MP Assembly Election 2023 / कांग्रेस ने एमपी में चला दिया 'पीडीए फॉर्मूला'- अखिलेश यादव करते रह गए प्लानिंग

Zoom News : Oct 16, 2023, 11:48 AM
MP Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने नवरात्रि के पहले दिन ही 144 सीटों पर उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया है. कांग्रेस ने उम्मीदवारों के जरिए सूबे में राजनीतिक बिसात बिछाने के साथ-साथ जातीय समीकरण को भी साधने का दांव चला है. कांग्रेस ने अपने कोर वोटबैंक दलित-आदिवासी को मजबूती से जोड़े रखते हुए बीजेपी के सियासी आधार में सवर्ण और ओबीसी में सेंधमारी करने की स्ट्रैटेजी अपनाई है, ताकि सत्ता में वापसी की इबारत लिखी जा सके.

कांग्रेस ने अपनी पहली लिस्ट में जिस तरह से पीडीए यानि पिछड़े-दलित-आदिवासी उम्मीदवारों को खास तवज्जे दी है, उससे पार्टी की नई सोशल इंजीनियरिंग को बखूबी समझा जा सकता है. इतना ही नहीं कांग्रेस ने अपने परंपरागत वोटर सवर्ण समुदाय का भी खास ख्याल रखा है. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ क्या शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई वाली बीजेपी को मात देकर एमपी की सत्ता हासिल कर पाएंगे?

कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग

कांग्रेस ने अभी तक की लिस्ट में सबसे ज्यादा सवर्ण, उसके बाद ओबीसी और एसटी-एससी समुदाय के कैंडिडेट उतारे हैं. कांग्रेस ने 144 उम्मीदवारों की लिस्ट में सवर्ण समुदाय से 52 प्रत्याशी उतारा है, जिसमें ठाकुर समुदाय के 22, ब्राह्मण समाज से 18, जैन समुदाय 5 और 7 अन्य सवर्ण समुदाय से हैं. ओबीसी की अलग-अलग जातियों से 39 उम्मीदवार उतारे गए हैं तो 30 सीटों पर अनुसूचित जनजाति को कैंडिडट को टिकट दिए हैं जबकि 22 सीटों पर दलित समुदाय से प्रत्याशी उतारे हैं.

कांग्रेस ने पहली लिस्ट में सिर्फ एक मुस्लिम कैंडिडट को प्रत्याशी बनाया है जबकि छह अल्पसंख्यक उम्मीदवार हैं. पार्टी ने 144 प्रत्याशियों की सूची में 19 महिलाएं भी शामिल हैं. कांग्रेस ने अपने मौजूदा 69 विधायकों पर भरोसा जताते हुए एक बार फिर से उतारा है. इसके अलावा कांग्रेस ने करीब 10 सीटों पर दूसरे दलों से आए हुए नेताओं को प्रत्याशी बनाया है. युवा मतदाताओं को साधने के लिए कांग्रेस ने 50 साल से कम उम्र के 65 प्रत्याशी उतारे हैं.

कांग्रेस का एमपी में पीडीए फॉर्मूला

यूपी में अखिलेश यादव पीडीए फॉर्मूले से बीजेपी को हराने का दावा कर रहे हैं तो कांग्रेस एमपी में पीडीए फॉर्मूले को लेकर सियासी समीकरण सेट कर रही है, पर कांग्रेस और सपा के पीडीए में एक फर्क है. सपा के पीडीए का मतलब पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक तो कांग्रेस के पीडीए यानि पिछड़े, दलित और आदिवासी है. कांग्रेस ने टिकट के जरिए मध्य प्रदेश में पीडीए फॉर्मूले जमीन पर उतारने की कोशिश की है. कांग्रेस ने 144 सीटों में से 91 टिकट पीडीए को दिया है, जिसमें 39 टिकट पिछड़े, 22 दलित और 30 आदिवासी हैं.

कांग्रेस मध्य प्रदेश में ऐसी ही पीडीए का दांव नहीं चल रही है बल्कि उसके पीछे जीत सत्ता में वापसी का मंत्र भी छिपा हुआ है. राज्य में पिछड़ी जाति की आबादी 49 फीसदी है, तो 15 फीसदी दलित और 21 फीसदी आदिवासी समुदाय की है. इस तरह से तीनों जातियों का वोट मिलाकर 85 फीसदी होता है. दलित-आदिवासी सूबे में अहम भूमिका है और उसमें ओबीसी को कांग्रेस जोड़ने में सफल रहती है तो सत्ता में वापसी में तय है.

मध्य प्रदेश में दलित और आदिवासी के लिए 82 सीटें सुरक्षित है. साल 2013 के चुनाव में बीजेपी 82 सुरक्षित सीटों में से 53 सीटें जीती थी जबकि 2018 में घटकर 25 सीटों पर सिमट गई थी. कांग्रेस 2013 में सिर्फ 12 सुरक्षित सीटें ही जीती थी, लेकिन 2018 के चुनाव में बढ़कर 40 सीटों पर पहुंच गई और सरकार बनाने में सफल रही.

यही वजह है कि कांग्रेस दलित-आदिवासी के साथ ओबीसी वोटों को साधने में जुटी है, जिसके लिए जातीय जनगणना को एक बड़ा सियासी हथियार बनाने में जुटे है. कांग्रेस सामाजिक न्याय का नारा बुलंद कर ‘जिसकी जितनी भागीदार, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ का अभियान छेड़ी रही है. इस तरह कांग्रेस पूरा फोकस जातीय समीकरण के लिहाज से उम्मीदवारों को उतारने का ताकि जीत का परचम फहरा सकें?

सवर्णों पर कांग्रेस का फोकस

कांग्रेस ने सवर्ण समुदाय को 52 टिकट दिए हैं, जो 36 फीसदी के करीब होता है जबकि मध्य प्रदेश में उनकी आबादी 15 फीसदी है. इस तरह से सवर्ण मतदाताओं को साधने के लिए कांग्रेस ने उनकी आबादी से ज्यादा टिकट देकर सियासी संदेश देने की कोशिश की है. कांग्रेस शुरू से ही मध्य प्रदेश में सवर्ण समुदाय की राजनीति करती रही है, जिसके चलते सभी मुख्यमंत्री ठाकुर या ब्राह्मण समुदाय से ही बनाए हैं, महज कमलनाथ एकलौते सीएम थे, जो वैश्य समुदाय से थे. ऐसे में कांग्रेस ने अपने कोर वोटबैंक को साधने की कोशिश की है.

कांग्रेस ने ठाकुर समुदाय से जिन्हें टिकट दिए हैं, उसमें अजय सिंह, राजेंद्र सिंह, कपिध्वज सिंह, लक्ष्मण सिंह, प्रियवत सिंह, जयवर्धन सिंह, डॉक्टर गोविंद सिंह, राहुल भदौरिया, सतीश सिकरवार, घनश्याम सिंह, केपी सिंह, गोपाल सिंह चौहान, यादवेंद्र सिंह, विक्रम सिंह नाती राजा और सुखेंद्र सिंह बन्ना शामिल हैं. कांग्रेस में दिग्विजय सिंह, गोविंद सिंह और अजय सिंह जैसे ठाकुर नेता है, जिनका अपना सियासी प्रभाव है.

वहीं, कांग्रेस ने ब्राह्मण समुदाय से अवधेश नायक, नीरज शर्मा, मनोज शुक्ला, तरुण भनोट, नीलांशु चतुर्वेदी, मुकेश नायक, पंकज उपाध्याय, प्रवीण पाठक, नीरज दीक्षित, आलोक चतुर्वेदी, निलेश अवस्थी, संजय शुक्ला, रवि जोशी, माया त्रिवेदी, हेमंत कटारे, संजय शर्मा और शशांक भार्गव को प्रत्याशी को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस के अभी 86 सीटों पर कैंडिडेट उतारे जाने हैं, उसमें भी इन तीनों ही जातियों से और भी टिकट दिए जा सकते हैं. इस तरह कांग्रेस ने बड़ा दांव चला है.

महिला और युवाओं को साधने का दांव

कांग्रेस ने आधी आबादी यानि महिलाओं को साधने की पूरी कोशिश की है. कांग्रेस ने अपनी पहली 144 उम्मीदवारों की सूची में 19 महिलाओं को टिकट देकर बीजेपी के महिला आरक्षण दांव को काउंटर करने की स्ट्रैटेजी मानी जा रही है. बीजेपी का पूरा फोकस महिला वोटों पर है, जिसके चलते कांग्रेस ने दांव चला. ऐसे ही कांग्रेस ने युवा मतदाताओं को साधने के लिए 144 सीटों में से 65 उम्मीदवार ऐसे उतारे हैं, जिनकी उम्र 50 साल से कम है.इससे यह बात साफ है कि कांग्रेस का पूरा फोकस महिला और युवा वोटरों पर है, जिन्हें साधने के लिए हरसंभव कोशिश में जुटी है.

वहीं कांग्रेस ने मुस्लिम समाज से महज एक प्रत्याशी आरिफ मसूद को भोपाल मध्य सीट से टिकट दिया है तो जैन समुदाय से 5 प्रत्याशी उतारे हैं. इस तरह से अल्पसंख्यक समुदाय से छह प्रत्याशियों को टिकट देकर कांग्रेस ने सियासी संदेश देने की कोशिश की है. साथ ही कांग्रेस ने उन नेताओं पर भी भरोसा जताया है जो बीजेपी या फिर दूसरी पार्टी छोड़कर आए हैं. कांग्रेस ने करीब 10 सीटों पर दल बदल कर आए नेताओं को टिकट दिया है, जिसमें कुंवर कपिध्वज सिंह-गुढ़, रश्मि सिंह पटेल-नागौद, बोध सिंह भगत-कटंगी, नीरज शर्मा-सुरखी, अवधेश नायक-दतिया, साहब सिंह गुर्जर-ग्वालियर ग्रामीण, राव यादवेंद्र सिंह यादव-मुंगावली, बैजनाथ यादव-कोलारस और अनुभव मुंजारे-बालाघाट से मैदान में उतारे गए हैं.

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