पहलगाम हमले के बाद भारत का कड़ा कदम
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए भीषण आतंकवादी हमले ने भारत को कड़ा रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया और इस हमले में 26 भारतीय नागरिकों की जान चली गई थी, जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई दंडात्मक उपाय किए। इन उपायों में सबसे महत्वपूर्ण 1960 की सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को "स्थगन" में डालना था। यह संधि, जिसकी मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी, 1960 से भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल के वितरण और उपयोग को नियंत्रित करती आ रही थी। भारत के इस ऐतिहासिक निर्णय ने क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक नया अध्याय खोल दिया, जिससे दोनों देशों के संबंधों में एक नया तनाव पैदा हो गया।
पाकिस्तान में भयावह होते हालात
सिंधु जल संधि रद्द होने के ठीक छह महीने बाद, पाकिस्तान में स्थिति गंभीर रूप से बिगड़ गई है। देश के कई हिस्सों में लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं, जिससे कृषि और दैनिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री और उप प्रधानमंत्री इशाक डार ने शुक्रवार को भारत पर सिंधु जल संधि को लगातार कमजोर करने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए कहा कि नई दिल्ली के इस कदम से उनके लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है। उन्होंने चेतावनी दी कि पाकिस्तान के लोग भूखों और प्यासों मरने पर मजबूर हो जाएंगे, जो एक गंभीर मानवीय संकट की ओर इशारा करता है। जल संकट ने देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने पर गहरा असर डाला है।
कृषि चक्र पर गहरा असर
उप प्रधानमंत्री डार ने स्पष्ट किया कि भारत के इस कदम से पाकिस्तान का कृषि चक्र पूरी तरह से टूट गया है। सिंधु बेसिन में जल की शून्यता ने कृषि गतिविधियों को ठप कर दिया है, जिससे खाद्य उत्पादन में भारी गिरावट आई है और यह स्थिति सीधे तौर पर पाकिस्तान के लोगों के जीवन और आजीविका के लिए खतरा पैदा कर रही है। कृषि पर निर्भर एक बड़े वर्ग के लिए यह एक विनाशकारी झटका है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है। फसलों की सिंचाई के लिए पानी की कमी ने किसानों को बेहाल कर दिया है।
पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इशाक डार ने भारत के इस एक्शन पर अपनी गहरी नाराजगी और बौखलाहट व्यक्त की है और उन्होंने आरोप लगाया कि भारत ने सिंधु जल संधि पर एकतरफा कार्रवाई करते हुए इसे रद्द कर दिया, और अब जो देखा जा रहा है वह भारत द्वारा भौतिक उल्लंघन हैं जो संधि के मूल में चोट पहुंचाते हैं। डार ने कहा कि इससे क्षेत्रीय स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय कानून की पवित्रता दोनों को चुनौती पेश होती है। उन्होंने भारत पर "पानी की हेराफेरी" करने का भी आरोप लगाया, जिससे पाकिस्तान में भयावह हालात पैदा हो रहे हैं। उनके अनुसार, यह भारत की ओर से एक जानबूझकर की गई कार्रवाई है।
भारत के एक्शन से पाकिस्तान में खलबली
भारत के इस कड़े कदम से पाकिस्तान में खलबली मच गई है। डार ने कहा कि भारत ने अपने इस कदम से पाकिस्तानियों के जीवन को खतरे में डाल दिया है, क्योंकि इससे पाकिस्तान बाढ़ और सूखे दोनों के प्रति असुरक्षित हो गया है और जल आपूर्ति में कमी ने देश को एक ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है जहां उसे गंभीर पर्यावरणीय और मानवीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान के नेताओं और जनता के बीच इस मुद्दे पर चिंता और आक्रोश स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है और यह स्थिति देश में आंतरिक अस्थिरता को भी बढ़ा सकती है।
ऑपरेशन सिंदूर और आतंकी ठिकानों का खात्मा
पहलगाम हमले के बाद भारत ने केवल सिंधु जल संधि को ही रद्द नहीं किया, बल्कि पाकिस्तान के खिलाफ "ऑपरेशन सिंदूर" भी चलाया और इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सेना ने 9 आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया और इस दौरान 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया। यह कार्रवाई पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश देने के लिए की गई थी, और इसने स्पष्ट। कर दिया कि भारत अपनी संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। यह सैन्य कार्रवाई और जल संधि का स्थगन दोनों ही भारत की दृढ़ता को दर्शाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय कानून और क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव
इशाक डार ने अपने बयान में कहा कि भारत के कार्य सिंधु जल संधि के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय कानून की पवित्रता दोनों को चुनौती मिलती है। उन्होंने चेतावनी दी कि पानी की आपूर्ति रोकना युद्ध का कार्य माना जाएगा। यह बयान इस मुद्दे की गंभीरता और इसके संभावित भू-राजनीतिक परिणामों को रेखांकित करता है। पाकिस्तान इस मामले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश कर सकता है, जिससे भारत और पाकिस्तान। के बीच तनाव और बढ़ सकता है, और वैश्विक समुदाय का ध्यान इस ओर आकर्षित हो सकता है।