- भारत,
- 28-Sep-2025 08:40 PM IST
Donald Trump News: अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में तनाव चरम पर पहुंच गया है। रूस से सस्ते कच्चे तेल की खरीद को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत तक अतिरिक्त टैरिफ लगा दिए हैं, जो न केवल भारतीय निर्यातकों को झटका दे रहे हैं बल्कि दोनों देशों के बीच चल रही व्यापार वार्ताओं को भी जटिल बना रहे हैं। इस बीच, अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने भारत, ब्राजील और स्विट्जरलैंड जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदारों पर निशाना साधते हुए कहा है कि इन देशों को अमेरिका के प्रति "सही प्रतिक्रिया" (react correctly) देनी चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन देशों को अपने बाजार अमेरिकी हितों के अनुकूल खोलने होंगे, वरना वैश्विक उपभोक्ता बाजार के रूप में अमेरिका का दबदबा इन्हें मजबूर कर देगा।
रूसी तेल खरीद पर अमेरिकी नाराजगी: "गलत और हास्यास्पद"
यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत ने रूस से सस्ते कच्चे तेल की खरीद को बढ़ा दिया है, जो अब उसके कुल तेल आयात का लगभग 42 प्रतिशत है। अमेरिका का मानना है कि यह खरीद अप्रत्यक्ष रूप से रूस की युद्ध मशीन को फंड कर रही है। व्हाइट हाउस ने इसे "अनुचित लाभ" (profiteering) करार दिया है, जबकि भारत का कहना है कि यह वैश्विक ऊर्जा बाजार की स्थिरता के लिए जरूरी कदम है।
ट्रंप प्रशासन ने अगस्त 2025 में एक कार्यकारी आदेश जारी कर भारत से आयातित अधिकांश वस्तुओं पर मूल 25 प्रतिशत टैरिफ को दोगुना कर 50 प्रतिशत कर दिया। इसमें कपड़ा, रत्न-आभूषण, जूते, फर्नीचर और रसायन जैसे प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं, जो भारत के अमेरिकी निर्यात का 55 प्रतिशत हिस्सा हैं। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के अनुसार, इससे भारत के अमेरिकी निर्यात में 40-50 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है, जो लाखों नौकरियों को प्रभावित करेगी।
लुटनिक ने न्यूज नेशन को दिए साक्षात्कार में भारत की इस नीति को "पूरी तरह गलत और हास्यास्पद" बताया। उन्होंने कहा, "भारत को तय करना होगा कि वह किसके पक्ष में है।" यह बयान ऐसे समय आया जब अमेरिकी अधिकारियों ने भारत को चेतावनी दी कि रूसी तेल खरीद बंद न करने पर व्यापार सौदे में प्रगति रुकेगी। व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने तो इसे "मोदी का युद्ध" तक करार दे दिया, आरोप लगाते हुए कि भारत रूस और चीन के साथ मिलकर अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचा रहा है।
लुटनिक का बयान: "इन देशों को सुधारना होगा"
अमेरिकी वाणिज्य सचिव लुटनिक ने भारत को निशाने पर लेते हुए कहा, "हमारे पास कई देश हैं जिन्हें ठीक करना होगा—जैसे स्विट्जरलैंड, ब्राजील और भारत। इन देशों को वाकई अमेरिका के प्रति सही प्रतिक्रिया देनी चाहिए। इन्हें अपने बाजार खोलने होंगे और अमेरिका को नुकसान पहुंचाने वाली कार्रवाई बंद करनी होगी।" उन्होंने स्विट्जरलैंड का उदाहरण देते हुए कहा कि यह "छोटा अमीर देश" भी अमेरिका के साथ 40 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष चला रहा है, जो अस्वीकार्य है।
लुटनिक ने अमेरिका की $30 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था को दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बताते हुए चेतावनी दी, "हम दुनिया के उपभोक्ता हैं। लोगों को याद रखना होगा, हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया की उपभोक्ता है। इसलिए उन्हें ग्राहक के पास लौटना ही होगा, क्योंकि हम सभी जानते हैं कि अंत में ग्राहक हमेशा सही होता है।" यह टिप्पणी भारत और ब्राजील पर 50 प्रतिशत टैरिफ के संदर्भ में आई, जहां ब्राजील भी इसी दबाव का शिकार है।
व्यापार वार्ता: "भारत एक-दो महीने में लौटेगा"
कुछ हफ्ते पहले ही लुटनिक ने भारत की व्यापार वार्ता में की जा रही "विरोध" को प्रतीकात्मक बताया था। उन्होंने भविष्यवाणी की कि भारत एक-दो महीने में बातचीत की मेज पर लौट आएगा, क्योंकि भारतीय कंपनियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार पर दबाव डालेंगी। सितंबर 2025 में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने वाशिंगटन का दौरा किया, जहां दोनों पक्षों ने एक पारस्परिक लाभकारी व्यापार समझौते की रूपरेखा पर चर्चा की।
हालांकि, अमेरिकी पक्ष ने साफ कहा कि रूसी तेल खरीद पर रोक लगाना ही टैरिफ कम करने और सौदा अंतिम रूप देने की कुंजी है। भारत ने जवाब में अमेरिका और यूरोपीय संघ पर दोहरे मापदंड का आरोप लगाया, क्योंकि यूरोप अभी भी रूस से गैस खरीद रहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इसे "अनुचित और अविवेकपूर्ण" बताया।
भारत का रुख: "राष्ट्रीय हित सर्वोपरि"
भारतीय सरकार ने टैरिफ को "चौंकाने वाला" बताते हुए कहा कि वह राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाएगी। प्रधानमंत्री मोदी ने "मेक इन इंडिया" को बढ़ावा देते हुए कहा, "दबाव बढ़ सकता है, लेकिन हम सहन करेंगे।" विशेषज्ञों का मानना है कि यह टकराव भारत की ऊर्जा सुरक्षा और अमेरिका की भू-राजनीतिक रणनीति के बीच टकराव को उजागर करता है। गोल्डमैन सैक्स के अनुसार, यदि 50 प्रतिशत टैरिफ बने रहे तो भारत की जीडीपी वृद्धि 6.5 प्रतिशत से नीचे चली जाएगी।
ट्रंप प्रशासन का यह रुख न केवल भारत बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था के लिए एक संकेत है। क्या भारत रूसी तेल पर निर्भरता कम करेगा या अमेरिका को "सही प्रतिक्रिया" देगा? आने वाले महीने इन सवालों के जवाब तय करेंगे कि क्या यह तनाव एक मजबूत व्यापार साझेदारी में बदल पाएगा या और गहरा जाएगा।
