- भारत,
- 29-Nov-2025 05:43 PM IST
संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान में हाल ही में पारित 27वें संवैधानिक संशोधन पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की है, चेतावनी दी है कि यह देश के लोकतांत्रिक ढांचे और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से कमजोर कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायोग (ओएचसीएचआर) के प्रमुख वोल्कर टर्क ने इन बदलावों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि ये दूरगामी परिणाम वाले हैं, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों, सैन्य जवाबदेही और कानून के शासन के लिए खतरा पैदा करते हैं।
विवादास्पद 27वां संवैधानिक संशोधन
पाकिस्तान की संसद ने गत 13 नवंबर को जल्दबाजी में 27वें संवैधानिक संशोधन को पारित किया। इस संशोधन के तहत एक नई 'संघीय संवैधानिक अदालत' (एफसीसी) का गठन किया गया है, जिसे अब संवैधानिक मामलों की सुनवाई का अधिकार सौंपा गया है और यह अधिकार पहले पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के पास था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट केवल सिविल और आपराधिक मामलों तक सीमित रह जाएगा। यह बदलाव न्यायपालिका के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक को उससे छीन लेता है, जिससे उसकी सर्वोच्चता और प्रभाव कम हो जाता है और इसके अतिरिक्त, संशोधन में राष्ट्रपति, फील्ड मार्शल, एयर फोर्स मार्शल और नौसेना एडमिरल को आजीवन आपराधिक कार्यवाही या गिरफ्तारी से पूर्ण छूट प्रदान की गई है। यह प्रावधान सैन्य नेतृत्व को अभूतपूर्व कानूनी संरक्षण देता है, जिससे उन्हें किसी भी जवाबदेही से मुक्त कर दिया जाता है। इस संशोधन के प्रावधानों के कारण पाकिस्तान के पहले चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (सीडीएफ) बनाए गए असीम मुनीर के तानाशाह बनने की आशंका जताई जा रही है। सैन्य नेतृत्व को दी गई आजीवन छूट उन्हें किसी भी कानूनी जांच से परे कर देती है, जिससे उनकी शक्ति पर कोई प्रभावी नियंत्रण नहीं रह जाता। वोल्कर टर्क ने इस स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की है, क्योंकि यह एक व्यक्ति। या संस्था को अत्यधिक शक्ति प्रदान करता है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक है। जब सैन्य प्रमुखों को इस तरह की व्यापक छूट मिलती है, तो वे बिना किसी डर के निर्णय लेने में सक्षम हो जाते हैं, जिससे मनमानी और सत्ता के दुरुपयोग का खतरा बढ़ जाता है।लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर संयुक्त राष्ट्र की गहरी चिंता
वोल्कर टर्क ने शुक्रवार को कहा कि ये संशोधन व्यापक विचार-विमर्श, कानूनी विशेषज्ञों और नागरिक समाज की भागीदारी के बिना पारित किए गए। उन्होंने याद दिलाया कि पिछले साल 26वें संशोधन के साथ भी यही जल्दबाजी देखी गई थी, जो दर्शाता है कि महत्वपूर्ण संवैधानिक बदलावों को बिना पर्याप्त बहस और सहमति के लागू किया जा रहा है। टर्क ने चेतावनी दी कि ये बदलाव शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विपरीत हैं, जो कानून के शासन और मानवाधिकारों की रक्षा की नींव हैं। शक्तियों का पृथक्करण यह सुनिश्चित करता है कि सरकार की तीनों शाखाएं – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका – एक-दूसरे पर नियंत्रण और संतुलन बनाए रखें, लेकिन यह संशोधन इस संतुलन को बिगाड़ रहा है।न्यायपालिका की स्वतंत्रता का क्षरण
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, पाकिस्तान के इस कदम से वहां की न्यायपालिका कमजोर हो जाएगी। विशेष रूप से, प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा एफसीसी के पहले न्यायाधीशों की नियुक्ति से राजनीतिक हस्तक्षेप का खतरा बढ़ गया है। टर्क ने जोर देकर कहा कि न तो कार्यपालिका और न ही विधायिका को न्यायपालिका पर नियंत्रण या निर्देश देने का अधिकार होना चाहिए। निर्णय प्रक्रिया को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखना जरूरी है। उन्होंने याद दिलाया कि न्यायिक स्वतंत्रता का मूल्यांकन इस बात से होता है कि ट्रिब्यूनल को सरकारी हस्तक्षेप से कितना अलग रखा जाता है। यदि न्यायाधीश स्वतंत्र नहीं हैं, तो वे कानून को समान रूप से लागू करने और राजनीतिक दबाव में मानवाधिकारों की रक्षा करने में असफल रहते हैं। इसके अलावा, न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण की प्रक्रिया में भी व्यापक। परिवर्तन किए गए हैं, जो न्यायपालिका की संरचनात्मक स्वतंत्रता को कमजोर कर सकते हैं।जवाबदेही तंत्र का कमजोर होना
टर्क ने स्पष्ट किया कि सैन्य अधिकारियों को दी गई व्यापक छूट से मानवाधिकार ढांचा और लोकतांत्रिक नियंत्रण कमजोर होगा और उन्होंने कहा कि ऐसे प्रावधान जवाबदेही को नष्ट करते हैं, जो पाकिस्तान जैसे देश में लोकतंत्र की बुनियाद हैं। जब शक्तिशाली व्यक्तियों और संस्थाओं को कानूनी जवाबदेही से छूट मिल जाती है, तो वे अपने। कार्यों के लिए जिम्मेदार नहीं होते, जिससे भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के उल्लंघन की संभावना बढ़ जाती है। यह स्थिति नागरिकों के विश्वास को भी कमजोर करती है और उन्हें यह महसूस कराती है कि कानून सभी के लिए समान नहीं है।पुनर्विचार और संवाद का आह्वान
पाकिस्तान में ये संशोधन इमरान खान सरकार के खिलाफ विपक्षी दबाव के बीच आए हैं, जहां न्यायपालिका पर सैन्य प्रभाव के आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान से इन बदलावों पर पुनर्विचार करने और नागरिक समाज को शामिल करने को कहा है। मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे 'संवैधानिक तख्तापलट' बता रहे हैं, जो सैन्य वर्चस्व को मजबूत करेगा और देश को एक अधिक सत्तावादी शासन की ओर धकेलेगा। टर्क ने अंत में कहा कि पाकिस्तान की जनता के लिए लोकतंत्र और कानून का शासन सर्वोपरि है और इन सिद्धांतों की रक्षा हर सरकार का कर्तव्य है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि देश के संवैधानिक ढांचे में ऐसे। बदलाव न किए जाएं जो उसके लोकतांत्रिक भविष्य को खतरे में डालें।#Pakistan: @UNHumanRights is concerned that hastily adopted constitutional amendments risk far-reaching consequences for the principles of democracy & rule of law which the Pakistani people hold dear.
— UN Human Rights (@UNHumanRights) November 28, 2025
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