जयपुर / महाभारत लिखते समय बढ़ गया था गणेशजी के शरीर का तापमान, तभी से शुरू हुई विसर्जन की परंपरा

Dainik Bhaskar : Sep 12, 2019, 01:25 PM
जयपुर. आज राजस्थान अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाएगा। 10 दिन तक गणेशजी की पूजा-अर्चना के बाद शहरवासी आज मूर्तियों को विसर्जित करेंगे। धार्मिक ग्रंथों में गणेशजी को विसर्जित करने का कोई उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन कई जनश्रुतियों में इसे गणेशजी के महाभारत लिखने के प्रकरण से जोड़कर देखा जाता है। लोकमान्यताओं के अनुसार महर्षि वेदव्यास जब महाभारत लिखने के लिए एक गुणी लेखक को ढूंढ रहे थे तो गणेशजी ने इसके लिए हामी भरी। लेकिन उन्होंने शर्त भी रखी कि जब तक महर्षि बिना रुके बोलेंगे वे भी लगातार लिखते रहेंगे। वेदव्यास ने गणेश चतुर्थी के दिन से महाभारत की कथा सुनानी प्रारंभ की थी। गणेशजी लगातार 10 दिन तक कथा लिखते रहे।

कलम टूटी तो दांत से किया लेखन

महर्षि वेदव्यास उन्हें महाभारत की कथा सुना रहे थे। अचानक लिखते-लिखते गणेशजी की कलम टूट गई। उन्हें लगा कि नई कलम ढूंढने में समय लगेगा और कथा लिखने का क्रम टूट जाएगा इसलिए उन्होंने अपना एक दांत तोड़ा और उसे कलम के रूप में इस्तेमाल किया।

अत्यधिक मेहनत से बढ़ा तापमान

महर्षि वेदव्यास महाभारत की कथा सुनाते रहे और गणेश जी लिखते रहे। कथा पूरी होने पर महर्षि वेदव्यास ने आंखें खोली। उन्होंने देखा कि अत्यधिक मेहनत के कारण गणेशजी के शरीर का तापमान बढ़ा हुआ है। तापमान कम करने के जतन किए जाने लगे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

स्नान के बाद मिली थी राहत

गणेशजी के शरीर का तापमान कम करने के लिए महर्षि वेदव्यास ने उन्हें एक सरोवर में स्नान कराया। यह अनंत चर्तुदशी का दिन था। इस दिन गणेशजी के ताप को शांत करने के लिए उन्हें सरोवर में स्नान कराया गया। लाेकमान्यता है कि गणेश प्रतिमा का विसर्जन इसी कारण शुरू हुआ।

आधुनिक भारत में लोकमान्य तिलक ने 126 साल पहले शुरू की थी परंपरा

ब्रिटिश काल में सांस्कृतिक या धार्मिक उत्सव सामूहिक रूप से मनाने पर राेक थी। एेसे में लाेकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 में सार्वजनिक तौर पर गणेश उत्सव मनाने की शुरुआत की थी। लाेकमान्य ने पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनके इस प्रयास ने स्वतंत्रता आंदोलन में लोगों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। तिलक ने गणेशोत्सव को जो स्वरूप दिया उससे गजानन राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए। पूजा को छुआछूत दूर करने, समाज को संगठित करने का जरिया भी बनाया गया।

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