विशेष / करणी माँ नवरात्रि स्पेशल: सप्तमी में होती है चूहों वाली माँ की पूजा

Zoom News : Oct 05, 2019, 04:44 PM
Karni Mata Mandir | करणी माता का मन्दिर एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है जो राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित है। इसमें देवी करणी माता की मूर्ति स्थापित है। यह बीकानेर से 30 किलोमीटर दक्षिण दिशा में देशनोक में स्थित है। यह मन्दिर चूहों का मन्दिर भी कहलाया जाता है। मन्दिर मुख्यतः काले चूहों के लिए प्रसिद्ध है। इस पवित्र मन्दिर में लगभग 2000 काले चूहे रहते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहां आते हैं। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है।

विक्रम संवत 1444 में करणी का जन्म फलोदी के पास सुवाप गांव में मेहाजी चरण की छठी संतान के रूप में हुआ था। माता का जन्म का नाम रिधाबाई था। चमत्कारों से प्रभावित होकर उसका नाम कर्णी रखा गया। करणी माता का जन्म लगभग साढ़े छह साल पहले चरन वंश में हुआ था। जन्म से, माँ के चमत्कार समय-समय पर लोगों को आश्चर्यचकित करते रहे हैं।

अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहां एक गुफा में रहकर मां अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। बताते हैं कि मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी।

वह जोधपुर और बीकानेर के शाही परिवारों का एक आधिकारिक देवता है। वह एक तपस्वी जीवन जीती थी और अपने जीवनकाल में व्यापक रूप से पूजनीय थी। बीकानेर और जोधपुर के महाराजाओं के अनुरोध पर, उन्होंने इस क्षेत्र के दो सबसे महत्वपूर्ण किलों बीकानेर किले और मेहरानगढ़ किले की आधारशिला रखी। अपने जीवनकाल के दौरान उन्हें समर्पित एक और मंदिर दूसरों से इस मायने में अलग है कि इसमें उनकी कोई छवि या मूर्ति नहीं है, बल्कि उस स्थान पर उनकी यात्रा का प्रतीक है। करणी माता को "दादी वली डोकरी" के नाम से भी जाना जाता है।

करणी मां की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पड़ाव से संबंध रखती हैं। बताते हैं कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। संवत 1595 की चैत्र शुक्ला 14 से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा होती चली आ रही है।

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