- भारत,
- 11-Dec-2025 09:05 AM IST
- (, अपडेटेड 11-Dec-2025 09:52 AM IST)
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे उठाए और बुधवार को विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) पर चर्चा के दौरान, ओवैसी ने चुनाव आयोग पर संसद द्वारा बनाए गए नियमों और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करने का गंभीर आरोप लगाया। उनके बयानों ने देश में चुनावी प्रक्रियाओं, अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व और राष्ट्रीय पहचान से जुड़े सवालों पर एक नई बहस छेड़ दी है।
मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर चिंता
असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की बेहद कम संख्या पर गहरी चिंता व्यक्त की और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जहां मुसलमानों की एक बड़ी आबादी है, उनका विधायी निकायों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व होना आवश्यक है। ओवैसी ने एक महत्वपूर्ण तुलना करते हुए कहा कि यदि मुस्लिम-बहुल वायनाड निर्वाचन क्षेत्र एक गैर-मुस्लिम सांसद चुन सकता है, तो उत्तर प्रदेश के रायबरेली, अमेठी और इटावा जैसे निर्वाचन क्षेत्र, जो अक्सर गैर-मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनते हैं, मुस्लिम प्रतिनिधियों को क्यों नहीं चुन सकते? यह सवाल सीधे तौर पर चुनावी राजनीति में धार्मिक पहचान और प्रतिनिधित्व के जटिल समीकरणों पर प्रकाश डालता है। उन्होंने भारत के संविधान निर्माता बी. आर. अंबेडकर के विचारों का भी हवाला दिया, जिन्होंने राजनीतिक शक्ति को सामाजिक प्रगति और सशक्तिकरण की कुंजी बताया था। ओवैसी ने इस बात पर बल दिया कि अल्पसंख्यकों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व न केवल उनके अधिकारों। की रक्षा के लिए बल्कि एक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए भी महत्वपूर्ण है।सत्तारूढ़ और धर्मनिरपेक्ष दलों पर निशाना
अपने संबोधन में, ओवैसी ने सत्तारूढ़ दल पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि वर्तमान में संसद में केवल चार प्रतिशत मुस्लिम सांसद हैं, और सत्तारूढ़ पार्टी में कोई मुस्लिम सदस्य नहीं है। यह टिप्पणी सीधे तौर पर सत्ताधारी दल में मुस्लिम प्रतिनिधित्व की कमी को उजागर करती है। इसके साथ ही, उन्होंने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) जैसी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों पर भी अप्रत्यक्ष रूप से हमला किया। ओवैसी ने कहा कि मुसलमान न केवल सत्तारूढ़ दल में बल्कि इन धर्मनिरपेक्ष पार्टियों में भी पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, जो अक्सर खुद को अल्पसंख्यकों के हितैषी के रूप में प्रस्तुत करती हैं। उनका यह बयान इन पार्टियों की अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाता है और यह दर्शाता है। कि मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक रूप से हाशिए पर धकेला जा रहा है, चाहे वह सत्ता पक्ष हो या विपक्ष। यह स्थिति भारतीय राजनीति में मुस्लिम समुदाय की स्थिति को लेकर एक गंभीर चिंता का विषय बनती है।'बैकडोर NRC' के आरोप
AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग पर संसद द्वारा बनाए गए नियमों और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करने का आरोप लगाते हुए कहा कि देश में एक 'बैकडोर NRC' (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) चल रहा है। उन्होंने दावा किया कि चुनाव आयोग ने सार्वजनिक डोमेन में आदेश डाले बिना ही 35 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से काट दिए हैं। ओवैसी ने इस प्रक्रिया को 'विशेष सघन पुनरीक्षण' (SIR) का नाम दिया और इसे धार्मिक आधार पर लोगों को मताधिकार से वंचित करने की एक दुर्भावनापूर्ण प्रक्रिया बताया। उनके अनुसार, यह संसदीय कानून और सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का सीधा उल्लंघन है, जो नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करते हैं। उन्होंने चुनाव आयोग पर अपनी शक्तियों का अतिक्रमण करने और। संवैधानिक जनादेश से परे जाकर कार्य करने का भी आरोप लगाया। यह आरोप चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं, खासकर जब यह अल्पसंख्यक समुदायों के मताधिकार से जुड़ा हो।जर्मनी जैसी व्यवस्था अपनाने की अपील
अपने भाषण के दौरान, असदुद्दीन ओवैसी ने भारतीय चुनावी प्रणाली में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया और उन्होंने बीजेपी सरकार से अपील की कि देश में जर्मनी जैसी संसदीय व्यवस्था अपनाई जाए। जर्मनी की चुनावी प्रणाली में आनुपातिक प्रतिनिधित्व का एक तत्व शामिल है, जहां सीटों का वितरण पार्टियों को मिले वोटों के प्रतिशत के आधार पर होता है, जिससे छोटे दलों और अल्पसंख्यक समुदायों को भी प्रतिनिधित्व मिलने की अधिक संभावना होती है। ओवैसी का यह सुझाव भारत में अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व की कमी को दूर करने और चुनावी परिणामों। को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक संभावित समाधान के रूप में देखा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि 'हमें आम सहमति बनाकर वोट के अधिकार को मूल अधिकार बनाना चाहिए और ' यह मांग नागरिकों के मताधिकार को और अधिक मजबूत करने और इसे एक अलंघनीय संवैधानिक अधिकार बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा, जिससे कोई भी सरकार या संस्था आसानी से इसे छीन न सके।वंदे मातरम पर ओवैसी का स्पष्टीकरण
असदुद्दीन ओवैसी ने मुसलमानों द्वारा वंदे मातरम न गाने के पीछे के कारणों पर भी स्पष्टीकरण दिया, जो अक्सर एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। उन्होंने कहा, 'हम अपनी मां की इबादत नहीं करते, हम कुरान की भी इबादत नहीं करते और इस्लाम में अल्लाह के सिवा कोई खुदा नहीं। ' इस बयान के माध्यम से, ओवैसी ने इस्लाम की एकेश्वरवादी प्रकृति पर जोर दिया, जहां केवल अल्लाह की पूजा की जाती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मुसलमानों के लिए 'वंदे मातरम' का पाठ न। करना देश के प्रति उनकी वफादारी की कमी को नहीं दर्शाता है। उन्होंने दृढ़ता से कहा, 'वतन मेरा है हम उसे छोड़कर नहीं जाएंगे। वफादारी का सर्टिफिकेट हमसे मत लीजिए। ' यह टिप्पणी उन लोगों के लिए एक सीधा जवाब थी जो अक्सर मुसलमानों की देशभक्ति पर सवाल उठाते हैं। ओवैसी ने इस बात पर जोर दिया कि देश के प्रति प्रेम और वफादारी को किसी विशेष गीत के गायन से नहीं मापा जाना चाहिए, बल्कि यह नागरिकों के कार्यों और उनके देश के प्रति समर्पण से परिलक्षित होता है। उनके इस स्पष्टीकरण ने राष्ट्रीय पहचान और धार्मिक स्वतंत्रता के बीच के जटिल संबंधों को एक बार फिर सामने ला दिया है। ओवैसी के इन बयानों ने संसद में एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दिया है, जो चुनावी सुधारों, अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व और संवैधानिक अधिकारों के इर्द-गिर्द घूमती है। उनके आरोप और सुझाव भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखते हैं।मैं SIR (Special Intensive Revision) का विरोध करता हूँ। यह बैकडोर NRC है। मुसलमानों को अब सिर्फ मतदाता के रूप में क्यों देखा जा रहा है? लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान मेरी स्पीच pic.twitter.com/aKXwmhtGM9
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) December 10, 2025