विश्व / जानिए क्यों कश्मीर मसले से पीछे नहीं हटना चाहता पाक

Live Hindustan : Sep 09, 2019, 07:43 AM
पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी किए जाने के बाद से लगभग हर रोज पाकिस्तान भड़काऊ बयान दे रहा है। वह परमाणु युद्ध की धमकी भी दे चुका है। सवाल उठता है कि आखिर चार जंग हार चुका पाक कश्मीर मसले पर पीछे क्यों नहीं हटना चाहता। इसका एक कारण कश्मीर से बहकर पाक पहुंचने वाली सिंधु नदी है। इस पर ही पाकिस्तान की पूरी कृषि और बिजली संयंत्र निर्भर हैं। ऐसे में पाकिस्तान हमेशा चाहता रहा कि किसी भी तरीके से कश्मीर पर उसका कब्जा रहे ताकि वह सिंधु नदी के पानी का पूरा हक ले सके। उसे डर है कि कहीं भारत अपनी ओर से बहकर पाकिस्तान जाने वाली इन नदियों का पानी न रोक दे। अगर भारत पानी रोक दे तो पाक में बिजली-पानी का संकट पैदा हो जाएगा। गेहूं, चावल, गन्ने की खेती पर निर्भर उसकी आबादी भुखमरी के कगार पर आ जाएगी। 

भारत अपने जल संसाधनों का पूरा इस्तेमाल करे

पूर्व उच्चायुक्त जी पार्थसारथी ने बताया कि यह सच है कि भारत कश्मीर में जलसंसाधनों का पूरा उपयोग नहीं कर पा रहा है। जम्मू-कश्मीर में भारत को हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर की ज़रूरत पूरी करने के लिए पानी की जरूरत है लेकिन सिंधु संधि को तोड़ना एक विवादित विषय है। भारत पूर्वी नदियों के पानी का बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकता है। वहीं पश्चिमी नदियों पर भी कुछ सीमित अधिकार हैं। मेरी राय में सामान्य स्थितियों में कई तंत्र हैं जिनके जरिये विवाद घटाया या निपटाया जा सकता है। पर असाधारण परिस्थितियों में ऐसे कई अन्य तरीके हैं जिनका इस्तेमाल करने पर पाक मुश्किल में पड़ सकता है। भारत को चाहिए कि वह अपने हिस्से का ज्यादा से ज्यादा पानी इस्तेमाल करे।

पानी पर हक भी भारत-पाक तनाव की एक वजह

कश्मीर को लेकर चार बार जंग लड़ चुके भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की एक वजह जल बंटवारा भी है। भारत नदियों का देश है जबकि उसके एक हिस्से से बना पाक पूरी तरह सिंध नदी पर निर्भर है। यही वजह है कि सिंधु जल संधि के बाद भी दोनों देशों के लिए यह विवाद कभी खत्म नहीं हो पाया। इस पर एक नजर....

सिंधु नदी जल को लेकर भारत-पाक विवाद विभाजन के समय से चल रहा है। जानकार मानते हैं कि भारत अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता और जिम्मेदार देश के नाते इस मामले में उतना सख्त रुख नहीं अपनाता है जितना अपना सकता है। पूर्व राजदूत एन एन झा का कहना है कि भारत के पास पानी रोकने का विकल्प है। अगर वह इस रास्ते का इस्तेमाल करेगा तो पाकिस्तान दबाव में आएगा।भारत ने पिछले कुछ समय में जरूर पूर्वी और पश्चिमी नदियों के पानी के पूरे इस्तेमाल पर काम तेज किया है। मौजूदा केंद्र सरकार ने सिंधु जल-समझौते को गहराई से समझने और अपने हक का पानी ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने के लिए एक टास्क फोर्स बनाई थी। 23 दिसम्बर, 2016 को पहली बैठक में जम्मू और कश्मीर में बनने वाले 8500 मेगावाट की पनविद्युत परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने पर मुहर लगी।

कई परियोजनाओं पर चल रहा काम

भारत के हिस्से के रावी नदी के जल को पाक जाने से रोकने के लिए शाहपुर कांडी प्रोजेक्ट बन रहा है। रावी की सहायक नदी उझ पर बहुउद्देश्यी परियोजना छह साल में पूरी होगी। तीसरा प्रोजेक्ट रावी-ब्यास परियोजना है, भारत सरकार मानती है कि ये तीनों प्रोजेक्ट भारत के हिस्से का पानी वहां जाने से रोकेंगे। झेलम नदी में पानी बढ़ाने का वुलर- बैराज तुलबुल प्रोजेक्ट 1984 में प्रस्तावित था जो तेजी पकड़ रहा है।  चिनाब नदी पर बन रहा बगलिहार  हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट 1999 में शुरू होना था लेकिन पाक के विरोध के कारण 2010 में इसका निर्माण शुरू हो सका। झेलम नदी पर किशनगंगा प्रोजेक्ट पर काम 2018 में शुरू हो पाया है। 

जल प्रवाह का डाटा रोका 

भारत 1989 से पाक को हर साल चिनाब और झेलम नदी का हाइड्रोलॉजिकल डाटा की रिपोर्ट उपलब्ध कराता आया है, जो उसने पुलवामा हमले के बाद रोक दिया है। बीते 22 अप्रैल को भारत ने घोषणा की कि अब से वह पाक को नदियों का यह डाटा नहीं देगा। यह डाटा नदियों में वर्षा जल और बाढ़ के आकलन के लिए जरूरी है। 

संधि तोड़ना ठीक नहीं 

विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। ऐसे में भारत इसे अकेले खत्म नहीं कर सकता। भारत पानी रोकता है तो पाकिस्तान को हर मंच पर भारत के खिलाफ बोलने का एक मौका मिलेगा। चीन से ब्रह्मपुत्र और कई नदियां भारत में आती हैं। आने वाले दिनों में चीन इस मुद्दा बनाते हुए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। भारत की छवि जिम्मेदार व कानूनों का पालन करने वाले देश की है, जिसे नुकसान होगा। 

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