मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा एक सार्वजनिक कार्यक्रम में महिला डॉक्टर नुसरत परवीन का। हिजाब हटाए जाने के बाद उपजे विवाद ने गहरा रूप ले लिया है। इस घटना से आहत नुसरत परवीन ने बिहार सरकार की नौकरी जॉइन न करने। का फैसला किया है और वह वापस कोलकाता अपने परिवार के पास लौट गई हैं। 15 दिसंबर को हुई इस घटना के बाद से नुसरत सदमे में हैं और उन्हें मानसिक आघात पहुंचा है।
घटना का विस्तृत विवरण
यह घटना 15 दिसंबर को हुई जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र बांट रहे थे। कार्यक्रम के दौरान, उन्होंने डॉक्टर नुसरत परवीन को नियुक्ति पत्र दिया। इसके बाद, मुख्यमंत्री ने नुसरत के हिजाब की ओर इशारा करते हुए पूछा, "ये क्या है जी और " नुसरत ने जवाब दिया, "हिजाब है सर। " इस पर मुख्यमंत्री ने कहा, "हटाइए इसे," और फिर खुद अपने हाथ से नुसरत का हिजाब हटा दिया। इस दौरान, उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने नीतीश कुमार को रोकने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हुए। हिजाब हटाए जाने से नुसरत परवीन कुछ देर के लिए असहज हो गईं, और आसपास मौजूद लोग हंसने लगे। अधिकारियों ने उन्हें फिर से नियुक्ति पत्र थमाया और जाने। का इशारा किया, जिसके बाद वह वहां से चली गईं।
नुसरत परवीन का दर्द और फैसला
घटना के अगले ही दिन नुसरत परवीन कोलकाता में अपने परिवार के पास आ गईं। उन्होंने अपने भाई को फोन करके घटना की जानकारी दी थी, और उस दौरान वह काफी भावुक थीं। नुसरत का कहना है कि वह यह नहीं कह रही हैं कि मुख्यमंत्री ने जो किया वह जानबूझकर किया, लेकिन जो हुआ वह उन्हें अच्छा नहीं लगा। सार्वजनिक रूप से इतने लोगों के सामने हिजाब हटाना उनके लिए अपमान जैसा था, खासकर जब कुछ लोग हंस रहे थे। नुसरत ने बताया कि उन्होंने स्कूल से लेकर कॉलेज तक हमेशा हिजाब में ही पढ़ाई की है और यह उनकी संस्कृति का हिस्सा है। उनके माता-पिता ने भी हमेशा उन्हें हिजाब पहनने की शिक्षा दी है। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि उनकी गलती क्या थी। वह अभी भी उस दिन को याद करके सहम जाती हैं और उनका मन शांत नहीं है।
परिवार का समर्थन और भविष्य की अनिश्चितता
नुसरत के परिवार के बेहद करीबी और सीनियर जर्नलिस्ट शहनवाज अख्तर ने बताया कि घटना के बाद से नुसरत परवीन सदमे में हैं। परिवार लगातार उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन वह वापस बिहार आकर नौकरी जॉइन करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं। परिवार ने बिहार लौटने और नौकरी जॉइन करने का फैसला अब नुसरत पर ही छोड़ दिया है। नुसरत के भाई ने भी बताया कि वे उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि गलती दूसरे की है, तो उन्हें बुरा क्यों लगना चाहिए और किसी और की वजह से नौकरी क्यों छोड़नी चाहिए और नुसरत को 20 दिसंबर को नौकरी जॉइन करनी थी, लेकिन अब वह ऐसा नहीं करेंगी। नुसरत ने बड़ी मेहनत से डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया था और सरकारी नौकरी से अपने माता-पिता और भाई की मदद करने की उम्मीद थी। उनके माता-पिता ने समाज की उन बातों को दरकिनार कर उन्हें पढ़ाया था, जो कहते थे कि बेटी को ज्यादा नहीं पढ़ाना चाहिए। नुसरत के पिता ने उनसे कहा है कि वह वही करें जो उनका मन कहे, और उनका परिवार उनके साथ खड़ा है, जो उनके लिए बहुत बड़ी बात है। वह अभी अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित हैं।
मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों पर मीडिया प्रतिबंध
इस घटना के बाद, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यक्रमों में मीडिया की एंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। 20 दिसंबर को गयाजी में बिहार लोक प्रशासन और ग्रामीण विकास संस्थान (बिपार्ड) की ओर से आयोजित 2 दिवसीय कार्यशाला में मुख्यमंत्री शामिल हुए, लेकिन इस कार्यक्रम को JDU के पेज से लाइव नहीं किया गया और मीडिया की एंट्री बैन कर दी गई थी। इससे पहले, 19 दिसंबर को भी ऊर्जा विभाग में नियुक्ति पत्र बांटने के दौरान मीडिया की एंट्री प्रतिबंधित कर दी गई थी। यह कदम घटना के बाद संभावित मीडिया कवरेज और सवालों से बचने के लिए उठाया गया प्रतीत होता है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और शिकायतें
इस घटना पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। उत्तर प्रदेश के मंत्री संजय निषाद ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का. बचाव करते हुए कहा था, "अरे वो भी तो आदमी ही हैं न... छू लिया नकाब, तो इतना पीछे नहीं पड़ जाना चाहिए। कहीं और छू लिया तो क्या होता और " हालांकि, इस बयान के बाद उन्होंने माफी मांगी। दूसरी ओर, शायर मुनव्वर राणा की बेटी और सपा प्रवक्ता सुमैया राणा ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने संजय निषाद के बयान के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई है और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बेंगलुरु के एक वकील ओवैज हुसैन एस ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की है। यह घटना अब एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे का रूप ले चुकी है,। जिसमें महिला के सम्मान और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर बहस छिड़ गई है।
यह घटना बिहार में एक संवेदनशील मुद्दा बन गई है, जिसने मुख्यमंत्री के आचरण और सार्वजनिक कार्यक्रमों में प्रोटोकॉल पर सवाल खड़े कर दिए हैं। डॉक्टर नुसरत परवीन का सदमा और नौकरी छोड़ने का फैसला इस घटना के गंभीर मानवीय परिणामों को दर्शाता है।