US Report / अमेरिकी रिपोर्ट: 'ऑपरेशन सिंदूर' में पाकिस्तान को सैन्य बढ़त, भारत की कूटनीति पर सवाल

एक अमेरिकी रिपोर्ट ने दावा किया है कि मई 2025 में 'ऑपरेशन सिंदूर' नामक 4 दिवसीय युद्ध में पाकिस्तान को भारत पर सैन्य कामयाबी मिली। रिपोर्ट में पहलगाम हमले को भी आतंकी नहीं, बल्कि 'विद्रोही हमला' बताया गया है। कांग्रेस ने इसे भारतीय कूटनीति के लिए बड़ा झटका बताया है।

एक अमेरिकी रिपोर्ट ने भारत और पाकिस्तान के बीच भविष्य के एक काल्पनिक संघर्ष, जिसे 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया गया है, में पाकिस्तान को बड़ी सैन्य कामयाबी मिलने का दावा किया है और यह रिपोर्ट, जो मई 2025 में हुए चार दिवसीय युद्ध का विवरण देती है, अमेरिकी संसद को भेजी गई है और इसने भारत में राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा की हैं। 800 पन्नों की इस विस्तृत रिपोर्ट को यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन (USCC) ने जारी किया है, और इसमें कई ऐसे दावे किए गए हैं जो भारत की सुरक्षा और कूटनीतिक स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।

पहलगाम हमले की विवादास्पद व्याख्या

रिपोर्ट का एक और विवादास्पद पहलू पहलगाम हमले को लेकर है। इसमें इस घटना को एक आतंकी हमला न मानकर 'विद्रोही हमला' बताया गया है। यह वर्गीकरण भारत की उस लंबी-चौड़ी कूटनीतिक स्थिति के विपरीत है, जिसमें वह सीमा पार से होने वाले हमलों को आतंकवाद के रूप में परिभाषित करता रहा है। इस तरह की व्याख्या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के आतंकवाद विरोधी प्रयासों को कमजोर कर सकती है और पाकिस्तान को अपने कृत्यों के लिए जवाबदेह ठहराने की भारत की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। यह रिपोर्ट के राजनीतिक निहितार्थों को और गहरा करता है।

राफेल विमानों की छवि को नुकसान का दावा

रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि पाकिस्तान ने कम से कम छह भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराया, जिनमें राफेल जेट भी शामिल थे। इस दावे से राफेल की छवि को नुकसान पहुंचने की बात कही गई है, जो भारतीय वायुसेना के सबसे उन्नत विमानों में से एक है। हालांकि, रिपोर्ट खुद यह स्वीकार करती है कि वास्तव में। केवल तीन भारतीय विमानों के गिराए जाने की पुष्टि होती है। यह विरोधाभास रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है और यह दर्शाता है कि इसमें दावों और पुष्ट तथ्यों के बीच अंतर हो सकता है। यह भारतीय सैन्य क्षमताओं को लेकर एक गलत धारणा भी पैदा कर सकता है।

चीन की रणनीतिक भूमिका: हथियारों का परीक्षण और वैश्विक प्रदर्शन

USCC की रिपोर्ट में चीन की रणनीतिक भूमिका पर विशेष जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि चीन ने भारत-पाकिस्तान युद्ध का इस्तेमाल अपने आधुनिक हथियारों को वास्तविक युद्ध परिस्थितियों में परखने और दुनिया को अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए किया और यह चीन के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था कि वह अपने रक्षा उत्पादों की प्रभावशीलता को लाइव युद्ध में साबित कर सके, जिससे उसके हथियारों के निर्यात को बढ़ावा मिल सके। यह चीन की बढ़ती सैन्य-औद्योगिक क्षमता और वैश्विक हथियारों के बाजार में उसकी महत्वाकांक्षाओं को उजागर करता है।

संघर्ष के बाद हथियारों के सौदे और सैन्य सहायता

रिपोर्ट के अनुसार, भारत-पाकिस्तान संघर्ष के पांच महीने बाद, चीन ने इंडोनेशिया को 75 हजार करोड़ रुपये में 42 J-10C फाइटर जेट बेचने का एक बड़ा सौदा किया। यह सौदा सीधे तौर पर युद्ध में चीनी हथियारों के कथित प्रदर्शन से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है, जिससे चीन को अपने रक्षा उद्योग के लिए महत्वपूर्ण वाणिज्यिक लाभ मिला और यह दर्शाता है कि चीन ने इस संघर्ष को केवल सैन्य परीक्षण के रूप में ही नहीं, बल्कि एक बड़े व्यापारिक अवसर के रूप में भी देखा।

पाकिस्तान की चीनी सैन्य प्रौद्योगिकी पर निर्भरता

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि पाकिस्तान ने इस लड़ाई में चीन से मिले हथियारों का इस्तेमाल किया। इसमें चीन के HQ-9 एयर डिफेंस सिस्टम, PL-15 मिसाइलें और J-10 फाइटर जेट शामिल थे और रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 से 2023 के बीच पाकिस्तान के 82% हथियार चीन से आए हैं, जो पाकिस्तान की चीनी सैन्य प्रौद्योगिकी पर गहरी निर्भरता को दर्शाता है। यह निर्भरता दोनों देशों के बीच मजबूत सैन्य संबंधों और। क्षेत्रीय शक्ति संतुलन पर इसके संभावित प्रभावों को रेखांकित करती है।

खुफिया जानकारी साझा करने के आरोप

भारत ने दावा किया है कि इस दौरान पाकिस्तान को चीन से खुफिया जानकारी (इंटेलिजेंस) भी मिली। हालांकि, पाकिस्तान ने इन आरोपों को नकार दिया है, और चीन ने इस पर कोई स्पष्ट टिप्पणी नहीं की है। खुफिया जानकारी साझा करने के आरोप, यदि सच साबित होते हैं, तो यह संघर्ष में चीन की सीधी संलिप्तता का एक और प्रमाण होंगे और क्षेत्रीय सुरक्षा गतिशीलता पर इसके गंभीर भू-राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं।

भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया और कांग्रेस की चिंताएं

इस रिपोर्ट पर भारत में तीखी राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रालय इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराएंगे और विरोध जताएंगे? उन्होंने इसे भारतीय कूटनीति के लिए एक और बड़ा झटका बताया है। यह प्रतिक्रिया रिपोर्ट के दावों की गंभीरता और भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर इसके संभावित प्रभावों को दर्शाती है।

यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन (USCC) को समझना

USCC का गठन 90 के दशक के आखिरी में हुआ था, जब चीन तेजी से आर्थिक और तकनीकी रूप से ताकतवर हो रहा था और अमेरिका में इसे लेकर चिंता बढ़ रही थी। अमेरिकी नेता यह मानने लगे थे कि चीन से आने वाले आर्थिक फायदे और सुरक्षा खतरे दोनों को साथ-साथ समझना जरूरी है और इस आयोग का काम यह पता लगाना है कि चीन की आर्थिक या तकनीकी गतिविधि अमेरिका की सुरक्षा के लिए खतरा तो नहीं बन रही। USCC खुद कोई कार्रवाई नहीं करती, बल्कि रिपोर्ट बनाकर अमेरिकी संसद को देती है और आयोग की सिफारिशों को अंतिम रिपोर्ट में शामिल करने के लिए, उन्हें कम से कम 8 सदस्यों (दो-तिहाई) के समर्थन की जरूरत होती है।

चीनी मीडिया का खंडन: ग्लोबल टाइम्स ने USCC की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए

चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने USCC की रिपोर्ट पर कड़े सवाल उठाए हैं। अखबार लिखता है कि USCC ने एक बार फिर से चीन की आर्थिक, तकनीकी और सुरक्षा क्षेत्र में हो रही तरक्की को ऐसे दिखाया है जैसे वह दुनिया के लिए खतरा हो। ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि यह रिपोर्ट राजनीतिक मकसद से लिखी गई है और हकीकत का पूरी निष्पक्षता से विश्लेषण नहीं करती। अखबार ने आयोग के भीतर चीन को लेकर भारी गलतफहमियां और अहंकार मौजूद होने का आरोप लगाया है।

चीन के संप्रभु अधिकारों और हथियार उद्योग का बचाव

ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा है कि चीन की हथियार इंडस्ट्री के विकास को लेकर आरोप लगाना या उसे गलत तरीके से पेश करना, किसी भी संप्रभु देश के अपनी रक्षा क्षमता बढ़ाने के मूल अधिकार को नकारने जैसा है। यह चीन के सैन्य आधुनिकीकरण को एक वैध राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकता के रूप में प्रस्तुत करता है, न कि वैश्विक खतरे के रूप में। यह चीन की अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के अधिकार पर जोर देता है।

अमेरिका पर सप्लाई चेन को हथियार बनाने का आरोप

ग्लोबल टाइम्स ने अमेरिकी रिपोर्ट के दावों का खंडन करते हुए कहा कि सप्लाई चेन को हथियार की तरह इस्तेमाल करने का काम चीन का नहीं बल्कि अमेरिका का है। अखबार ने उदाहरण देते हुए कहा कि अमेरिका ने चिप टेक्नोलॉजी पर रोक, मिलिट्री इक्विपमेंट पर बैन, कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करना और अपने सहयोगी देशों पर दबाव डालकर चीन के खिलाफ मोर्चा खड़ा करने की कोशिश की है। इसके मुकाबले चीन का रिएक्शन सिर्फ अमेरिकी प्रतिबंधों के जवाब। में है, न कि दुनिया को नुकसान पहुंचाने के लिए।

चीन की दुर्लभ खनिज नीति और वैश्विक स्थिरता

अखबार ने चीन की दुर्लभ खनिज नीति पर भी स्पष्टीकरण दिया है, जिसमें कहा गया है कि यह नीति सप्लाई चेन को स्थिर रखने के लिए बनाई गई है, न कि निर्यात रोकने के लिए। यह चीन की व्यापारिक नीतियों को वैश्विक स्थिरता के संदर्भ में प्रस्तुत करने का प्रयास है, ताकि किसी भी आरोप का खंडन किया जा सके कि चीन अपने संसाधनों का उपयोग भू-राजनीतिक लाभ के लिए कर रहा है।

निष्कर्ष: भू-राजनीतिक तनाव के बीच एक राजनीतिक रूप से चार्ज की गई रिपोर्ट

अंततः, ग्लोबल टाइम्स ने इस रिपोर्ट को बदलते विश्व को समझने में अमेरिका की मुश्किल का प्रमाण बताया है और अखबार का कहना है कि हर साल एक जैसी बातें दोहराना, तथ्यों को नजरअंदाज करना और राजनीतिक पूर्वाग्रह पकड़े रहना, इन सबने इस रिपोर्ट की प्रतिष्ठा दुनियाभर में कमजोर कर दी है। यह रिपोर्ट अमेरिका, चीन, भारत और पाकिस्तान के बीच जटिल और अक्सर विवादास्पद भू-राजनीतिक परिदृश्य को रेखांकित करती है, और इसके दावे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तनाव को और बढ़ा सकते हैं।