Lok Sabha Election / विदेशी निवेशकों को नहीं है भ्रम, मोदी फिर 2024 में दिखाएंगे अपना दम!

Zoom News : Jul 04, 2023, 07:57 AM
Lok Sabha Election: बांबे, जी हां, आज हम मुंबई नहीं कहेंगे, क्योंकि बांबे सिर्फ हाई कोर्ट के लिए ही इस्तेमाल नहीं होता, शेयर बाजार का स्टाॅक एक्सचेंज भी बांबे नाम से ही मशहूर है. यहां के लोगों की शिराओं में बाजार दौड़ता है. देश के करोड़ों लोग यहां अपनी गाढ़ी कमाई लगाते हैं. इसलिए बांबे और बाजार को किसी अलग चश्मे से देखा ही नहीं जा सकता. जिसके हाथ में इसकी नब्ज पकड़ में आ जाए, बस फिर क्या उसके तो वारे न्यारे हो जाते हैं. इसी वजह से देश के सत्ताधारियों की नजरें बांबे के इस बाजार पर रहती है.

इसका अहम कारण ये भी है कि मौजूदा समय में देश की इकोनॉमी का यह एक अहम इंडिकेटर हो गया है. साथ ही राजनीतिक सत्ता की चहलकदमी के साथ इसकी धड़कनें भी ऊपर नीचे होती रहती हैं. भारत का शेयर बाजार इसलिए भी सत्ता के लिए जरूरी है क्योंकि विदेशी निवेशकों का यह हॉट स्पॉट हो चला है. साल 2023 में विदेशी निवेशकों ने देश के बाजार में 75 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा निवेश कर दिया है. बात अगर जून की करें तो यह आंकड़ा करीब 48 हजार करोड़ रुपये का है. इन्हीं विदेशी निवेशकों को साधने और बाजार की नब्ज को हाथ में रखने के लिए बांबे को हाथ में रखना काफी जरूरी है.

भारत को लेकर एफआईआई पॉजिटिव

अगर बात विदेशी निवेशकों की करें तो भारत के शेयर बाजार में अमेरिका और यूरोप के निवेशकों का काफी पैसा लगा हुआ है. अमेरिका और यूरोप के अधिकतर फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इंवेस्टर्स भारत को लेकर काफी पॉजिटिव हो गए हैं. इसके अलावा संसदीय चुनावों में मोदी की जीत को लेकर काफी हद तक आश्वस्त भी हैं. ऐसे में भारतीय शेयर बाजार और राजनीति को एक साथ मथा जाए तो सामने कई लाख करोड़ रुपया दिखाई देगा और देश की इकोनॉमी मजबूत करता हुई दिखाई देगी. जिसके बाद पूरी दुनिया भारत को चीन और दूसरी तमाम बड़ी इकोनॉमी को पीछे छोड़ते हुए देखेगी.

दोबारा सत्ता में आएंगे मोदी

आप इस बात ऐसे समझ लीजिये कि दुनिया की नामी ब्रोकरेज फर्म जेफरीज़ जो दुनिया के बाजारों में निवेश करती है के क्रिस वुड जैसे मार्केट एक्सपर्ट ने भी नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता में आने पर मुहर लगा दी है. उनका मानना है कि मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा भाजपा सरकार 2024 के लोकसभा चुनावों में फिर से चुनी जाएगी. बहरहाल, उनका अनुमान है कि मोदी की जीत कम बहुमत के साथ हो सकती है. सवाल यही है कि इन शब्दों के मायने क्या हैं? आखिर बाजार और विदेशी निवेशक चाहते हैं कि दोबारा मोदी सत्ता में लौटें? इन सवालों का जवाब देने के लिए एक और अमेरिकी बैंक की ओर रुख करते हैं.

62 फीसदी प्रीमियम पर कारोबार

जी हां, यूबीएस की भी अपने तौर एक रिपोर्ट आई है उसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस साल उभरते बाजारों में 4.6 फीसदी से कम रिटर्न देने के बावजूद भारत अभी भी 12 महीने के फॉरवर्ड प्राइस-टू-अर्निंग (पीई) बेस पर लगभग 62 फीसदी के प्रीमियम पर कारोबार कर रहा है. इसका मतलब है कि बाजार जिस लेवल पर होना चाहिए वह उससे 62 फीसदी ज्यादा पर कारोबार कर रहा है. यूबीएस ने यह भी कहा कि 50 से अधिक एफआईआई यानी फॉरेन इंस्टीट्यूशल इंवेस्टर का आउटलुक भारत को लेकर पॉजिटिव है. इसी वजह से मार्च 2023 के बाद से इक्विटी फ्लो बढ़कर 9.5 बिलियन डॉलर यानी करीब 78 हजार करोड़ रुपये हो गया है.

भारत को लेकर निवेशकों का स्ट्रांग परसेप्शन

यूबीएस के इंडियन स्ट्रैटिजिस्ट सुनील तिरुमलाई कहते हैं कि विदेशी निवेशकों का यह आशावाद चार परसेप्शन पर टिका हुआ है. पहला, देश का इकोनॉमिक आउटलुक बेहतर देखने को मिल रहा है. दूसरा, देश का पॉलिटिकल आउटलुक भी स्ट्रांग है, इसका कारण देश के पास एक ऐसी सत्ता है जिसके पास फुल मैज्योरिटी है. तीसरा, जियो पॉलिटिकल आउटलुक भी काफी अच्छा है और चौथा परसेप्शन ये है कि देश का डॉमेस्टिक फ्लो या डीआरआई भी काफी स्ट्रांग हैं.

अमेरिका और यूरोप का एक और खास मकसद

चीन के बढ़ती पॉवर को कम करने का मकसद भी अमेरिका और यूरोप अपने मन में पाले हुए हैं. जिसकी वजह से अमेरिका और यूरोप अब चीन को आर्थिक तौर पर चोट पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. अमेरिकी कंपनियां चीन से पलायन कर भारत को अपना दूसरा घर बना रही है. अमेरिका के कहने पर ताइवान भी भारत में सेमीकंडक्टर प्लांट्स लगाने को बोल चुका है. वहीं अब अमेरिका और यूरोप के एफआईआई भी चीन की ओर रुख करने बजाय ओवरवैल्यूड इंडियन मार्केट में निवेश करने को तैयार हैं. जिसकी वजह से देश बाजार यानी सेंसेक्स लाइफ टाइम हाई यानी 65,300 अंकों पर पहुंच चुका है.

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