- भारत,
- 20-Sep-2025 01:36 PM IST
India-US Trade Deal: जैसे ही अमेरिका ने भारत पर 50 प्रतिशत तक के टैरिफ लगाने का ऐलान किया, दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते गरम हो गए। तब से अब तक छह दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन हर बार नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। सबसे ताजा मुद्दा? रूस से तेल खरीद। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका अब इस द्विपक्षीय डील में भारत की रूस से तेल आयात को जोड़ना चाहता है, जो पूरी तरह से असामान्य है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम न सिर्फ व्यापार को प्रभावित करेगा, बल्कि वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा और भू-राजनीति को भी नया मोड़ दे सकता है।
अमेरिका का नया दांव: रूस तेल को डील का हिस्सा बनाना
अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल, जिसकी अगुवाई असिस्टेंट यूएस ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव ब्रेंडन लिंच ने की, हाल ही में नई दिल्ली पहुंचा। मंगलवार को हुई इस बैठक में अमेरिका ने भारत से रूस से तेल खरीद पर रोक लगाने की अप्रत्यक्ष मांग की। सूत्रों ने बताया कि अमेरिकी पक्ष ने इसे व्यापार समझौते की शर्तों में शामिल करने की कोशिश की, क्योंकि भारत के रिफाइनर घरेलू मांग पूरी करने के लिए रूस से सस्ता कच्चा तेल आयात बढ़ा रहे हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "यह मांग बिलकुल अप्रत्याशित है। बाइलेटरल ट्रेड टॉक्स में तीसरे देश के साथ संबंधों को घसीटना अस्वाभाविक है।"
भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की, जबकि यूएस ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव कार्यालय ने भी चुप्पी साध ली। लेकिन खबरों से साफ है कि बातचीत जटिल हो रही है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि भारत का रूस से तेल खरीदना यूक्रेन युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से फंड कर रहा है। ट्रंप ने खुद कहा था, "वे रूसी तेल खरीदकर युद्ध मशीन को ईंधन दे रहे हैं।" इसके जवाब में 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया, जो कुल टैरिफ को 50 प्रतिशत तक पहुंचा देता है—एशिया में सबसे ऊंचा।
भारत की मजबूत स्थिति: अतिरिक्त टैरिफ हटाने की मांग
भारत ने साफ लफ्जों में कहा है कि रूस से तेल आयात ऊर्जा सुरक्षा का सवाल है। मंगलवार की बैठक में भारत ने 25 प्रतिशत के अतिरिक्त टैक्स को "अनुचित, अनियंत्रित और बेबुनियाद" बताते हुए इसे हटाने की मांग की। वित्त मंत्री ने हाल ही में कहा, "रूसी तेल सस्ता है, और यह हमारी 1.4 अरब आबादी की जरूरतों को पूरा करता है। हम बाजार कारकों के आधार पर खरीदारी करेंगे।" ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, मानसून के बाद ईंधन मांग बढ़ने से रिफाइनर रूस से आयात जारी रखेंगे, और सरकार ने कोई रोक नहीं लगाई है।
फाइनेंशियल ईयर 2024-25 में भारत-रूस व्यापार रिकॉर्ड 68.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें तेल आयात का बड़ा योगदान है। भारत अब रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है, जो 2022 से पहले महज 2.5 प्रतिशत था, अब 35-40 प्रतिशत हो गया। अमेरिका का कहना है कि भारत रूस से सस्ते में तेल खरीदकर रिफाइन करके यूरोप और अमेरिका को ऊंचे दामों पर बेच रहा है, जो मुनाफाखोरी है। लेकिन भारत का जवाब है: "यूरोप खुद रूस से व्यापार करता है, और अमेरिका ने पहले ही हमें रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था ताकि वैश्विक बाजार स्थिर रहे।"
बातचीत का सफर: छह राउंड, लेकिन कोई हल नहीं
ट्रंप के जुलाई में 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के ऐलान के बाद से बातचीत तेज हुई। अगस्त में अतिरिक्त 25 प्रतिशत जुड़ गया, और अब छठा दौर भी बेनतीजा रहा। दोनों देशों ने साल के अंत तक डील फाइनल करने का वादा किया था, लेकिन मुद्दे बढ़ते जा रहे हैं। अमेरिका डेयरी, कृषि और मध्यम आकार की वाहनों के बाजार में ज्यादा पहुंच चाहता है, जबकि भारत किसानों और छोटे कारोबारियों की रक्षा के लिए इन्हें खोलने को तैयार नहीं।
इस हफ्ते की शुरुआत में अमेरिकी अधिकारी नई दिल्ली आए थे तनाव कम करने के लिए, लेकिन मीटिंग के बाद दोनों पक्षों ने सिर्फ "सकारात्मक चर्चा" का दावा किया। यूएस ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेन्ट ने कहा, "रिश्ते जटिल हैं, लेकिन अंत में हम साथ आएंगे।" लेकिन विशेषज्ञ चिंतित हैं। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के फाउंडर अजय श्रीवास्तव ने कहा, "ये टैरिफ भारत के निर्यात को नुकसान पहुंचाएंगे, खासकर फार्मास्यूटिकल्स, ज्वेलरी और टेक्सटाइल में।"
वैश्विक संदर्भ: चीन को क्यों छोड़ दिया?
सबसे बड़ा सवाल: चीन, जो रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार है, उसे क्यों नहीं निशाना बनाया गया? अमेरिका ने चीन पर 30 प्रतिशत टैरिफ लगाए हैं, लेकिन रूस तेल के लिए कोई सजा नहीं। विश्लेषक कहते हैं कि यह व्यापार डील की नेगोशिएशन का हिस्सा है, जहां रेयर अर्थ मिनरल्स जैसे मुद्दे शामिल हैं। भारत पर दबाव ट्रंप की यूक्रेन शांति वार्ता रणनीति का हिस्सा लगता है, जहां वे मॉस्को को अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे हैं।
मूडीज रेटिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ये टैरिफ भारत की जीडीपी वृद्धि को 0.3 प्रतिशत धीमा कर सकते हैं, लेकिन मजबूत घरेलू मांग और सर्विस सेक्टर इसे संभाल लेंगे। फिर भी, निर्यातक परेशान हैं—चेन्नई के एक मछुआरे ने कहा, "पीएम मोदी ने किसानों की रक्षा का वादा किया है, हम उनके साथ हैं।"
आगे क्या? डील की उम्मीदें धुंधली
बातचीत फेल होने से भारत अमेरिकी ऊर्जा और रक्षा खरीद बढ़ा रहा है—पहले छह महीनों में 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। लेकिन रूस से तेल पर अड़िग रहना भारत की प्राथमिकता है। अगर अमेरिका दबाव बढ़ाता है, तो यूरोपीय सहयोगी भी शामिल हो सकते हैं, क्योंकि भारत से रिफाइंड प्रोडक्ट्स यूरोप जाते हैं। फिलहाल, डील पर पेंच फंसा हुआ है, और वैश्विक व्यापार युद्ध का नया चैप्टर लिखा जा रहा है। क्या भारत अपनी ऊर्जा स्वतंत्रता बचाए रखेगा, या ट्रंप की चाल कामयाब होगी? समय ही बताएगा।
