अफगानिस्तान / कौन हैं तालिबान के मुल्लाह हसन अखून्द जो अफगानिस्तान की कार्यवाहक सरकार के प्रमुख हैं?

Zoom News : Sep 08, 2021, 09:11 AM
काबुल: 15 अगस्त को काबुल पर कब्जे के 23वें दिन आज तालिबान ने अंतरिम सरकार का ऐलान कर दिया. मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को मंत्रि परिषद का प्रमुख यानी नई सरकार का मुखिया बनाया गया है. अभी से करीब एक घंटे पहले तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने प्रेस कॉन्फ्रेस कर तालिबान की अंतरिम सरकार गठन की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि अभी एक केयरटेकर कैबिनेट. सरकार की जिम्मेदारी संभालेगी और अफगानिस्तान में पुराने सभी मंत्रालय बरकरार रहेंगे.

मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को अंतरिम सरकार का सुप्रीम लीडर यानी प्रधानमंत्री बनाया गया है. मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को डिप्टी पीएम बनाया गया है. अब्दुल सलाम हनाफी को भी अंतरिम सरकार में उप प्रधानमंत्री बनाया गया है. सिराजुद्दीन हक्कानी को तालिबान की अंतरिम सरकार में गृह मंत्रालय दिया गया है. इसके अलावा मोहम्मद याकूब को रक्षा मंत्री, मौलवी आमिर खान मुताक्की को विदेश मंत्री, शेर मोहम्मद स्टानिकजई को उप विदेश मंत्री बनाया गया और हिदायतुल्ला बदरी को तालिबान की अंतरिम सरकार में वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है. तो अंतरिम ही सही, लेकिन अफगानिस्तान सरकार को अपना सुप्रीम लीडर मिल गया है. आइए आपको मुल्ला हसन अखुंद के बारे में विस्तार से बताते हैं.

मुल्ला अखुंद क्वेटा स्थित रहबरी शूरा के प्रमुख हैं. रहबरी शूरा को क्वेटा शूरा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये पाकिस्तान के बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में है. मुल्ला अखुंद पख्तून मूल के हैं और इनकी रिहाइश कंधार की है. ये तालिबान के फाउंडर मेंबर भी हैं. क्वेटा शूरा में 20 साल तक काम करने के बाद मुल्ला अखुंद को तालिबान बड़ी इज्जत से देखते हैं यानी एक फौजी कमांडर से ज़्यादा इनका नाम एक धार्मिक नेता के रूप में है. मुल्ला अखुंद ने पाकिस्तान के कई मदरसों में पढ़ाई की है. खास बात ये कि अखुंद अफगानिस्तान की पिछली सरकारों में बड़े पदों पर रहे हैं.

जब मोहम्मद रब्बानी अखुंद प्रधानमंत्री थे, उस समय मुल्ला अखुंद पहले विदेश मंत्री और उसके बाद उप प्रधानमंत्री की ज़िम्मेदारी संभाल चुके हैं. ये कंधार के गवर्नर और 2001 में मंत्री परिषद के उप-प्रधान भी थे. आपको ये भी बता दें कि शूरा क्या होता है. दरअसल शूरा एक अरबी शब्द है. आप इसे ऐसे समझिए कि ये समिति या कमेटी जैसी संस्था होती जो सलाह देने का काम करती है. पाकिस्तान के क्वेटा शहर से तालिबान के कई बड़े नेता जुड़े हुए हैं और वहीं से फ़रमान भी जारी करते रहे हैं इसीलिए तालिबान की ये समिति क्वेटा शूरा कहलाती है.

तालिबानी सरकार में एक और अहम चेहरा है, जिसका नाम है सिराजुद्दीन हक्कानी. सिराजुद्दीन हक्कानी को अंतिरम सरकार में गृह मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया है. वो हक्कानी नेटवर्क बनाने वाले जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा है. असल में हक्कानी गुट अफगानिस्तान में पाकिस्तान का मोहरा है, जिसका चीफ है सिराजुद्दीन. सिराजुद्दीन हक्कानी तालिबान का डिप्टी लीडर भी है. ये शख्स पूरी तरह से पाकिस्तान परस्त है. पाकिस्तान के इशारों पर चलता है. सिराजुद्दीन हक्कानी का नाम ग्लोबल टेररिस्ट की लिस्ट में है और अमेरिका ने उस पर 50 लाख डॉलर का इनाम घोषित कर रखा है.

तालिबान की सरकार को मान्यता देने में जल्दबाजी न करे दुनियाः तुर्की

अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने से ठीक पहले तुर्की ने बड़ा बयान दिया है. तुर्की के विदेश मंत्री यूसुफ एरिम ने कहा कि हमारी दुनिया को यही सलाह है कि वो तालिबान की सरकार को मान्यता देने में किसी तरह की जल्दबाजी न करें और आज जो अफगानिस्तान से तस्वीरें आई हैं. वो रिपोर्ट भी ऐसा ही कुछ कह रही है. क्योंकि आज अफगानिस्तान से लेकर अमेरिका तक पाकिस्तान के खिलाफ आवाज़ उठी. काबुल से लेकर लंदन तक पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन हुए. काबुल में तालिबानियों ने क्रूरता से इस जन आंदोलन को दबाने की कोशिश की. महिलाओं को मार-पीटकर और गोलियां चलाकर प्रदर्शन को कुचलने की कोशिश की. अफगानी मीडिया के मुताबिक आज के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान तालिबान ने 40 प्रदर्शनकारियों को मौत के घाट उतार दिया.

काबुल के परवान में भी तालिबानियों ने एक प्रदर्शनकारी को गोली मार दी, जिसके शव को सड़क पर रखकर उसके परिवारवालों प्रदर्शन किया. तालिबानियों के कहने के बावजूद इसके परिवारवाले शव को दफनाने को तैयार नहीं हुए और काफी देर तक वहां पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाते रहे. पंजशीर में भी आज पाकिस्तान के खिलाफ रैली निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में आम अफगानी शामिल हुए, लेकिन तस्वीर में दिख रहा है तालिबान इस जन विद्रोह को दबाने की कोशिश कर रहे हैं. रैली के आगे हथियारबंद तालिबानी गाड़ियां खड़ी कर रहे हैं.

इतना ही नहीं आम अफगानियों में दहशत पैदा करने के लिए तालिबानी काबुल में घर-घर जाकर प्रदर्शनकारियों की तलाश भी कर रहे हैं. उन्हें बंधक बना रहे हैं. बताया जाता है कि करीब 750 प्रदर्शनकारियों को तालिबानियों ने गिरफ्तार किया है, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी हैं. सीने में इंकलाब का जज्जा और ज़ुबां पर आजादी के नारे. ये अफगानिस्तान के अवाम का क्रोध है. पाकिस्तान के खिलाफ अफगानों का फूटता गुस्सा है.

अफगानिस्तान की इस अवाम को आजादी चाहिए पाकिस्तान से. आजादी चाहिए पाकिस्तान की क्रूर खुफिया एजेंसी ISI से. और इसीलिए काबुल की सड़कों पर हजारों का हुजूम उमड़ा. काबुल में पाकिस्तानी दूतावास के पास विरोध प्रदर्शन का मोर्चा महिलाओं ने संभाला. हाथों में अफगानी झंडा और बैनर-पोस्टर लेकर. पाकिस्तान के खिलाफ आवाज़ बुलंद किया. आजादी के नारे लगाए. और पंजशीर के समर्थन का ऐलान किया. काबुल में प्रेसिडेंशियल पैलेस से लेकर हर गली-मुहल्ले में पाकिस्तान के खिलाफ रैली निकली. ISI के खिलाफ नारेबाजी हुई.

खुली जंग को देख तालिबान घबराया

तालिबान राज में ऐसे जन-विद्रोह की कल्पना किसी ने नहीं की थी. ना तालिबान ने, ना अफगानिस्तान में सीधे दखल दे रहे पाकिस्तान ने. लिहाजा जनता की इस खुली जंग को देख तालिबान घबरा गया. प्रदर्शनकारियों के नेताओं को देशद्रोही बताने लगा और उन्हें सजा की धमकी देने लगा. कुछ ही देर बाद काबुल की सड़कों पर तालिबानी गोलियां गूंजने लगीं. पाकिस्तान दूतावास के पास जिस रैली की अगुवाई महिलाएं कर रही थीं. वहां सैकड़ों राउंड गोलियां चलीं. काबुल की जिन सड़कों पर भी पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शन चल रहे थे. वहां भीड़ को तितर-बितर करने के लिए तालिबानियों ने अंधाधुंध फायरिंग की.

मतलब बंदूक की नोक पर तालिबान ने काबुल में आम अवाम की आवाज को दबाने की कोशिश की, लेकिन तालिबानी गोलियों के आगे भी महिलाएं नहीं झुकीं. तो तालिबानियों ने कई महिला प्रदर्शनकारियों की पिटाई भी कर दी. काबुल के विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए सिटाडेल गेट के पास तालिबान ने कई महिलाओं को हिरासत में भी लिया और काबुल की इन तस्वीरों को जिस किसी मीडिया पर्सन ने कवर किया. तालिबान ने उन्हें भी निशाना बनाया. टोलो न्यूज़ के कैमरा पर्सन वाहिद अहमदी को भी तालिबानियों ने हिरासत में ले लिया.

इस बीच नॉर्थ काबुल की सड़क पर एक ऐसी भी तस्वीर दिखी, जो तालिबान को सीधी चुनौती दे रही थी. देखिए यहां प्रदर्शनकारियों को तितर बितर करने के लिए तालिबानी लड़ाके हवाई फायरिंग कर रहे हैं. तभी बीच सड़क पर एक प्रदर्शनकारी सीना तानकर तालिबानियों से कहने लगा. मुझे गोली मार दो और इसके बाद वहां मौजूद सभी प्रदर्शनकारी पाकिस्तान मुर्दाबाद और नेशनल रेजिस्टेंस फोर्स जिंदाबाद के नारे लगाने लगे. कुल मिलाकर काबुल में पाकिस्तान के खिलाफ अवाम का जंग-ए-एलान हो चुका है. सोमवार रात से ही आम लोगों का गुस्सा पाकिस्तान के खिलाफ फूटने लगा है, जिसे तालिबानी गोलियों से दबाने की कोशिश की जा रही है.

पाकिस्तान के खिलाफ जन आंदोलन की ऐसी तस्वीरें लगातार सामने आ रही है. दरअसल, अफगानिस्तान में पाकिस्तान के बढ़ते दखल से पूरी दुनिया में आक्रोश है. अमेरिका से लेकर यूनाइटेड किंगडम तक आज पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन हुए. वाशिंगटन में सैकड़ों लोगों ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ रैली निकाली, जिसमें अफगानी नागरिकों के अलावा दूसरे लोग भी शामिल हुए. इसी तरह लंदन में भी अफगानिस्तान में पाकिस्तान के दखल के खिलाफ मोर्चा निकला, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए. लंदन से लेकर वाशिंगटन तक पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगे और अफगानिस्तान में शांति के लिए पूरी दुनिया से एकजुट होने की अपील की गई.

पाकिस्तान के कुचक्र रचने के पीछे सबसे अहम कारण डूरंड रेखा

दरअसल, अफगानिस्तान में पाकिस्तान के कुचक्र रचने के पीछे सबसे अहम कारण डूरंड रेखा है, जो अफगानिस्तान और पाकिस्तान को अलग करती है, लेकिन इस रेखा को अफगानिस्तान ने कभी भी कबूल नहीं की और पाकिस्तान को डर है कि अगर उसने तालिबानी सत्ता में अपने प्यादे फिट नहीं किए तो पाकिस्तान के एक बड़े हिस्से पर अफगानिस्तान का कब्जा होगा. पाकिस्तान की शह पाकर जिस तालिबान ने अमेरिका से लोहा लिया. जिस तालिबान की जीत पर पाकिस्तान झूम रहा था. अब उसी तालिबान की वजह से पाकिस्तान टेंशन में है क्योंकि अफगान बॉर्डर पर तालिबान लड़ाकों की गोलियां अब पाकिस्तानी फौजियों का सीना छलनी करने लगी हैं.

फौज ने कहा है कि पाक-अफगान बॉर्डर पर बाजौर में फौजी चौकी पर सरहद पार से फायरिंग हुई है. अफगानिस्तान से आतंकियों ने बाजौर में फौजी चेकपोस्ट पर फायरिंग की. दहशतगर्दों के साथ जवाबी फायरिंग में फौज के दो जवान शहीद हो गए. करीब 48 घंटे पहले पाक-अफगान बॉर्डर से लगे बाजौर में दो पाकिस्तानी फौजियों को तालिबानियों ने मार गिराया और उसकी वजह ये है कि तालिबान मौजूदा पाक-अफगान बॉर्डर को मानता ही नहीं हैं, जिसे डूरंड लाइन कहा जाता है.

साल 1893 में अफगान अमीर अब्दुर रहमान खान और ब्रिटिश हूकूमत के बीच समझौता हुआ था. .जिसकी मियाद सौ बरस थी यानी 1993 में वो समझौता खत्म होना था. अफगानिस्तान का मानना है कि ये समझौता ब्रिटिश भारत से हुआ था, इसलिए 14 अगस्त 1947 को इसे खत्म माना जाए तब से अफगानिस्तान ने डूरंड लाइन को अंतरराष्ट्रीय सीमा के तौर पर मान्यता नहीं दी है. 2640 किलोमीटर लंबी इस सीमा रेखा को ना तो अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकारों ने माना और ना ही तालिबान मानता है, लेकिन पाकिस्तान करीब-करीब इस पूरी सरहद की फेंसिंग कर चुका है. कंटीले तार लगा चुका है.

पाकिस्तान को तहरीक-ए-तालिबान के आतंकियों की घुसपैठ का डर

अफगानिस्तान के लोग नाराज हैं और फेंसिंग का विरोध कर रहे हैं. हम बॉर्डर पर सुरक्षित और शांतिपूर्ण माहौल चाहते हैं. तालिबान का ये बयान पाकिस्तान के हुक्मरानों और फौजी जनरलों के दिल में शूल की तरह चुभ गया है. डूरंड लाइन पर तालिबान के इस रुख के बाद पाकिस्तान को अपने टुकड़े होने का डर भी सताने लगा है क्योंकि डूरंड लाइन से सटे इलाके 3.5 करोड़ आबादी वाले पश्तूनों का गढ़ है. वो पश्तून जो लंबे वक्त से पाकिस्तान से आजादी की मांग कर रहे हैं. पाकिस्तान का एक डर और है और वो है अफगानिस्तान से उमड़ती शरणार्थियों की भीड़.

पाकिस्तान को इस भीड़ में TTP यानी तहरीक-ए-तालिबान के आतंकियों की घुसपैठ का डर है. गौरतलब है कि तालिबान ने TTP के 2300 से ज्यादा लड़ाकों को रिहा किया. इनमें TTP का टॉप लीडर मौलवी फकीर मोहम्मद भी शामिल था. TTP का मकसद पाकिस्तान में शरिया पर आधारित एक कट्टरपंथी इस्लामी शासन कायम करना है. 14 साल पहले वजूद में आया TTP पाकिस्तान में कई हमले कर चुका है और पाकिस्तान को डर है कि शरणार्थीयों के साथ TTP के दहशतगर्द पाकिस्तान में घुसकर तांडव मचा सकते हैं. अफगानिस्तान में सड़क पर उतरी महिलाओं ने इमरान, बाजवा और ISI को बेनकाब कर दिया. बेखौफ प्रदर्शनकारी महिलाओं ने तीनों को ही आईना दिखा दिया है.

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