Rajasthan Politics / अंता से बीजेपी MLA कंवरलाल की विधायकी खत्म, विधानसभा अध्यक्ष ने किया 'बर्खास्त'

राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने अंता से बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द की। मीणा को 2005 के एक मामले में तीन साल की सजा हुई थी। सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने पर यह कदम उठाया गया। कांग्रेस ने फैसले को "संविधान की जीत" बताया।

Rajasthan Politics: राजस्थान की राजनीति में शुक्रवार को एक बड़ा घटनाक्रम देखने को मिला जब अंता से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक कंवरलाल मीणा की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई। यह निर्णय विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के आलोक में लिया। इससे अंता विधानसभा सीट (जिला बारां) अब रिक्त हो गई है।

क्या है मामला?

यह पूरा मामला वर्ष 2005 का है, जब कंवरलाल मीणा ने उप सरपंच चुनाव के दौरान एक प्रशासनिक अधिकारी—एसडीएम पर रिवॉल्वर तान दी थी। इस घटना के बाद उन्होंने कथित रूप से उस समय की वीडियो रिकॉर्डिंग को भी नष्ट कर दिया था। मामले की सुनवाई के दौरान अकलेरा की स्थानीय अदालत ने 14 दिसंबर 2020 को उन्हें सरकारी काम में बाधा डालने, अधिकारियों को धमकाने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी ठहराते हुए तीन साल की सजा सुनाई थी।

इस सजा को राजस्थान हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा, और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। भारतीय संविधान के तहत, यदि किसी विधायक या सांसद को तीन साल या उससे अधिक की सजा मिलती है, तो उसकी सदस्यता स्वतः निरस्त हो जाती है। इसी आधार पर विधानसभा अध्यक्ष ने विधिसम्मत कार्यवाही करते हुए मीणा की सदस्यता को निरस्त कर दिया।

कांग्रेस का तीखा रुख

इस फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी ने तीखी प्रतिक्रिया दी। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर "सत्यमेव जयते" लिखते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी के निरंतर दबाव और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली द्वारा हाईकोर्ट में दायर ‘अवमानना याचिका’ के बाद भाजपा को यह फैसला लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

टीकाराम जूली ने भी इसे लोकतंत्र और संविधान की मर्यादा की जीत बताते हुए कांग्रेस के संघर्ष का परिणाम करार दिया।

विधानसभा में अब क्या समीकरण?

कंवरलाल मीणा की सदस्यता समाप्त होने के बाद राजस्थान विधानसभा में अब भाजपा के 118, कांग्रेस के 66 विधायक हैं। 200 सदस्यीय विधानसभा में यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है, विशेषकर तब, जब राज्य में राजनीतिक स्थिरता को लेकर चर्चाएं जारी हैं।

न्यायिक प्रक्रिया की मजबूती

इस घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चाहे व्यक्ति किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा हो, कानून के सामने सब बराबर हैं। यह निर्णय न केवल न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि विधायकों को उच्च नैतिक और कानूनी मानकों पर खरा उतरना आवश्यक है।