US-Pakistan Relations / PAK ने US के सामने क्यों फेंका अरब सागर में पोर्ट बनाने का पासा

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका को अरब सागर में पासनी बंदरगाह बनाने का प्रस्ताव दिया है। 1.2 अरब डॉलर की इस परियोजना से भारत, चीन और ईरान की रणनीति पर असर पड़ सकता है। यह कदम दक्षिण एशिया की राजनीति में नया अध्याय खोलता है।

US-Pakistan Relations: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने के बाद पाकिस्तान ने अमेरिका के सामने एक ऐसा रणनीतिक दांव खेला है, जिससे अरब सागर के तटीय क्षेत्र में नई भू-राजनीतिक लहरें उठने लगी हैं। वित्तीय टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के सलाहकारों ने अमेरिकी अधिकारियों को अरब सागर के किनारे पासनी में एक नए बंदरगाह के निर्माण और संचालन का प्रस्ताव सौंपा है। इस परियोजना के लिए अनुमानित 1.2 अरब डॉलर की फंडिंग की मांग की गई है, जिसमें पाकिस्तान और अमेरिका की संयुक्त भागीदारी होगी। यह कदम न केवल इस्लामाबाद-वाशिंगटन संबंधों को मजबूत करने का प्रयास है, बल्कि दक्षिण एशिया की जटिल शक्ति संतुलन में एक नया मोड़ भी ला सकता है।

पासनी बंदरगाह प्रस्ताव की पृष्ठभूमि: क्यों चली पाकिस्तान ने यह चाल?

पासनी, बलूचिस्तान प्रांत का एक छोटा मछली पकड़ने वाला शहर, ग्वादर बंदरगाह से महज 100 किलोमीटर दूर स्थित है। यह प्रस्ताव सितंबर में व्हाइट हाउस में हुई बैठक के बाद आया, जहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और आसिम मुनीर ने ट्रंप से कृषि, प्रौद्योगिकी, खनन और ऊर्जा क्षेत्रों में निवेश की अपील की थी। उस बैठक में मुनीर और शरीफ ने ट्रंप को पाकिस्तान के दुर्लभ खनिजों के नमूने भेंट किए, जो बैटरी, अग्निरोधी सामग्री और मिसाइल निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, यह योजना अमेरिकी निवेशकों द्वारा पासनी में एक टर्मिनल विकसित करने पर केंद्रित है, जो रेको डीक जैसे खदानों से जुड़ने वाली रेल नेटवर्क के माध्यम से तांबा और एंटीमनी जैसे खनिजों की ढुलाई सुनिश्चित करेगी।

पाकिस्तान की यह चाल उसके आर्थिक संकट और चीन पर बढ़ती निर्भरता के बीच आती है। ग्वादर, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का प्रतीक, पहले से ही क्षेत्रीय व्यापार का केंद्र है। लेकिन पासनी प्रस्ताव अमेरिका को एक वैकल्पिक प्रवेश द्वार प्रदान करता है, बिना किसी सैन्य अड्डे की मांग के। पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि यह एक व्यावसायिक विचार है, जो दक्षिण एशिया की उथल-पुथल में इस्लामाबाद की स्थिति मजबूत करेगा।

भारत पर संभावित प्रभाव: चाबहार के लिए नई चुनौती

पासनी की भौगोलिक स्थिति इसे एक संवेदनशील बिंदु बनाती है। ईरान की सीमा से 100 मील और भारत-समर्थित चाबहार बंदरगाह से मात्र 300 किलोमीटर दूर, यह परियोजना भारत की मध्य एशिया पहुंच को प्रभावित कर सकती है। चाबहार, जहां भारत शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल विकसित कर रहा है, अफगानिस्तान और ईरान के साथ व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने का माध्यम है। पासनी का विकास ग्वादर-चाबहार प्रतिस्पर्धा को और तीव्र कर सकता है, खासकर जब अमेरिका इसमें शामिल हो।

भारत के लिए यह नुकसानदेह हो सकता है क्योंकि यह अमेरिका को क्षेत्र में गहरा प्रभाव डालने का अवसर देगा, जो परोक्ष रूप से पाकिस्तान को मजबूत करेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि नई दिल्ली को अपनी रणनीति में संशोधन करना होगा, जिसमें चाबहार को और मजबूत करने के साथ-साथ अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संवाद बढ़ाना शामिल हो। बलूचिस्तान की अस्थिरता—जहां अलगाववादी विद्रोह जारी है—भी इस परियोजना को जोखिमपूर्ण बनाती है।

अमेरिका की संभावित रुचि: खनिजों और रणनीति का मिश्रण

ट्रंप प्रशासन के लिए यह प्रस्ताव आकर्षक है। पाकिस्तान के खनिज भंडार—जिनमें दुर्लभ पृथ्वी तत्व शामिल हैं—अमेरिकी आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत कर सकते हैं, खासकर चीन-निर्भरता कम करने के प्रयासों में। प्रस्ताव में सैन्य उपयोग की मनाही है, लेकिन यह केंद्रीय एशिया और अरब सागर में अमेरिकी प्रभाव बढ़ाने का माध्यम बनेगा। फंडिंग मॉडल में पाकिस्तानी संघीय संसाधनों और अमेरिकी विकास वित्त का मिश्रण होगा, जो आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देगा।

हालांकि, व्हाइट हाउस या स्टेट डिपार्टमेंट ने अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। ट्रंप के सलाहकारों ने इसे "व्यावसायिक विचार" बताया है, लेकिन पाकिस्तान की अफगानिस्तान में तालिबान समर्थन के इतिहास को देखते हुए, अमेरिका सतर्क रहेगा।

चीन और भारत पर उलटा असर: क्षेत्रीय समीकरण में बदलाव

चीन के लिए यह प्रस्ताव BRI को चुनौती दे सकता है। ग्वादर में भारी निवेश के बावजूद, पासनी अमेरिका को वैकल्पिक हब प्रदान करेगा, जो बीजिंग की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ खड़ा होगा। ईरान भी प्रभावित होगा, क्योंकि पासनी उसकी सीमा के करीब है। भारत के चाबहार प्रयासों के लिए यह एक अप्रत्यक्ष बाधा है, जो क्षेत्रीय व्यापार संतुलन को बिगाड़ सकता है।

विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान इस चाल से चीन पर दबाव बनाने और अमेरिका को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकते हैं।

पाकिस्तानी रणनीति का मूल: ट्रंप-मुनीर के गर्म होते संबंध

यह प्रस्ताव मई 2025 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बाद उभरे संबंधों का विस्तार है। ट्रंप ने युद्धविराम का श्रेय लिया, जबकि भारत ने तीसरे पक्ष की भूमिका नकार दी। पाकिस्तान ने ट्रंप को 2026 नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया, उनकी "रणनीतिक दूरदृष्टि" की सराहना करते हुए। जून में मुनीर का व्हाइट हाउस दौरा—पहली बार किसी पाकिस्तानी सेना प्रमुख का—इस "रणनीतिक रोमांस" को दर्शाता है। सितंबर की बैठक में खनिज नमूने भेंटना और अब बंदरगाह प्रस्ताव, पाकिस्तान की अमेरिका-झुकाव वाली नीति को स्पष्ट करता है।

एक पाकिस्तानी सलाहकार ने कहा, "युद्ध के बाद अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों की पूरी तस्वीर बदल गई है।" लेकिन विशेषज्ञ चेताते हैं कि यह "अस्थायी गठबंधन" हो सकता है, पाकिस्तान की चीन के साथ गहरी साझेदारी को देखते हुए।

एक नई भू-राजनीतिक दौड़ की शुरुआत?

पासनी बंदरगाह प्रस्ताव पाकिस्तान की जीवटपूर्ण कूटनीति का प्रतीक है, जो आर्थिक संकट के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है। लेकिन यह भारत, चीन और ईरान के लिए चिंता का विषय है, जो क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को हिला सकता है। यदि अमेरिका सहमत होता है, तो अरब सागर एक नई प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन सकता है। भारत को अब सक्रिय रणनीति अपनानी होगी, ताकि चाबहार जैसे प्रयास कमजोर न पड़ें। यह घटना दर्शाती है कि दक्षिण एशिया में शांति और व्यापार के बीच का रिश्ता कितना नाजुक है।