देश / ...जब मोदी ने कहा था, 'मैं डिबेट में आने को तैयार हूं, लेकिन मेरे पास कार नहीं है'

AajTak : Sep 17, 2020, 08:53 AM
Delhi: गुजरात के वडनगर में पैदा हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 70 साल के हो गए। उन्होंने एक गरीब परिवार में जन्म लिया, लेकिन जीवन की प्रगति में कभी गरीबी को आड़े नहीं आने दिया। वह छोटे समुदाय घांची से आते हैं, लेकिन गुजरात में प्रभावी माने जाने वाले पटेल को हटाकर मुख्यमंत्री बने। उन्होंने संघ के छोटे कार्यकर्ता से शुरुआत की और देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचे। कहा जाता है कि आज वह संगठन और सरकार से बड़े हो गए हैं। उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं है। लेकिन एक समय ऐसा भी आया था जब पार्टी ने उन्हें गुजरात से बाहर कर दिया। लेकिन इसमें तपकर वह और मजबूत हुए। निर्वासन के समय को उन्होंने खुद को संवारने और अपनी पहचान बनाने में लगाया।

यह वह दौर था जब प्राइवेट टीवी चैनलों का आगाज हो रहा था। मोदी को यह समझने में देर न लगी कि यह माध्यम उन्हें नया अवसर देगा। वह डिबेट का हिस्सा होने लगे और इसके लिए कभी दंभ नहीं पाला। वह लोगों के बुलावे पर सहर्ष आने को तैयार हो जाते थे। डिबेट में पार्टी का पक्ष मजबूती से रखते। उन्हें हिंदुत्व या पार्टी की नीतियों को लेकर कोई कन्फ्यूजन नहीं रहता। इंडिया टुडे टीवी के Consulting Editor राजदीप सरदेसाई ने अपनी किताब The election that changed India में कई वाकयों का जिक्र किया है, इसमें से एक है जिसमें मोदी ने उनसे कहा था कि वह डिबेट में आने को तैयार हैं, लेकिन उनके पास कार नहीं है।  

1995 में गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए। भारतीय जनता पार्टी ने 182 में से 121 सीटें जीतकर दो तिहाई बहुमत हासिल किया। इस चुनाव में कैंपेन संभालने वाले नरेंद्र मोदी ने परिणाम के दिन कहा था कि यह उनकी जिंदगी का सबसे खुशी का दिन है। तब केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। वह बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री थे। उस दौर में मोदी कहीं लाइमलाइट में नहीं थे। हालांकि पार्टी का एक तबका उन्हें सुपर चीफ मिनिस्टर मानने लगा था। कुछ ही दिन बाद पार्टी में मतभेद उभरने लगे। पार्टी के कद्दावर नेता शंकर सिंह बाघेला ने विद्रोह कर दिया और केशुभाई पटेल को त्यागपत्र देना पड़ा। सुरेश मेहता को मुख्यमंत्री बनाया गया। नरेंद्र मोदी पर आरोप लगा कि वह पार्टी को बांटकर अपनी चलाना चाह रहे हैं। उन्हें हिमाचल और हरियाणा का प्रभारी बनाकर गुजरात से बाहर भेज दिया गया।  


राजनीतिक गेस्ट

यह मोदी के वनवास के दिन थे। उनके लिए एक नई चुनौती थी। वह अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभा रहे थे, लेकिन उनके दिल में गुजरात बसता था। ऐसा कहा जाता है कि वह हर हाल में गुजरात का मुख्यमंत्री बनना चाहते थे। यह प्राइवेट टीवी चैनल के उभार के दिन थे। डिबेट वाले कार्यक्रमों की शुरुआत हो चुकी थी। मोदी राष्ट्रीय मुद्दों पर बोलना चाहते थे और टीवी को अपने कार्यक्रम के लिए एक हिंदी वक्ता की जरूरत होती थी। दोनों एक-दूसरे की जरूरत बन गए। वह प्राइम टाइम में चैनलों पर राजनीतिक गेस्ट बनने लगे। मोदी चैनल की अहमियत समझ चुके थे।  

राजदीप सरदेसाई एक वाकये का जिक्र करते हुए अपनी किताब में लिखते हैं। रात 10 बजे एक लाइव शो ऑनएयर होने वाला था। विजय मल्होत्रा बीजेपी की तरफ से कार्यक्रम में आने वाले थे, लेकिन 8।30 बजे उनका आना कैंसल हो गया। अब उस कार्यक्रम के लिए कोई दूसरा गेस्ट चाहिए था। उन्होंने नरेंद्र मोदी को फोन किया और गुजराती में कहा कि ‘आवे जाओ नरेंद्र भाई, तम्हारी जरूरत छे’  मोदी ने 60 सेकेंड में आने की हामी भर दी। उन्होंने कहा कि मैं कार्यक्रम में आने के लिए तैयार हूं, लेकिन मेरे पास कार नहीं है। मोदी तब बीजेपी ऑफिस के बगल में 9 अशोका रोड पर दूसरे संघ प्रचारकों के साथ रहते थे। 


'मैं आ गया'

राजदीप अपनी किताब में लिखते हैं कि तब मैंने उनसे वादा किया कि वह टैक्सी से आ जाएं, उन्हें उसके पैसे दे दिए जाएंगे। कार्यक्रम का समय हो रहा था और मोदी का आने का कोई समाचार नहीं मिल पा रहा था। जब प्रोग्राम ऑनएयर होने में केवल 5 मिनट रह गए। मोदी ने स्टूडियो में प्रवेश किया और वहीं से चिल्लाते हुए कहा कि ‘राजदीप मैं आ गया, मैं आ गया’। वह जानते थे कि उन्हें किसी के स्थान पर लाया गया है। लेकिन उन्होंने इसकी परवाह न करते हुए टीवी पर आने का मौका हाथ से नहीं जाने दिया।  

इसी तरह के दूसरे वाकये का जिक्र करते हुए राजदीप लिखते हैं, आगरा समिट के दौरान जब मुशर्रफ भारत आए थे तब भी मोदी आपात समय में काम आए। कार्यक्रम की राउंड ओ क्लॉक कवरेज की तैयारी थी और उन्हें एक ऐसे गेस्ट की जरूरत थी जो अतिरिक्त समय दे सके। विजय चौक पर लगी ओबी वैन तक आने के लिए मोदी तैयार हो गए। लेकिन जब मोदी आए तो बारिश शुरू हो गई। सिग्नल ने काम करना बंद कर दिया। बिना किसी शोर शराबे के मोदी छाता लेकर बैठे रहे। उन्होंने तकरीबन दो घंटे तक इंतजार किया और ऑनएयर हुए।  

इसे एक नजरिए से तो देखें तो कहा जा सकता है कि उन्हें टीवी पर आने की चाह थी, वह न्यूज में बने रहना चाहते थे। लेकिन अगर उस दौर को याद करें तो एक तरफ प्रमोद महाजन थे जो प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी के दाहिने हाथ माने जाते थे। सुषमा स्वराज थीं, जिन्होंने सोनिया को बेल्लारी में चुनौती देकर मीडिया में अलग जगह बना ली थी। अरुण जेटली थे, जो क्राइसिस मैनेजर की तरह उभर रहे थे। दूसरी ओर मोदी अपनी अलग पहचान बनाने में लगे थे। हिमाचल और हरियाणा का प्रभारी रहते हुए उन्होंने टीवी पर अपनी विशेष जगह बना ली थी। वह ऐसे वक्ता थे जो हिंदुत्व के पक्ष में खुलकर बोलते थे, पार्टी नीतियों को तार्किक तरीके से रखते थे और किसी भी मुद्दे पर पीछे नहीं हटते थे। 


गुजरात का सीएम बनाने का फैसला

2001 में केशुभाई पटेल गुजरात के सीएम थे, उस समय गुजरात के विधानसभा उपचुनाव और निगम के चुनाव में बीजेपी बुरी तरह पराजित हो गई थी। इसी दौरान 26 जनवरी 2001 को कच्छ में भीषण भूकंप आया। काफी जान माल का नुकसान हुआ, लेकिन सरकार वह नहीं कर पा रही थी। जनता में असंतोष फैल रहा था। मोदी का मानना था कि सरकार जो कर रही है उससे ज्यादा कर सकती है नहीं तो लोग उसे याद नहीं रखेंगे। इन परिस्थितियों में नरेंद्र मोदी को गुजरात का सीएम बनाने का फैसला हुआ। हालांकि गुजरात के पार्टी पदाधिकारियों ने इसका विरोध किया, लेकिन वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी ने आरएसएस के समर्थन से उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया।   

।।।।इसके बाद मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2014 में देश की कमान अपने हाथ में ले ली। 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खाते में 282 सीटें आईं। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक फिर चला और बीजेपी ने प्रचंड जीत दर्ज करते हुए 303 सीटों पर कब्जा जमाया। हालांकि दूसरे कार्यकाल में कोरोना समेत कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं जिससे निपटना मोदी के सामने चैलेंज होगा। 

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