India-America Relations / भारत के लिए चीन नहीं US है सबसे जरूरी, सरकारी डाटा ने कह दी सारी कहानी

अगस्त 2025 में अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50% शुल्क लगाए जाने के बावजूद भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार अमेरिका ही रहा। निर्यात 14% घटकर 6.86 अरब डॉलर रहा, लेकिन सालाना आधार पर 7% बढ़ोतरी दर्ज हुई। चीन चौथे स्थान पर रहा, जबकि भारत को उससे भारी व्यापार घाटा हुआ।

India-America Relations: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके व्यापार सलाहकारों की भारत-विरोधी बयानबाजी हो या फिर 50 प्रतिशत तक चढ़े आयात शुल्क—ये सब कुछ भारत के लिए परेशानी का सबब तो बने, लेकिन व्यापारिक रिश्तों को तोड़ नहीं सके। भले ही भारत चीन के साथ संबंधों को कितना ही मजबूत बनाने की कोशिश कर ले, आंकड़े चीख-चीखकर बता रहे हैं कि अमेरिका ही भारत का सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार बना हुआ है। अगस्त 2025 के आंकड़ों ने इस सच्चाई को एक बार फिर उजागर किया है। 50 प्रतिशत टैरिफ के जुल्म के बाद भी भारत का सबसे ज्यादा निर्यात अमेरिका को ही हुआ, न कि चीन, रूस या यूरोपीय देशों को। आइए, वाणिज्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के सहारे इसकी पड़ताल करें।

टैरिफ का झटका: निर्यात में 14% की गिरावट, लेकिन सालाना उछाल

अमेरिकी प्रशासन ने भारतीय उत्पादों पर दो चरणों में शुल्क बढ़ाया—पहले 7 अगस्त से 25 प्रतिशत, फिर 27 अगस्त से अतिरिक्त 25 प्रतिशत। इस 'डबल व्हैमी' का असर दिखा भी। अगस्त में भारत का अमेरिका को निर्यात जुलाई के मुकाबले 14 प्रतिशत घटकर 6.86 अरब डॉलर रह गया। जुलाई में यह आंकड़ा 8 अरब डॉलर था। लेकिन यहीं सकारात्मक मोड़ आता है: सालाना तुलना में (अगस्त 2024 से) निर्यात में 7.15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। मतलब, लंबी दौड़ में भारत-अमेरिका व्यापार की मजबूती बरकरार है।

वाणिज्य मंत्रालय ने सोमवार को जारी अगस्त 2025 के विदेश व्यापार आंकड़ों में यह खुलासा किया। कुल मिलाकर, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य बना रहा, जो वैश्विक अस्थिरता के बीच एक राहत की सांस है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय आईटी सेवाएं, फार्मास्यूटिकल्स और वस्त्र जैसे क्षेत्रों ने इस गिरावट को सीमित रखा।

चीन पर निर्भरता: निर्यात में पीछे, घाटे में आगे

अब बात चीन की, जिसे भारत 'विश्वसनीय साझेदार' बनाने की होड़ में लगा है। लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बुनते हैं। अगस्त में भारत ने चीन को मात्र 1.21 अरब डॉलर का निर्यात किया—जो अमेरिका के 6.86 अरब डॉलर के सामने बौना है। निर्यात गंतव्यों की सूची में चीन चौथे स्थान पर खिसक गया। उसके ऊपर यूएई (3.24 अरब डॉलर), नीदरलैंड (1.83 अरब डॉलर) और ब्रिटेन (1.14 अरब डॉलर) हैं।

दूसरी तरफ, आयात के मामले में चीन का दबदबा कायम है। अगस्त में भारत ने चीन से 10.9 अरब डॉलर का सामान आयात किया, जिससे व्यापार घाटा 9.69 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यह भारत के कुल व्यापार घाटे का बड़ा हिस्सा है। तुलनात्मक रूप से, रूस से आयात 4.83 अरब डॉलर रहा, जबकि यूएई से 4.66 अरब डॉलर। सऊदी अरब से यह 2.52 अरब डॉलर था।

अमेरिका से फायदा, चीन से नुकसान: आंकड़ों की भाषा

व्यापार संतुलन की बात करें तो अमेरिका भारत के लिए 'सुनहरा पक्षी' साबित हो रहा। अगस्त में अमेरिका से भारत का आयात 3.6 अरब डॉलर रहा, जो निर्यात से कम था। नतीजा? 3.26 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष (सर्विसेज सहित)। यूएई के साथ घाटा 1.46 अरब डॉलर का था।

देश                       निर्यात (अरब डॉलर)आयात (अरब डॉलर)व्यापार संतुलन (अरब डॉलर)
अमेरिका6.86 3.6 +3.26 (अधिशेष)
चीन1.2110.9-9.69 (घाटा)
यूएई3.244.66-1.42 (घाटा)
नीदरलैंड1.83--
रूस-4.83-
ब्रिटेन1.14--
सऊदी अरब-2.52-

(आंकड़े: वाणिज्य मंत्रालय, अगस्त 2025; अधिशेष/घाटा अनुमानित)

क्यों है अमेरिका 'अनिवार्य'?

ट्रंप प्रशासन की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के बावजूद, भारत-अमेरिका व्यापार 2025 में 100 अरब डॉलर के पार पहुंच चुका है। कारण साफ हैं: अमेरिका भारत के आईटी, सॉफ्टवेयर और दवा निर्यात का सबसे बड़ा बाजार है। वहीं, चीन से इलेक्ट्रॉनिक्स और कच्चे माल की निर्भरता घाटा बढ़ा रही है। अर्थशास्त्री डॉ. अरविंद पनगढ़िया कहते हैं, "टैरिफ अस्थायी हैं, लेकिन आपूर्ति श्रृंखलाएं स्थायी। भारत को अमेरिका के साथ FTA (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) पर फोकस करना चाहिए।"

भारत सरकार अब 'मेक इन इंडिया' को गति दे रही है ताकि चीन पर निर्भरता कम हो। लेकिन फिलहाल, टैरिफ की मार झेलते हुए भी अमेरिका भारत की व्यापारिक अर्थव्यवस्था का 'कोर' बना हुआ है। क्या यह रिश्ता और मजबूत होगा? अगले महीनों के आंकड़े ही बताएंगे।