देश / हिजाब पर सवाल तो चूड़ी और क्रॉस को छूट क्यों? कर्नाटक हाई कोर्ट में उठा सवाल

Zoom News : Feb 16, 2022, 05:04 PM
Hijab Controversy: हिजाब विवाद को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट में छठे दिन सुनवाई के दौरान मुस्लिम छात्राओं का पक्ष रख रहे वकील ने पक्षपात का आरोप लगाया। वकील ने कहा कि आखिर सरकार अकेले हिजाब को ही क्यों मुद्दा बना रही है। उन्होंने कहा कि स्कूल और कॉलेजों में हिंदू लड़कियां चूड़ी पहनती हैं, जबकि ईसाई लड़कियां क्रॉस पहनती हैं। आखिर उन्हें क्यों नहीं संस्थानों से बाहर भेजा जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकारी आदेश में किसी अन्य धार्मिक प्रतीक की बात नहीं की गई है। आखिर हिजाब ही क्यों? क्या यह उनके मजहब के चलते ही नहीं है। मुस्लिम लड़कियों से भेदभाव पूरी तरह मजहब पर ही आधारित है। 

'नियम बदलने से एक साल पहले देनी थी परिजनों को जानकारी'

हिजाब की मांग करने वाली छात्राओं की ओर से पेश वकील ने कहा कि यदि बैन को लेकर कोई आदेश जारी किया गया है तो उस संबंध में छात्राओं के परिजनों को एक साल पहले ही इसकी जानकारी देनी थी। वकील रविकुमार वर्मा ने एजुकेशन एक्ट का हवाला देते हुए यह बात कही, जिसमें किसी भी नियम के बारे में एक साल पहले बताने का प्रावधान है। इसके साथ ही उन्होंने हाई कोर्ट से कहा कि वह इस मामले की सुनवाई को लेकर टाइम लिमिट तय करे और जल्दी से जल्दी हिजाब विवाद पर कोई फैसला करे। उन्होंने कहा कि कर्नाटक एजुकेशन एक्ट में हिजाब पर रोक जैसी किसी चीज का प्रस्ताव नहीं है। 

कॉलेज में ड्रेस कोड लेकर नहीं है कोई नियम

हिजाब समर्थक वकील ने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि आखिर किन नियम और अथॉरिटी के तहत उसने हिजाब पर रोक लगाई है। ऐसा किसी भी कानून में नहीं है। उन्होंने कहा कि प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में ड्रेस को लेकर कोई नियम नहीं है।  उन्होंने कहा, 'यह कानून नहीं है बल्कि एक नियमावलि है। इसमें कहा गया है कि प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में कोई यूनिफॉर्म नहीं है।' उन्होंने कहा कि कॉलेज डिवेलपमेंट काउंसिल इस संबंध में कोई नियम तय करने की अथॉरिटी नहीं है। 

भाजपा विधायक के कॉलेज कमिटी के प्रेसिडेंट होने पर सवाल

अधिवक्ता रवि कुमार वर्मा ने उडुपी के भाजपा विधायक के कॉलेज कमिटी के प्रेसिडेंट होने पर भी सवाल उठाया। उन्होने कहा कि एक विधायक जो एक राजनीतिक दल और विचारधारा का प्रतिनिधि है। क्या ऐसे किसी व्यक्ति की छात्रों के हित में काम करने की मंशा पर भरोसा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस तरह की समिति का गठन किया जाना लोकतंत्र के लिए बड़ी चिंता की बात है।

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