशक से महाराष्ट्र में सक्रिय थे जबकि शरद पवार खुद को राष्ट्रीय राजनीति में रखे हुए थे. शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया तो अजित पवार एनसीपी के 40 विधायकों के साथ बीजेपी गठबंधन को समर्थन देकर उपमुख्यमंत्री बन गए.

अजित पवार ने उसी तरह से एनसीपी पर अपना कब्जा जमाया है, जैसे पिछले साल एकनाथ शिंदे ने शिवसेना पर अपना दबदबा कायम किया है. इस तरह अजित पवार के बगावत के बाद शरद पवार और सुप्रिया सुले उसी तरह से खाली हाथ हैं, जैसे शिवसेना में बगावत के बाद उद्वव ठाकरे की स्थिति हो गई थी. फिलहाल की सियासी संग्राम में भतीजा चाचा पर भारी पड़ रहा है, क्योंकि शरद पवार के तमाम मजबूत सिपहसलार अजित पवार के साथ खड़े हैं. विधायक से लेकर संसद तक अजित पवार के साथ चले गए हैं. ऐसे में शरद पवार अब दोबारा से पार्टी को खड़े करने की बात कर रहे हैं.

अखिलेश यादव बनाम शिवपाल यादव

उत्तर प्रदेश की सियासत में भी चाचा-भतीजे के बीच अदावत को पूरे देश ने देखा है. मुलायम सिंह यादव की सियासी विरासत को लेकर चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच साल 2016 में तलवारें खिंच गई थीं. शिवपाल यादव ने अपने समर्थकों के साथ समाजवादी पार्टी से हटकर अपनी अलग पार्टी बना ली थी, लेकिन अखिलेश यादव ने खुद को मुलायम सिंह के वारिस के तौर पर स्थापित करने में सफल रहे. शिवपाल यादव ने अपने आपको मुलायम सिंह यादव के वारिस के रूप में साबित करने में फेल रहे. 2019 लोकसभा चुनाव में शिवपाल यादव फिरोजाबाद से लड़े, लेकिन जीत नहीं सके. इतना ही नहीं उन्होंने अपने जिन समर्थकों को चुनाव लड़ाया, वो तो अपनी जमानत भी नहीं बचा सके.

अखिलेश यादव ने सपा पर अपना कब्जा जमाए रखने के साथ-साथ यूपी में बीजेपी का विकल्प के तौर पर खड़ा किया है. वहीं, शिवपाल यादव के साथ आए नेता घर वापसी कर गए, जिसके चलते उन्हें 2022 में सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ना पड़ा और मुलायम सिंह के निधन के बाद अपनी पार्टी का सपा में विलय करना पड़ा. चाचा शिवपाल यादव ने भतीजे अखिलेश के खिलाफ भले ही बगावत का झंडा उठाया, लेकिन भतीजा जब भारी पड़ा तो सेरंडर भी करने में देर नहीं की और अखिलेश यादव को अपना नेता मान लिया. इस तरह से अखिलेश यादव के सामने शिवपाल बेबस नजर आए थे.

अभय चौटाला बनाम दुष्यंत चौटाला

हरियाणा की राजनीति में भी चाचा-भतीजे के बीच सियासी वर्चस्व की जंग छिड़ी थी. चौधरी देवीलाल को विरासत तो ओम प्रकाश चौटाला ने आगे बढ़ाया. ओम प्रकाश चौटाला ने अपने दोनों बेटे अजय चौटाला और अभय चौटाला को सियासत में लेकर आए. दोनों भाई एक वक्त में हरियाणा की राजनीति में धुरी बने हुए थे, लेकिन शिक्षा भर्ती घोटाल में ओम प्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला जेल गए तो इनेलो की कमान अभय चौटाला के हाथों में आ गई.

अजय चौटाला ने अपने बेटे दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाल को राजनीति में उतारा. दुष्यंत चौटाला ने 2014 का लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे तो चाचा अभय चौटाला के साथ उनकी सियासी अदावत भी तेज हो गई. चाचा-भतीजे के बीच सियासी वर्चस्व की ऐसी लड़ाई हुई कि पार्टी दो धड़ों में बंट गई. अभय चौटाला ने दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला को पार्टी से बाहर निकाल दिया. ऐसे में अजय चौटाला ने अपने दोनों बेटों को साथ मिलकर जेजेपी नाम से अलग पार्टी बनाई. 2019 के विधानसभा चुनाव में इनेलो की कमान संभाल रहे अभय चौटाला की सियासत धराशाई हो गई जबकि भतीजा दुष्यंत किंगमेकर बनकर उभरा. दुष्यंत चौटाला की पार्टी के 10 विधायक जीते और बीजेपी सरकार को समर्थन देकर उपमुख्यमंत्री बने. इस तरह हरियाणा की सियासत में भी चाचा पर भतीजा भारी पड़ा.

पशुपति बनाम चिराग पासवान

बिहार की सियासत में रामविलास पासवान की विरासत को लेकर चाचा-भतीजे के बीच सियासी तलवारें खिंच चुकी हैं. रामविलास के निधन के बाद चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान के बीच सियासी संग्राम छिड़ गया था. रामविलास पासवान के भाई के होने नाते पशुपति पारस अपनी दावेदारी कर रहे थे और चिराग पासवान बेटा होने के नाते अपना अधिकार जता रहे थे. ऐसे में पशुपति ने चिराग को छोड़कर एलजेपी के बाकी सांसदों को अपने साथ मिलाकर एलजेपी पर दावा ठोक दिया था. चिराग पासवान अलग थलग पड़ गए जबकि पशुपति अपने भाई की जगह केंद्र में मंत्री बन गए. एलजेपी के दो धड़ों में बंटने के बाद भले ही पशुपति पारस भारी पड़े, लेकिन चिराग ने खुद को रामविलास पासवान के सियासी वारिस के तौर पर स्थापित करने में काफी हद तक सफल हो गए हैं. ऐसे में चिराग पासवान अब फिर से बीजेपी के साथ नजदीकियां बढ़ा रहे हैं.

बाल ठाकरे बनाम राज ठाकरे

महाराष्ट्र की सियासत में शरद पवार और अजित पवार ही नहीं बल्कि बाल ठाकरे और उनके भतीजे राज ठाकरे भी एक-दूसरे के खिलाफ उतर चुके हैं. एनसीपी की सियासत में भले ही अजित पवार भारी पड़े हों, लेकिन शिवसेना में चाचा-भतीजे की लड़ाई में भतीजे को मात खानी पड़ी है. बाले ठाकर के साथ साये की तरह रहने वाले राज ठाकरे खुद को उनका सियासी वारिस समझ रहे थे, लेकिन बाल ठाकरे जब पार्टी की कमान अपने बेटे उद्धव ठाकरे को सौंपी तो राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली. राज ठाकरे भले ही पार्टी बनाई, लेकिन सियासी तौर पर खुद को स्थापित नहीं कर सके. बाल ठाकरे के सियासी वारिस के तौर पर उद्धव ठाकरे खुद को साबित किया, लेकिन सत्ता के सिंहासन पर बैठते ही कमजोर पड़ गए. शिवसेना दो गुटों में बंट गई और एकनाथ शिंदे ने पार्टी नेताओं के शिवसेना पर कब्जा जमा लिया.