Team India / गौतम गंभीर की कोचिंग में टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में डर का माहौल? खिलाड़ियों की जगह पर मंडराया संकट

गौतम गंभीर के हेड कोच बनने के बाद से टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में खिलाड़ियों के बीच अपनी जगह को लेकर असुरक्षा बढ़ गई है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, राहुल द्रविड़ के कार्यकाल के विपरीत, अब कई खिलाड़ी अपनी स्थिति को लेकर चिंतित हैं। शुभमन गिल का उदाहरण इस बदलते माहौल को दर्शाता है, जहां निरंतरता से ज्यादा मौजूदा फॉर्म को प्राथमिकता दी जा रही है।

भारतीय क्रिकेट टीम के ड्रेसिंग रूम से जुड़ी एक चौंकाने वाली। खबर सामने आई है, जिसने क्रिकेट जगत में हलचल मचा दी है। यह खुलासा टीम के नए हेड कोच गौतम गंभीर के कार्यकाल से संबंधित है, जिनके आने के बाद से खिलाड़ियों के बीच अपनी जगह को लेकर एक अभूतपूर्व असुरक्षा का माहौल बन गया है। यह स्थिति राहुल द्रविड़ के पिछले तीन साल के कार्यकाल से बिल्कुल विपरीत बताई जा रही है, जब खिलाड़ियों को अधिक स्थिरता और स्पष्ट भूमिकाएं मिलती थीं।

द्रविड़ के कार्यकाल से तुलना

गौतम गंभीर, जिन्हें टी20 वर्ल्ड कप 2024 के बाद भारतीय क्रिकेट टीम का हेड कोच नियुक्त किया गया था, अपनी सख्त कोचिंग शैली के लिए जाने जाते हैं। उनकी यह शैली व्हाइट बॉल क्रिकेट में सफलता का एक प्रमुख कारण रही है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में इसके साथ चुनौतियां भी जुड़ी हुई हैं। गंभीर के नेतृत्व में टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम का माहौल लगातार चर्चा का विषय रहा है। पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, गंभीर के हेड कोच बनने के बाद से ही टीम इंडिया के खिलाड़ियों में अपनी जगह को लेकर असुरक्षा की भावना काफी बढ़ गई है। यह असुरक्षा पहले राहुल द्रविड़ के कार्यकाल में देखने को नहीं मिलती थी, जहां खिलाड़ियों को अपनी भूमिकाओं के बारे में स्पष्टता थी और उन्हें खुद को साबित करने के लिए पर्याप्त अवसर मिलते थे और अब स्थिति काफी बदल चुकी है, और कई खिलाड़ी अपनी टीम में जगह को लेकर चिंतित हैं, जिसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण बताए जा रहे हैं।

राहुल द्रविड़ के तीन साल के कार्यकाल के दौरान, भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम में एक अलग ही माहौल था। उस समय खिलाड़ियों को अपनी भूमिकाएं स्पष्ट रूप से पता थीं और उन्हें टीम में अपनी जगह को लेकर ज्यादा चिंता नहीं करनी पड़ती थी। द्रविड़ का दृष्टिकोण खिलाड़ियों को आत्मविश्वास और सुरक्षा प्रदान करने वाला था, जिससे वे बेझिझक अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाते थे और खिलाड़ियों को खुद को साबित करने के लिए पर्याप्त मौके मिलते थे, जिससे टीम में एक सकारात्मक और सहायक वातावरण बना रहता था। इसके विपरीत, गंभीर के कार्यकाल में, खिलाड़ियों को यह महसूस हो रहा है कि उनकी जगह कभी भी पक्की। नहीं है, और उन्हें हर मैच में अपनी योग्यता साबित करनी होगी, जिससे उन पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है।

गौतम गंभीर की कोचिंग में हुए बड़े बदलाव

गौतम गंभीर की कोचिंग में कई बड़े और महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं, जिन्होंने टीम के भीतर एक नई गतिशीलता पैदा की है। इनमें से एक बड़ा फैसला रोहित शर्मा से वनडे कप्तानी छीनना था, जिसे टीम में 'ट्रांजिशन' यानी बदलाव के दौर के रूप में देखा गया। गंभीर का यह भी मानना है कि लिमिटेड ओवर्स क्रिकेट में बल्लेबाजी की स्थिति (बैटिंग पोजीशन) निश्चित नहीं होनी चाहिए, सिवाय ओपनिंग जोड़ी के। उनके अनुसार, यह अवधारणा 'ओवररेटेड' है और खिलाड़ियों को लचीलापन प्रदान करती है और हालांकि, यह लचीलापन खिलाड़ियों के लिए अनिश्चितता भी बढ़ाता है, क्योंकि उन्हें कभी भी किसी भी नंबर पर बल्लेबाजी करने के लिए तैयार रहना पड़ सकता है। टीम कॉम्बिनेशन के नाम पर प्लेइंग 11 में लगातार बदलाव अब आम बात हो गई है, जिससे खिलाड़ियों को अपनी लय बनाए रखने में मुश्किल हो सकती है।

शुभमन गिल का उदाहरण: एक चेतावनी

शुभमन गिल का मामला इस बदलते माहौल का एक सटीक उदाहरण है और पहले संजू सैमसन को बाहर करके टी20 टीम में गिल को जगह दी गई थी, जिससे यह संकेत मिला कि उन्हें टीम के भविष्य के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, बाद में टी20 वर्ल्ड कप 2026 की टीम से गिल को ही बाहर कर दिया गया और इस फैसले के पीछे 'फॉर्म' और 'कॉम्बिनेशन' को मुख्य कारण बताया गया। यह फैसला कई खिलाड़ियों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी जैसा है कि अगर टीम के 'पोस्टर बॉय'। को भी बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है, तो किसी की भी जगह पक्की नहीं है। गिल के बाहर होने में गंभीर की भूमिका की भी चर्चा हुई है, क्योंकि वह निरंतरता से ज्यादा मौजूदा फॉर्म और आक्रामकता को तरजीह देते हैं। यह दृष्टिकोण खिलाड़ियों पर हर मैच में प्रदर्शन करने का अत्यधिक। दबाव डालता है, जिससे उनके स्वाभाविक खेल पर असर पड़ सकता है।

संचार में कमी और सख्ती की शिकायतें

द्रविड़ के कार्यकाल में ड्रेसिंग रूम में खुशी और विश्वास का माहौल था, जहां खिलाड़ी बेझिझक खेलते थे और अपनी बात रख पाते थे। अब, कुछ रिपोर्ट्स में संचार में कमी और अत्यधिक सख्ती की शिकायतें सामने आ रही हैं। यह स्थिति खिलाड़ियों के मनोबल और प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। जब खिलाड़ियों को यह महसूस होता है कि उनके और प्रबंधन के बीच संवाद की कमी है, तो इससे गलतफहमी और असुरक्षा बढ़ सकती है। कुछ रिपोर्ट्स में तो गंभीर की तुलना पूर्व कोच ग्रेग चैपल से की गई है, जिनकी अत्यधिक सख्ती ने उस समय भारतीय ड्रेसिंग रूम को बुरी तरह प्रभावित किया था। चैपल के कार्यकाल में भी खिलाड़ियों और प्रबंधन के बीच तनाव की खबरें आम थीं, और यह तुलना मौजूदा स्थिति की गंभीरता को दर्शाती है।

मोहम्मद कैफ के गंभीर आरोप

हाल ही में, साउथ अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सीरीज के दौरान, पूर्व भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद कैफ। ने भी टीम मैनेजमेंट पर 'डर और असुरक्षा का माहौल' बनाने का गंभीर आरोप लगाया था। उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल पर कहा था कि 'टीम में बहुत कंफ्यूजन है। खिलाड़ियों में आत्मविश्वास की कमी दिख रही है। हर कोई डर के साथ खेल रहा है, किसी को लगता ही नहीं कि टीम मैनेजमेंट उनके साथ खड़ा है और ' कैफ ने अपने आरोपों को पुष्ट करने के लिए सरफराज खान और साई सुदर्शन का उदाहरण दिया। सरफराज खान ने शानदार शतक लगाने के बाद भी टेस्ट टीम में अपनी जगह पक्की नहीं कर पाए थे, जबकि साई सुदर्शन को साउथ अफ्रीका के खिलाफ 87 रन बनाने के बावजूद अगले मैच में बाहर कर दिया गया था। कैफ ने सवाल उठाया था, 'अगर 100 बनाकर भी खिलाड़ी को भरोसा नहीं मिलता, तो बाकी खिलाड़ियों को कैसे विश्वास होगा? ' ये उदाहरण स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि खिलाड़ियों के मन में अपनी जगह को लेकर कितनी अनिश्चितता है, और यह टीम के समग्र प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है और यह स्थिति टीम के भीतर दीर्घकालिक स्थिरता और खिलाड़ी विकास के लिए चिंताजनक संकेत है।

भविष्य की चुनौतियां और उम्मीदें

भारतीय क्रिकेट टीम के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है। जहां एक ओर गौतम गंभीर की सख्त कोचिंग शैली से त्वरित परिणाम की उम्मीद की जा सकती है, वहीं दूसरी ओर ड्रेसिंग रूम में पनप रही असुरक्षा और संचार की कमी टीम की दीर्घकालिक स्थिरता और खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। टीम प्रबंधन को इस स्थिति पर गंभीरता से विचार करना होगा और खिलाड़ियों के बीच विश्वास और स्पष्टता का माहौल फिर से स्थापित करने के लिए कदम उठाने होंगे। खिलाड़ियों को यह महसूस होना चाहिए कि उन्हें पर्याप्त समर्थन और अवसर मिल रहे हैं, ताकि वे बिना किसी डर के अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें। भारतीय क्रिकेट के भविष्य के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि टीम के भीतर एक सकारात्मक और सहायक वातावरण बना रहे, जहां हर खिलाड़ी अपनी भूमिका को लेकर आश्वस्त हो और टीम के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एकजुट होकर काम कर सके।