प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को लोकसभा में 'वंदे मातरम्' की 150वीं वर्षगांठ पर एक विशेष चर्चा की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने कांग्रेस पार्टी और विशेष रूप से जवाहरलाल नेहरू को एक बार फिर कटघरे में खड़ा किया। पीएम मोदी ने जोर देकर कहा कि 'वंदे मातरम्' केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा और स्वतंत्रता संग्राम का एक अभिन्न अंग है, जिसके साथ कांग्रेस ने कथित तौर पर विश्वासघात किया।
एक ऐतिहासिक अवसर का स्मरण
पीएम मोदी ने 'वंदे मातरम्' की रचना के 150 साल पूरे होने को एक ऐतिहासिक अवसर बताया, जिसके साक्षी बनना हम सबके लिए सौभाग्य की बात है। उन्होंने कहा कि यह केवल एक वर्षगांठ नहीं, बल्कि भारत के गौरवशाली अतीत और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद करने का एक पवित्र क्षण है। यह अवसर हमें उस भावना को फिर से जगाने का मौका देता है, जिसने लाखों भारतीयों को एकजुट किया था।
केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का मंत्र नहीं
संसद में अपने संबोधन के दौरान, पीएम मोदी ने 'वंदे मातरम्' के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का मंत्र नहीं था और उन्होंने स्पष्ट किया कि यह भारत माता को उपनिवेशवाद के अवशेषों से मुक्त करने के लिए एक पवित्र युद्धघोष था। यह गीत केवल अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने तक सीमित नहीं था, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और। आध्यात्मिक स्वतंत्रता की भी घोषणा करता था, जो हर भारतीय के हृदय में राष्ट्रप्रेम की भावना को प्रज्वलित करता था।
कांग्रेस द्वारा वंदे मातरम् के टुकड़े
पीएम मोदी ने कांग्रेस पर 'वंदे मातरम्' के टुकड़े करने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति को साधने का एक तरीका था। इस आरोप के माध्यम से, पीएम मोदी ने कांग्रेस की ऐतिहासिक नीतियों पर सवाल उठाया, यह सुझाव देते हुए कि पार्टी ने राजनीतिक लाभ के लिए राष्ट्रीय प्रतीकों और भावनाओं के साथ समझौता किया। यह कृत्य, उनके अनुसार, केवल एक गीत का विभाजन नहीं। था, बल्कि भारत की एकता और अखंडता पर एक आघात था।
तुष्टीकरण की राजनीति और भारत का विभाजन
प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि तुष्टीकरण की राजनीति के दबाव में कांग्रेस 'वंदे मातरम्' के बंटवारे के लिए झुकी। उन्होंने आगे कहा कि इसी कारण कांग्रेस को एक दिन भारत के बंटवारे के लिए भी झुकना पड़ा था। यह एक सीधा आरोप था, जो 'वंदे मातरम्' के साथ हुए कथित अन्याय को भारत के विभाजन की ऐतिहासिक त्रासदी से जोड़ता है, यह दर्शाता है कि कैसे एक छोटे से समझौते ने बड़े राष्ट्रीय परिणामों को जन्म दिया।
नेहरू का डोलता सिंहासन और जिन्ना का विरोध
पीएम मोदी ने 15 अक्टूबर 1936 को लखनऊ से मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा 'वंदे मातरम्' के खिलाफ बुलंद किए गए नारे का भी जिक्र किया और उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा था। पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि नेहरू ने मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों को करारा जवाब देने या उसकी निंदा करने के बजाय, उल्टा 'वंदे मातरम्' की ही जांच-पड़ताल करना शुरू कर दिया और यह घटनाक्रम नेहरू की नेतृत्व क्षमता और राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाता है।
आपातकाल: इतिहास का एक काला अध्याय
कांग्रेस नेताओं की ओर देखते हुए, पीएम मोदी ने सदन में कहा कि जब 'वंदे मातरम्' के 100 साल पूरे हुए थे, तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। उन्होंने आपातकाल को हमारे इतिहास का एक काला अध्याय बताया, जब भारत के संविधान का गला घोंट दिया गया था। यह टिप्पणी 'वंदे मातरम्' के शताब्दी वर्ष को देश के एक ऐसे दौर से जोड़ती है,। जब लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन हुआ था, जिससे इस गीत के महत्व और भी बढ़ जाता है।
वंदे मातरम् की महानता को पुनर्स्थापित करने का अवसर
प्रधानमंत्री ने कहा कि अब हमारे पास 'वंदे मातरम्' की महानता को पुनर्स्थापित करने का अवसर है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। यह एक आह्वान था कि देश को 'वंदे मातरम्' के मूल गौरव को वापस लाना चाहिए और इसे केवल एक राजनीतिक प्रतीक के रूप में नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय प्रेरणा के स्रोत के रूप में देखना चाहिए।
पिछली सदी में हुआ अन्याय और युवा पीढ़ी से साझा इतिहास
पीएम मोदी ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पिछली सदी में व्यापक भावनात्मक जुड़ाव के बावजूद 'वंदे मातरम्' के साथ अन्याय हुआ। उन्होंने कहा कि इसका इतिहास युवा पीढ़ी के साथ साझा किया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आने वाली पीढ़ियां इस गीत के वास्तविक महत्व और इसके पीछे के बलिदान को समझें, ताकि वे अपने राष्ट्रीय विरासत पर गर्व कर सकें।
मुस्लिम लीग के दबाव में कांग्रेस का समर्पण
पीएम मोदी ने एक बार फिर दोहराया कि 'वंदे मातरम्' के टुकड़े करने के फैसले में यह नकाब पहनाया गया कि यह तो सामाजिक सद्भाव का काम है। लेकिन, इतिहास इस बात का गवाह है कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए और मुस्लिम लीग के दबाव में यह किया गया। यह कांग्रेस का तुष्टीकरण की राजनीति को साधने का एक तरीका था। यह आरोप कांग्रेस की नीतियों पर एक गंभीर सवाल उठाता है, यह सुझाव देता है कि पार्टी ने राष्ट्रीय हितों पर राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता दी।
सुभाष चंद्र बोस के सामने नेहरू की चिंताएं
मुस्लिम लीग के विरोध और एम. ए. जिन्ना के रुख का जिक्र करते हुए, पीएम मोदी ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस के सामने इस संदर्भ में चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने तर्क दिया था कि आनंदमठ ने इस गीत का दृढ़तापूर्वक समर्थन करने के बजाय यह तर्क दिया था कि इससे मुस्लिम भावनाएं आहत हो सकती हैं। यह दर्शाता है कि कैसे राष्ट्रीय एकता के बजाय कथित सांप्रदायिक। भावनाओं को प्राथमिकता दी गई, जिससे 'वंदे मातरम्' की स्थिति कमजोर हुई।
मातृभूमि को मुक्त कराने की पवित्र जंग
पीएम मोदी ने अपने संबोधन का समापन करते हुए कहा कि 'वंदे मातरम्' सिर्फ राजनीतिक लड़ाई का मंत्र नहीं था। यह सिर्फ अंग्रेज जाएं और हम अपनी राह पर खड़े हो जाएं, यहां तक सीमित नहीं था। यह आजादी की लड़ाई थी, इस मातृभूमि को मुक्त कराने की जंग थी। मां भारती को उन बेड़ियों से मुक्त कराने की एक पवित्र जंग थी। यह 'वंदे मातरम्' के गहरे, बहुआयामी महत्व को दर्शाता है, जो केवल एक गीत से कहीं बढ़कर, भारत की स्वतंत्रता और अस्मिता का प्रतीक है।