लाइफस्टाइल / कश्मीर का हिस्सा रह चुकी हुंजा वैली किसी जन्नत से कम नहीं, खूबसूरत वादियां देख हो जाएगे मंत्रमुग्ध

India TV : Sep 16, 2019, 04:36 PM
अखंड कश्मीर का हिस्सा रही एक और जन्नत मानी वाली जगह हुंजा वैली। जिसमें अब पाकिस्तान का कब्जा है। हुंजा एक ऐसी जगह है जो अपनी खूबसूरती ही नहीं बल्कि यहां की महिलाएं पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा खूबसूरती के कारण फेमस है।  हुंजा की पहचान यहां के सादा जीवन जीने वाले लोग हैं, जो बूढ़े होने पर भी जवान नजर आते हैं।

दिल्ली से करीब 888 किलोमीटर दूर हुंजा जनजाति खूबसूरत वादियों में बसती है जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी POK के पास गिलगिट-बालटिस्तान का हिस्सा है। इस जमीन पर पाकिस्तान ने जबरदस्ती कब्जा किया हुआ है।

ये जगह दुनिया की सबसे ऊंचे तीन पहाड़ों के मिलन वाली जगह है। जहां पर आप हिलालय, हिमालयन रेंज, हिंदुकुश कुछ के पहाड़ और कराकोरम(K2) की पहाड़ियां देख सकते है। इतनी ही नहीं यह पर गिलगिट और सिंधु नदी भी मिलती हैं।

दुनियाभर में पर्यावरण पर रिसर्च करने वाली संस्था Our Breathing Planet की रिपोर्ट के मुताबिक हुंजा वैली  हजारों साल पहले आइस एज यानी हिम युग के दौरान आस्तिव में आई जब एक बड़ा एवलांच आया था। साल 2010 में भी हुंजा वैली में बड़ा एवलांच यानी बर्फीला तूफान आया था जिससे पंद्रह हजार लोग प्रभावित हुए थे और यहां एक नई झील अट्टाबाद बन गई।

हुंजा वैली एक प्रिंसली स्टेट था। जहां कि जनसंख्या करीब 88 हजार है। आपको बता दें कि हुंजा वैली का सबसे बड़ा शहर करीमाबाद है जो कभी यहां की राजधानी हुआ करता है। इसके साथ ही इस वैली के आखिरी हुक्मरान मीर मोहम्मद जमाल खान थे। मोहम्मद जमाल खान की मौत के बाद 25 सितंबर 1974 को पाकिस्तान ने हुंजा वैली को अपना हिस्सा बना लिया।

बलटिट महल

हुंजा वैली का बलटिट महल है जिसमें यहां की रिसायत के आखिरी मीर मोहम्मद जमाल खान बड़ी ही शान और शौकत से रहते थे। ये महल इस तरह से बनाया गया था जहां से ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से घिरी हुंजा वैली का नजारा दिखाई देता था।

बलटिट फोर्ट 800 साल से ज्यादा पुराना हो गया है। बलटिट फोर्ट 1945 में खाली हुआ। मीर मोहम्मद जमाल खान हुंजा का हुक्मरान थे, मीर मोहम्मद जमाल खान इसको खाली करके नए महल में रहने लगा उसके बाद ये महल 1990 तक खाली रहा।

अलटिट फोर्ट

बलटिट फोर्ट से पहले यहां अलटिट फोर्ट का निर्माण किया गया था, ये महल यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल है। जो करीब साढ़े आठ हजार मीटर की ऊंचाई पर है। ये फोर्ट 900 साल से ज्यादा पुराना है। दावा किया जाता है कि इस महल को इसलिए बनाया गया था ताकि चीन और हुंजा वैली के बीच होने वाली व्यापारिक सड़क यानी सिल्क रूट पर नजर रखी जा सके। बाद में महल के मालिकों ने बलटिट फोर्ट बनाया और वो इसे छोड़कर वहीं रहने लगे। अलटिट फोर्ट के पीछे एक गहरी खाई है। जहां से हुंजा नदी बहती हुई दिखती है।

हूंजा वैली के लोग

हुंजा वैली के लोग बेहद मिलनसार होते हैं। उनके आपसी भाईचारे का अंदाजा उनके रहने के अंदाज से ही लगाया जा सकता है। बलटिट फोर्ट के पास से अगर ये आबादी वाली जगह आप देखेंगे तो पाएंगे कैसे ये छोटे-छोटे घर आपस में जुड़े हुए हैं और ये लोग इसी तरह कई सौ सालों से एक साथ रहते आ रहे हैं।  हुंजा वैली में रहने वाले लोगों का मुख्य कारोबार, खेती है जहां सेब, चेरी,  खूबानी, अंगूर और सूखे मेवे भारी संख्या में उगाया जाता है।

खूबानी दुनियाभर में है फेमस

यहां पैदा होने वाली खूबानी पूरी दुनिया में मशहूर है, ये खूबानी कैसे तैयार की जाती है वो भी जान लीजिए। सबसे पहले पकी हुई खूबानी को पेड़ से तोड़ा जाता है, उसे एक जगह इकट्ठा किया जाता है, खूबानी के बीज निकाले जाते हैं, बीज और खूबानी अलग रखे जाते हैं। खुबानी के बीज के तेल का इस्तेमाल खाना बनाने में करते हैं।

लड़के और लड़कियों में फर्क नहीं

हुंजा वैली के लोग लड़के और लड़कियों में फर्क नहीं करते। इसलिए लड़कियां भी शिक्षा में बराबरी की भागीदार बनती हैं। यही नहीं मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर वो परिवार का हाथ बंटाती हैं।

हुंजा वैली की दस्तकारी दुनियाभर में फेमस

दस्तकारी के काम में हुंजा वैली के लोगों का जवाब नहीं है। हुंजा वैली के सबसे बड़े शहर करीमाबाद में आपको हर जगह दस्तकारी से जुड़े सामान मार्केट में मिल जाएंगे।

पर्यटकों को लुभा रही है हुंजा वैली

पिछले 11 महीनों में  करीब 12 लाख पर्यटक हुंजा वैली आ चुके हैं। साल 2017- 2018 में करीब 5 लाख पर्यटक हुंजा पहुंचे। हुंजा के लोग बताते हैं कि साल 2001 में अमेरिका 9/11 अटैक के बाद यहां पर्यटन उद्योग बैठ गया था लेकिन अब यहां सैलानी आने लगे हैं,

हुंजा वैली की खूबसूरती, सादा खाना, यहां का रहन-सहन, मेहमान नवाजी, लोक संगीत और कढ़ाई-बुनाई की वजह से पर्यटक बेहद आकृषित होते हैं।  साल 1993 में अमेरिकी पर्यटक एलिजाबेथ चरसिन हुंजा वैली के मुर्तुजाबाद आई थीं, वो यहां की खूसूरती से इतना प्रभावित हुईं कि यहीं की होकर रह गईं और यहीं के एक स्कूल में पढ़ाने लगी थीं।


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