संघर्ष की कहानी / बनना चाहती थीं IAS, बनीं वकील, 7 साल बिना पैसे लिए लड़ा निर्भया का केस

AajTak : Mar 20, 2020, 01:14 PM
नई दिल्ली | सात साल के लंबे इंतजार के बाद 20 मार्च, 2020 की सुबह 5:30 बजे निर्भया के चारों दोषियों को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई। जहां एक ओर दोषियों के वकील ने उन्हें बचाने के लिए हर दांव अपनाया, तो वहीं निर्भया की वकील सीमा कुशवाहा ने जबरदस्त लड़ाई हुए निर्भया और उनके परिवार को इंसाफ दिलाया। आइए जानते हैं कौन हैं सीमा कुशवाहा और कैसे उन्होंने लड़ी निर्भया की लड़ाई। 

दरअसल, 2012 से लेकर अबतक सीमा कुशवाहा निर्भया के लिए अदालत में इंसाफ की लड़ाई लड़ रही थीं। चारों दोषियों को फांसी मिलते ही लोग सीमा कुशवाहा को भी बधाई दे रहे हैं। यह पूरा केस सीमा कुशवाहा ने बिना एक पैसे लिए लड़ा है। 

घटना के बाद ही सीमा ने निर्भया का केस मुफ्त लड़ने की घोषणा की थी और निचली अदालत से लेकर ऊपरी अदालत तक निर्भया के दरिंदों को फांसी दिलाने के लिए लड़ाई लड़ती रहीं।

उत्तर प्रदेश की रहने वाली सीमा कुशवाहा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से वकालत की पढ़ाई की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वे IAS बनना चाहती थीं। साल 2012 में जब निर्भया के साथ ये घटना हुई थी, उस समय सीमा कोर्ट में ट्रेनिंग कर रही थीं, इसके वाद सीमा ने इस केस को बिना पैसे के लड़ने का निश्चय किया और यह भी संकल्प लिया कि वे निर्भया को इंसाफ दिलाकर रहेंगी।

एक इंटरव्यू में सीमा ने बताया था कि अगर वे मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट, लिस्टिंग के लिए कोशिश नहीं करतीं तो मामला शायब अब तक लटका ही रहता। सीमा ने बताया था कि वे खुद ऐसी जगह से आती हैं जहां लड़कियों को ज्यादा आजादी नहीं मिलती, बावजूद इसके वह वकील बनीं।

निर्भया का केस सीमा के वकालत करियर का पहला केस था, जिसे उन्होंने पूरे जज्बे के साथ लड़ा और आखिरकार जीत हासिल कर ली। इन सात वर्षों में केवल कोर्ट ही नहीं, बल्कि अदालत से बाहर भी सीमा निर्भया के माता-पिता के साथ खड़ी दिखीं।

दोषियों के वकील पर रहीं हमलावर- सीमा निर्भया के दोषियों के वकील एपी सिंह पर अदालत के अंदर और अदालत के बाहर भी हमलावर रही। केस को अंतरराष्ट्रीय अदालत ले जाने पर सीमा ने इसे भारत की संप्रभुता पर हमला बताया था।

निर्भया केस के चारों दोषियों को फांसी मिलने के बाद सीमा का कहना है कि मैं निर्भया गैंगरेप मामले के बाद से ही विरोध प्रदर्शनों में शामिल थी। आज मुझे खुशी है कि मैं उन्हें इंसाफ दिला सकी।

वर्तमान में सीमा सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिसिंग अधिवक्ता हैं। वे कहती हैं कि निर्भया का केस लड़ना उनके लिए भी एक बड़ी चुनौती थी। इस लड़ाई के दौरान निर्भया के परिवार के साथ और खासकर उसकी मां के साथ उनका एक भावनात्मक संबंध बन गया है।

फांसी के बाद निर्भया की मां ने भी सबसे पहले सीमा कुशवाहा को ही धन्यवाद कहा है। निर्भया की मां ने कहा कि सीमा के बिना यह संभव नहीं था।

16 दिसंबर 2012 को हुई थी घटना: 

बता दें कि 16 दिसंबर 2012 की रात को एक वीभत्स वारदात में देश की राजधानी दिल्ली के मुनिरका में 6 लोगों ने चलती बस में पैरामेडिकल की छात्रा से गैंगरेप किया। इस मामले में दरिंदगी की वो सारी हदें पार की गईं, जिसे देखकर-सुनकर कोई दरिंदा भी दहशत में आ जाए। वारदात के वक्त पीड़िता का दोस्त भी बस में था। दोषियों ने उसके साथ भी मारपीट की थी। इसके बाद युवती और दोस्त को चलती बस से बाहर फेंक दिया था।

पीड़िता का दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज चल रहा था, लेकिन हालत में सुधार नहीं होने पर उसे सिंगापुर भेजा गया। वहां अस्पताल में इलाज के दौरान 29 दिसंबर को पीड़िता जिंदगी की जंग हार गई। पीड़िता की मां ने बताया था कि वह आखिरी दम तक जीना चाहती थी।

निर्भया के दोषियों को सजा दिलाने की लड़ाई दिल्ली की अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक होती रही। अदालती सुनवाइयों के दौरान ही निर्भया के एक दोषी ने जेल में ही आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद भी बाकी के चारों दोषियों ने कई बार कानूनी दांव-पेच खेले, कभी स्थानीय अदालत में याचिका तो कभी सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली। कई बार फांसी टली भी लेकिन आखिरकार शुक्रवार को चारों दोषियों को फांसी पर लटका दिया गया।

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