दिल्ली / निर्भया के दोषियों की फांसी की तैयारी के बीच तिहाड़ प्रशासन ने पूछी आखिरी इच्छा

Live Hindustan : Jan 23, 2020, 03:38 PM
नई दिल्ली | तिहाड़ जेल प्रशासन ने 16 दिसंबर 2012 को हुए दिल दहला देने वाले निर्भया गैंगरेप मामले के चार दोषियों को 1 फरवरी को मौत की सजा देने से पहले उनकी अंतिम इच्छा को सूचीबद्ध करने के लिए कहा है। वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि पिछले सप्ताह तिहाड़ प्रशासन द्वारा चारों से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई थी और चार में से किसी ने भी अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

अतिरिक्त पुलिस महानिरीक्षक, राजकुमार ने पुष्टि की कि उन्होंने लिखित रूप से चारों से कहा है कि इससे पहले कि वे फांसी पर चढ़ जाएं वे अपनी अंतिम इच्छा को सूचीबद्ध करें। हम उनके जवाब का इंतजार कर रहे हैं।  राजकुमार ने कहा, केवल एक बार वे हमें बताते दें कि उनकी अंतिम इच्छा क्या है तो तिहाड़ के अधिकारी ये फैसला लें कि क्या इच्छा पूरी हो सकती है या नहीं। हर इच्छा पूरी नहीं हो सकती। एक बार लिखित रूप में हमारे पास उनका जवाब वापस आने पर प्रशासन निर्णय लेगा।

अधिकारियों ने बताया कि चारों दोषियों को ये भी कहा गया है कि वे किसी का भी नाम लें जिससे वे एक अंतिम बार मिलना चाहते हैं या किसी भी संपत्ति या सामान को किसी को देना चाहते हैं तो बता दें।

बता दें कि निर्भया गैंगरेप केस में मौत की सजा पाये दोषियों को फांसी दिये जाने के लिये सात दिन की समय सीमा निर्धारित करने का अनुरोध करते हुये केन्द्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की। दिसंबर, 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में दोषियों द्वारा पुनर्विचार याचिका, सुधारात्मक याचिका और दया याचिकाएं दायर करने की वजह से मौत की सजा के फैसले पर अमल में विलंब के मद्देनजर गृह मंत्रालय की यह याचिका काफी महत्वपूर्ण है।

सरकार ने जोर देते हुए कहा कि समय की जरूरत है कि दोषियों के मानवाधिकारों को दिमाग में रखकर काम करने के बजाय पीड़ितों के हित में दिशानिर्देश तय किये जाएं। गृह मंत्रालय ने एक आवेदन में कहा है कि शीर्ष अदालत को सभी सक्षम अदालतों, राज्य सरकारों और जेल प्राधिकारियों के लिये यह अनिवार्य करना चाहिये कि ऐसे दोषी की दया याचिका अस्वीकृत होने के सात दिन के भीतर सजा पर अमल का वारंट जारी करें और उसके बाद सात दिन के अंदर मौत की सजा दी जाए, चाहे दूसरे सह-मुजरिमों की पुनर्विचार याचिका, सुधारात्मक याचिका या दया याचिका लंबित ही क्यों नहीं हों।    

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