Science / जगुआर लड़ाकू विमान से तेज घूमती है अपनी धरती, क्या ये पता है आपको?

Zoom News : Jun 28, 2021, 04:08 PM
Delhi: धरती लगातार घूम रही है। एक तो सूरज के चारों तरफ। दूसरा अपनी धुरी पर। जैसे कोई बास्केटबॉल किसी खिलाड़ी की उंगली पर घूमती है। ये बातें तो हम बचपन से जानते हैं। लेकिन क्या ये जानते हैं कि धरती की गति कितनी है। इसकी अपनी धुरी पर घूमने की गति और सूरज के चारों तरफ घूमने की गति कितनी है। इतना ही नहीं हम आपको इसके आगे की बात भी बताएंगे कि हमारा सौर मंडल अपने आकाशगंगा यानी मिल्की-वे का कितना तेज चक्कर लगाता है।

इतने सवालों के बाद तो आपका सिर धरती की तरह अपनी धुरी यानी गर्दन के ऊपर घूमने लगा होगा। इन सवालों का जवाब सबसे पहले खोजना शुरू करते हैं पृथ्वी से। धरती अपनी धुरी पर हर 24 घंटे में एक चक्कर लगाती है। लेकिन ये बात सही नहीं है। आपको इसका सटीक समय बताते हैं। धरती अपनी धुरी पर एक चक्कर लगाने में 23 घंटे, 56 मिनट और 4 सेकेंड का समय लेती है।

धरती का व्यास 40,070 किलोमीटर का है। अगर आप इस दूरी को समय से विभाजित करें या भाग दें तो धरती की गति निकलकर आती है 1670 किलोमीटर प्रतिघंटा। यानी यह अपनी धुरी पर इतनी गति से घूमती है, जो किसी भारतीय वायुसेना के जगुआर फाइटर जेट से ज्यादा है। जगुआर 1350 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से उड़ता है। वहीं, धरती, सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाने के लिए 1.10 लाख किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चलती है। ये खुलासा किया है न्यूयॉर्क के इथाका स्थित कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोनॉमर्स ने। इन एस्ट्रोनॉमर्स ने अपने एक ब्लॉग चला रखा है, जिसका नाम है आस्क एन एस्ट्रोनॉमर। (

आस्क एन एस्ट्रोनॉमर अपनी इस गणित को समझाता भी है। इसमें बताया गया है कि सूरज के चारों तरफ धरती की दूरी नामने के लिए हमें इस पूरे सर्किल की परिधि (Circumference) की गणना करनी होगी। धरती सूरज से औसत 14।90 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह आमतौर पर सूरज के चारों तरफ गोलाकार कक्षा में चक्कर लगाती है। इस गोलाकार कक्षा की परिधि निकालने का फॉर्मूला है 2*pi*radius या 2*3।14*93 मिलियन माइल्स। एक बार परिधि निकल गई तो कक्षा में घूमने की गति भी निकल जाएगी। आपको गणित में उलझने की जरूरत नहीं है, ये स्पीड है 1.10 लाख किलोमीटर प्रतिघंटा।

सौर मंडल में ही हमारा सूरज है, जिसके चारों तरफ कई ग्रह चक्कर लगा रहे हैं। यह सौर मंडल हमारे मिल्की-वे आकाशगंगा में मौजूद हैं। यह सौर मंडल आकाशगंगा के मध्य भाग के चारों तरफ चक्कर लगता है। एस्ट्रोफिजिसिस्ट ये बात जानते हैं कि हमारी आकाशगंगा भी अपने मध्य भाग के चारों तरफ चक्कर लगा रही है। क्योंकि ये निष्कर्ष हर तारे के मूवमेंट पर निकाला गया है। 

कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी की एस्ट्रोफिजिसिस्ट कैटी मैक कहती हैं कि आकाशगंगा में मौजूद तारों की पोजिशन बदलती रहती है। इसके मध्य भाग के चारों तरफ सारे तारे घूमते रहते हैं। कुछ अपनी धुरी पर भी घूमते हैं। हमारा पूरा सौर मंडल आकाशगंगा के मध्यभाग के चारों तरफ तेजी से घूम रहा है। कैटी इसे समझाने के लिए एक बेहतरीन उदाहरण देती हैं। 

कैटी कहती हैं कि अगर में चलना शुरु करूं तो मैं कह सकती हूं कि मैं आगे बढ़ रही हूं क्योंकि मेरे पीछे इमारतें छूट रही हैं। वो मेरे आगे से पीछे की ओर जा रही है। लेकिन जब आप चलते हुए किसी दूर स्थित चीज को देखते हैं तो लगता है कि वो घूम तो रहा है लेकिन बेहद धीमी गति में। जैसे- कोई पहाड़। यह निर्भर करता है आपकी पोजिशन और गति पर कि आप दूर स्थित उस पहाड़ को कितनी तेज घूमते हुए पाते हैं। 

सवाल ये है कि हमारा सौर मंडल अपनी आकाशगंगा के मध्य भाग के चारों तरफ कितनी गति में घूम रहा है। इसका जवाब ये है कि हमारा सौर मंडल आकाशगंगा के मध्य भाग के चारों तरफ 7।20 लाख किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चक्कर लगा रहा है। आकाशगंगा के चारों तरफ काफी दबाव और खिंचाव है। इसे अन्य आकाशगंगाएं और उनका समूह इसे खींचता है। दबाता है। हमारा सौर मंडल अन्य तारों की गति के अनुरूप आकाशगंगा में अपनी गति कम या ज्यादा तय करता है।

कैटी कहती हैं कि हमें धरती, सूरज या सौर मंडल की गति का इसलिए पता नहीं चलता क्योंकि हम खुद भी धरती पर घूम रहे हैं। ये ठीक वैसा ही है जैसे हवाई जहाज में बैठे पैसेंजर्स को ये पता नहीं चलता कि उनकी गति कितनी है। जब प्लेन टेकऑफ करता है सिर्फ तभी पैसेंजर्स को उसकी गति का थोड़ा अंदाजा लगता है। एक बार प्लेन हवा में पहुंच गया तब आपको उसकी गति पता नहीं चलती। क्योंकि गति एक समान रखी जाती है। वह बदली नहीं जाती। अगर गति को बार-बार बदला जाए तो यह आपको पता चलेगी। यानी धरती या सौर मंडल अपनी गति बदले तो आपको यह भी पता चलेगा।

कैटी ने कहा कि अगर आपको धरती या अपने सौर मंडल की गति देखनी है तो आपको इसके बाहर देखना होगा। जैसे आप प्लेन या ट्रेन की खिड़की से बाहर देखकर उसकी गति का अंदाजा लगता है। या फिर पीछे जाते हुए लैंडस्केप को देखकर। हमें धरती की गति का पता इसलिए नहीं चलता क्योंकि हम धरती के ऊपर खड़े हैं, और धरती की ही गति से सूरज के चारों तरफ चक्कर लगा रहे हैं। या फिर उसकी धुरी पर घूम रहे हैं, जैसा कि प्लेन में होता है। 

SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER