भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से चल रही व्यापार समझौते की बातचीत अब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गई है और दोनों देशों के बीच एक शुरुआती अंतरिम समझौते को अंतिम रूप देने की उम्मीद बढ़ गई है, जिसका मुख्य उद्देश्य रेसिप्रोकल टैरिफ यानी आपसी शुल्क को कम करना है। यह विकास दोनों देशों के व्यापार संबंधों को एक नई दिशा दे सकता है और वैश्विक बाजार में सकारात्मक माहौल बना सकता है, खासकर भारतीय निर्यातकों के लिए यह एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है और यह समझौता न केवल आर्थिक लाभ प्रदान करेगा बल्कि भू-राजनीतिक स्तर पर भी दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग को गहरा करेगा।
कॉमर्स सेक्रेटरी राजेश अग्रवाल का बयान
कॉमर्स सेक्रेटरी राजेश अग्रवाल ने इस संबंध में एक महत्वपूर्ण अपडेट दिया है। उन्होंने बताया कि भारत और अमेरिका आपसी शुल्क कम करने के लिए एक शुरुआती अंतरिम समझौते को अंतिम रूप देने के काफी करीब पहुंच चुके हैं। यह घोषणा भारतीय व्यापार समुदाय के लिए उत्साहजनक है, क्योंकि इससे उन भारतीय उत्पादों पर लगने वाले उच्च शुल्कों में कमी आने की संभावना है जो वर्तमान में अमेरिकी बाजार में प्रवेश करते समय बाधाओं का सामना कर रहे हैं और अग्रवाल ने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार का प्राथमिक ध्यान अधिक से अधिक भारतीय उत्पादों पर लगने वाले भारी टैरिफ को कम कराने पर है, ताकि भारतीय निर्यातकों को प्रतिस्पर्धी लाभ मिल सके और वे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी स्थिति मजबूत कर सकें।
छह दौर की गहन बातचीत
राजेश अग्रवाल ने आगे बताया कि इस महत्वपूर्ण समझौते तक पहुंचने के लिए भारत और अमेरिका के बीच अब तक छह दौर की विस्तृत बातचीत हो चुकी है। इन बैठकों में केवल एक बड़े द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर ही चर्चा नहीं हुई है, बल्कि एक अंतरिम फ्रेमवर्क डील पर भी गहन विचार-विमर्श किया गया है। इन वार्ताओं का उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापारिक बाधाओं को दूर करना और एक ऐसा ढांचा तैयार करना है जो भविष्य में व्यापक व्यापार सहयोग का मार्ग प्रशस्त कर सके और प्रत्येक दौर की बातचीत में विभिन्न व्यापारिक मुद्दों, टैरिफ संरचनाओं और बाजार पहुंच से संबंधित चिंताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो समझौते की जटिलता और रणनीतिक महत्व को दर्शाता है।
अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का हालिया दौरा
दिसंबर की शुरुआत में, डिप्टी यूएस ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली आया था। इस दौरे को दोनों देशों के बीच बातचीत को आगे बढ़ाने के लिहाज से बेहद अहम माना गया। इस दौरान, दोनों पक्षों ने व्यापार संबंधों की मौजूदा स्थिति की गहन समीक्षा की और प्रस्तावित डील पर हुई प्रगति का आकलन किया। इस तरह के उच्च-स्तरीय दौरे दोनों देशों के बीच विश्वास और समझ को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते। हैं, जिससे जटिल व्यापारिक मुद्दों पर सहमति बनाना आसान हो जाता है और बातचीत को आवश्यक गति मिलती है।
अमेरिका की संतुष्टि और कृषि उत्पादों पर चिंता
अमेरिकी पक्ष ने भी भारत के प्रस्तावों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। अमेरिका के ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव ने हाल ही में कहा कि भारत की ओर से अब तक के 'सबसे बेहतर' प्रस्ताव मिले हैं। यह बयान इस बात का संकेत है कि भारत ने समझौते को अंतिम रूप देने के लिए महत्वपूर्ण रियायतें दी हैं। हालांकि, कुछ कृषि उत्पादों को लेकर अमेरिका की चिंताएं अभी भी बनी हुई हैं। दोनों देश इन शेष मुद्दों पर आपसी सहमति बनाने और एक ऐसा समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं जो दोनों पक्षों के हितों को संतुलित कर सके। कृषि क्षेत्र अक्सर व्यापार वार्ताओं में एक संवेदनशील मुद्दा होता है, और इन चिंताओं का समाधान समझौते के लिए महत्वपूर्ण होगा ताकि एक व्यापक और टिकाऊ समझौता हो सके।
अंतरिम समझौते की आवश्यकता और लाभ
यह अंतरिम समझौता भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में लगभग 48 अरब डॉलर के भारतीय निर्यात पर अमेरिका की ओर से ऊंचे टैरिफ लगे हुए हैं और इन शुल्कों को पहले व्यापार घाटे के मुद्दे पर भारतीय सामान पर 25 प्रतिशत के रूप में लगाया गया था, और बाद में रूस से तेल खरीद को लेकर अतिरिक्त पेनल्टी भी जोड़ी गई थी। ऐसे में, यदि इन टैरिफ में कटौती होती है, तो भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में अपने उत्पादों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने में बड़ा फायदा मिल सकता है। यह कटौती भारतीय उद्योगों को बढ़ावा देगी, रोजगार सृजित करेगी और देश की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करेगी, जिससे भारत की वैश्विक व्यापारिक स्थिति मजबूत होगी।
'मिशन 500' का महत्वाकांक्षी लक्ष्य
भारत और अमेरिका ने 2030 तक आपसी व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने। का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसे 'मिशन 500' नाम दिया गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए दोनों देश एक मल्टी-सेक्टर ट्रेड एग्रीमेंट पर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं और हालांकि, मूल रूप से तय की गई समयसीमा थोड़ी आगे खिसक गई है, लेकिन सरकार को उम्मीद है कि 2026 तक कम से कम एक अंतरिम डील जरूर हो जाएगी। यह अंतरिम समझौता 'मिशन 500' की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा, जो भविष्य में बड़े और व्यापक व्यापार समझौते की नींव रखेगा और दोनों देशों के बीच आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देगा।
अमेरिका: भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर
अमेरिका लगातार चौथे साल भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर बना हुआ है, जो दोनों देशों के बीच मजबूत आर्थिक संबंधों को दर्शाता है। दोनों देशों के बीच कुल व्यापार 130 अरब डॉलर से अधिक। का है, जो इस साझेदारी की विशालता को उजागर करता है। भारत के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग 18 प्रतिशत है, जो अमेरिकी बाजार के महत्व और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इसके योगदान को स्पष्ट रूप से दर्शाती है। यह व्यापारिक संबंध न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है, बल्कि भू-राजनीतिक स्तर पर भी दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करता है, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता में योगदान मिलता है।