India-Russia Relation / अमेरिकी रिपोर्ट का दावा, भारत और चीन चोरी-छुपे रूस की मदद कर रहे!

अमेरिका और रॉयटर्स रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत और चीन, रूस को परोक्ष रूप से युद्ध में मदद कर रहे हैं। भारतीय कंपनी ने विस्फोटक रसायन भेजे, जबकि चीन ने ड्रोन इंजन। अमेरिका ने चेतावनी दी—रूस से व्यापार पर पाबंदी और 100% टैरिफ लगेगा।

India-Russia Relation: यूक्रेन में चल रहे युद्ध के बीच अमेरिका और पश्चिमी देशों के तमाम प्रतिबंधों के बावजूद भारत और चीन एक बार फिर चर्चा में हैं। अमेरिकी न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की एक हालिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत और चीन, रूस की जंग में परोक्ष रूप से मदद कर रहे हैं। यह मदद सीधे हथियारों की सप्लाई के रूप में नहीं, बल्कि उन सामग्रियों के जरिए हो रही है, जो युद्ध में इस्तेमाल हो सकती हैं।

भारत पर आरोप: विस्फोटक रसायनों की सप्लाई

रिपोर्ट के अनुसार, भारत की एक निजी कंपनी ने रूस की दो कंपनियों को करीब 11.7 करोड़ रुपये (1.4 मिलियन डॉलर) के विस्फोटक रसायन बेचे हैं। इनमें से एक कंपनी, Promsintez, का सीधा संबंध रूसी सेना से बताया जा रहा है। इसका मतलब है कि ये रसायन न केवल खनन जैसे नागरिक कार्यों में, बल्कि सैन्य उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल हो सकते हैं।

  • विवरण:

    • Promsintez को 1 मिलियन डॉलर (लगभग 8.4 करोड़ रुपये) का माल सप्लाई किया गया।

    • दूसरी रूसी कंपनी, High Technology Initiation Systems, को 4 लाख डॉलर (लगभग 3.3 करोड़ रुपये) का सामान भेजा गया। यह कंपनी खुद को खनन से जुड़ी बताती है, लेकिन इसके सैन्य उपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

हालांकि, भारत सरकार ने अभी तक इस रिपोर्ट पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, और वॉशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है।

चीन पर इल्ज़ाम: ड्रोन इंजन या फ्रिज यूनिट?

रिपोर्ट में चीन पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। दावा है कि चीन की एक कंपनी, Beijing Xichao International Technology and Trade, ने रूस की हथियार निर्माता कंपनी Kupol को ड्रोन इंजन सप्लाई किए। लेकिन कागजों में इन्हें औद्योगिक रेफ्रिजरेशन यूनिट्स के रूप में दिखाया गया।

  • महत्वपूर्ण तथ्य:

    • Kupol का रूस के रक्षा मंत्रालय के साथ करार है, जिसके तहत वह 2025 तक 6,000 लड़ाकू ड्रोन बनाएगी—पिछले साल की तुलना में तीन गुना ज्यादा।

    • अमेरिकी विदेश मंत्रालय का कहना है कि रूस को मिलने वाली 80% से ज्यादा डुअल-यूज़ टेक्नोलॉजी (जो नागरिक और सैन्य दोनों कामों में इस्तेमाल हो सकती है) चीन से आती है।

चीनी दूतावास ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि चीन ने कभी किसी देश को जानलेवा हथियार नहीं दिए। साथ ही, उन्होंने दावा किया कि डुअल-यूज़ सामानों और ड्रोन से जुड़े नियमों में चीन का नियंत्रण दुनिया में सबसे सख्त है। हालांकि, अमेरिकी सीनेटर मार्को रुबियो सहित कई अधिकारियों ने इन दावों को "झूठा और भ्रामक" करार दिया।

अमेरिका का रुख: भारत पर नरम, चीन पर सख्त

रिपोर्ट में भारत को लेकर अमेरिका का रुख अपेक्षाकृत नरम दिखता है। अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत को "रणनीतिक साझेदार" बताते हुए कहा कि रूस के मुद्दे पर भारत के साथ "ईमानदारी और पारदर्शिता" के साथ बातचीत होती है। लेकिन साथ ही चेतावनी भी दी गई कि अगर कोई विदेशी कंपनी या बैंक रूस के सैन्य तंत्र से जुड़ा पाया गया, तो उसे सख्त अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।

वहीं, चीन के खिलाफ अमेरिका का लहजा काफी तल्ख है। अधिकारियों का कहना है कि चीन रूस की युद्ध नीति का सबसे बड़ा समर्थक है, और वह ऐसी चालाकी भरे तरीकों से मदद करता है कि उसे पकड़ना मुश्किल हो।

ट्रंप की चेतावनी: 100% टैरिफ का खतरा

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने रूस को लेकर सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि अगर सितंबर 2025 तक रूस शांति समझौते पर सहमत नहीं होता, तो रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 100% टैरिफ और अन्य पाबंदियां लगाई जाएंगी। भारत और चीन, जो रूस से भारी मात्रा में तेल आयात करते हैं, के लिए यह चेतावनी गंभीर हो सकती है। खासकर भारत की ऊर्जा नीति और तेल आयात पर इसका बड़ा असर पड़ सकता है।