India Export Mart / ट्रंप की ट्रेड वार का असर: अमेरिकी टैरिफ से भारत का निर्यात 37.5% गिरा, कई सेक्टर पर भारी मार

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के आंकड़ों के अनुसार, मई से सितंबर 2025 के बीच अमेरिका को भारत का निर्यात 37.5% गिर गया है। अमेरिका द्वारा लगाए गए बढ़े हुए टैरिफ के कारण स्मार्टफोन, दवा, धातु, ऑटो पार्ट्स, जेम्स-ज्वेलरी और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे प्रमुख भारतीय क्षेत्रों को भारी नुकसान हुआ है।

भारत के निर्यात क्षेत्र के लिए अमेरिका से एक चिंताजनक खबर सामने आई है, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़े झटके के समान है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, मई से सितंबर. 2025 की अवधि के दौरान अमेरिका को भारत का निर्यात चौंका देने वाले 37. 5% तक लुढ़क गया है। यह गिरावट भारतीय निर्यात प्रदर्शन में हाल के वर्षों में दर्ज की गई सबसे महत्वपूर्ण गिरावटों में से एक है, जो अमेरिकी बाजार में भारत की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाती है और इस गिरावट का मुख्य कारण अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए बढ़े हुए टैरिफ को माना जा रहा है, जिसने भारतीय निर्यातकों के लिए व्यापार की लागत को काफी बढ़ा दिया है।

टैरिफ वृद्धि और निर्यात में गिरावट

अमेरिकी प्रशासन ने अप्रैल 2025 में भारतीय उत्पादों पर 10% का टैरिफ लगाया था, जो अगस्त तक बढ़कर 50% तक पहुंच गया और इस अचानक और भारी टैरिफ वृद्धि का सीधा और तत्काल प्रभाव भारत के निर्यात पर पड़ा। टैरिफ बढ़ने के तुरंत बाद, भारत से अमेरिका को होने वाला निर्यात 8 और 8 अरब डॉलर से घटकर 5. 5 अरब डॉलर रह गया और यह गिरावट न केवल मात्रात्मक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय निर्यातकों के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती भी प्रस्तुत करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी बाजार में भारत का प्रदर्शन पहले कभी इतना खराब नहीं देखा गया था, जो मौजूदा स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। यह स्थिति भारतीय व्यापार नीति निर्माताओं के लिए एक गंभीर विचार का विषय बन गई है।

टैरिफ-मुक्त वस्तुओं पर भी असर

यह गिरावट केवल उन वस्तुओं तक ही सीमित नहीं रही जिन पर टैरिफ लगाया गया था, बल्कि इसका सबसे ज्यादा नुकसान उन वस्तुओं को भी हुआ जो पहले टैरिफ-फ्री थीं। ऐसी वस्तुएं, जो भारत के कुल अमेरिकी निर्यात का लगभग एक-तिहाई हिस्सा थीं, उनमें भी 47% की भारी गिरावट दर्ज की गई। मई में इन वस्तुओं का निर्यात 3. 4 अरब डॉलर था, जो सितंबर तक घटकर मात्र 1. 8 अरब डॉलर पर पहुंच गया। यह दर्शाता है कि टैरिफ का प्रभाव केवल प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित वस्तुओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसने। पूरे व्यापारिक माहौल को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से अन्य क्षेत्रों को भी नुकसान हुआ है।

स्मार्टफोन निर्यात को झटका

भारत के स्मार्टफोन निर्यात क्षेत्र को इस व्यापार युद्ध से जबरदस्त झटका लगा है। जहां 2024-25 के बीच अप्रैल से सितंबर तक स्मार्टफोन निर्यात में 197% की प्रभावशाली। वृद्धि दर्ज की गई थी, वहीं अब इसमें 58% की भारी गिरावट आई है। मई में 2. 29 अरब डॉलर का निर्यात सितंबर में घटकर सिर्फ 884. 6 मिलियन डॉलर रह गया। यह गिरावट भारत के 'मेक इन इंडिया' और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को बढ़ावा देने के प्रयासों के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि अमेरिका भारतीय स्मार्टफोन के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार है और इस गिरावट से भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग पर गहरा असर पड़ने की आशंका है।

फार्मास्युटिकल सेक्टर की चुनौतियां

भारत का फार्मास्युटिकल सेक्टर, जो दुनिया भर में अपनी सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाओं के लिए जाना जाता है, भी इस व्यापार युद्ध से अछूता नहीं रहा। दवा निर्यात में भी 15. 7% की गिरावट आई है। मई में 745. 6 मिलियन डॉलर का दवा निर्यात सितंबर में घटकर 628. 3 मिलियन डॉलर हो गया। अमेरिका भारतीय फार्मास्युटिकल उत्पादों का एक प्रमुख आयातक है, और इस गिरावट से भारतीय दवा कंपनियों के राजस्व और वैश्विक बाजार हिस्सेदारी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यह स्थिति भारत के 'विश्व की फार्मेसी' के रूप में उसकी प्रतिष्ठा के लिए भी चिंता का विषय है।

धातु और ऑटोमोबाइल उद्योग पर प्रभाव

औद्योगिक धातुओं और ऑटो पार्ट्स के निर्यात में भी महत्वपूर्ण असर देखने को मिला है। इस श्रेणी में औसतन 16. 7% की गिरावट दर्ज की गई। इसमें एल्यूमीनियम के निर्यात में 37%, कॉपर में 25%, ऑटो कंपोनेंट में 12% और आयरन-स्टील में 8% की गिरावट आई। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह गिरावट भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता की कमी के कारण नहीं, बल्कि अमेरिकी औद्योगिक मांग में कमी के चलते आई है और इसका मतलब है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में ही कुछ संरचनात्मक मुद्दे हैं जो भारतीय निर्यात को प्रभावित कर रहे हैं, न कि केवल टैरिफ।

श्रम-गहन क्षेत्रों में तबाही

भारत के श्रम-गहन क्षेत्र, जैसे टेक्सटाइल (वस्त्र), जेम्स-ज्वेलरी (रत्न और आभूषण), केमिकल्स (रसायन) और एग्री-फूड्स (कृषि-खाद्य उत्पाद), ने संयुक्त रूप से 33% की गिरावट दर्ज की है। ये क्षेत्र लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं और इन क्षेत्रों में गिरावट का मतलब बड़े पैमाने पर रोजगार का नुकसान और आर्थिक अस्थिरता हो सकता है। यह स्थिति भारत के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

जेम्स और ज्वेलरी सेक्टर की दुर्दशा

विशेष रूप से, जेम्स और ज्वेलरी सेक्टर में 60% की भारी गिरावट आई है। मई में जहां इस सेक्टर का निर्यात 500. 2 मिलियन डॉलर था, वहीं सितंबर में यह घटकर मात्र 202. 8 मिलियन डॉलर रह गया और gTRI के अनुसार, इस गिरावट से थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों ने भारत का बाजार हिस्सा छीनना शुरू कर दिया है। यह दर्शाता है कि अमेरिकी टैरिफ ने भारतीय उत्पादों को महंगा बना दिया है, जिससे खरीदार अन्य देशों की ओर रुख कर रहे हैं जहां उन्हें कम लागत पर समान उत्पाद मिल रहे हैं।

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र पर भी मार

रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर, विशेष रूप से सोलर पैनल के निर्यात में भी 60. 8% की गिरावट दर्ज की गई है। सोलर पैनल का निर्यात 202. 6 मिलियन डॉलर से घटकर 79 और 4 मिलियन डॉलर रह गया। यह भारत के हरित ऊर्जा लक्ष्यों और वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला में उसकी भूमिका के लिए एक झटका है। यह गिरावट ऐसे समय में आई है जब दुनिया भर में स्वच्छ ऊर्जा की मांग। बढ़ रही है, और भारत इस क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी बनने की क्षमता रखता है।

प्रतिस्पर्धी देशों को लाभ

इस बीच, चीन और वियतनाम जैसे देशों को अमेरिका में कम टैरिफ (20–30%) का फायदा मिल रहा है। यह उन्हें भारतीय निर्यातकों की तुलना में एक महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धी लाभ प्रदान करता है। मेक्सिको भी अमेरिकी बाजार में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। GTRI की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर जल्द नीति-स्तर पर कदम नहीं उठाए गए तो भारत वियतनाम, मेक्सिको और चीन जैसे देशों से अपने पारंपरिक बाजार खो सकता है। यह स्थिति भारतीय निर्यातकों के लिए एक दोहरी चुनौती पेश करती है: एक तरफ अमेरिकी टैरिफ का बोझ, और दूसरी तरफ प्रतिस्पर्धी देशों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा।

आगे की राह और नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता

GTRI की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इन टैरिफों ने भारतीय निर्यातकों के मार्जिन को बुरी तरह दबा दिया है और देश के एक्सपोर्ट सेक्टर की संरचनात्मक कमजोरियों को उजागर किया है। यह समय है कि भारत सरकार और उद्योग जगत मिलकर इस चुनौती का सामना करें। नीतिगत स्तर पर तत्काल और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि भारतीय निर्यातकों को राहत मिल सके और वे वैश्विक बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रख सकें। इसमें अमेरिकी प्रशासन के साथ बातचीत, वैकल्पिक बाजारों की तलाश, और। घरेलू उद्योगों को समर्थन देने के उपाय शामिल हो सकते हैं।