देश / जानें एशिया के मुकाबले अमेरिका और यूरोप में ज्यादा जानलेवा साबित क्‍यों हुआ कोरोना?

News18 : May 29, 2020, 05:35 PM
दिल्ली:  कोरोना वायरस (Coronavirus) की वजह से एशियाई देशों (Asia) के मुकाबले उत्‍तरी अमेरिका (US) और पश्चिमी यूरोप (Europe) में ज्‍यादा मौतों की वजह अब तक रहस्‍य ही बनी हुई है। दुनियाभर में संक्रमितों की जांच की अलग रणनीति, गणना के अलग तरीके और बताए जा रहे पुष्‍ट मामलों की संख्‍या पर उठे सवालों के बीच दुनियाभर में मृत्‍यु दर (Mortality Rate) में बड़े अंतर ने वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि एशिया में ज्‍यादातर देशों ने खतरे को भांपते हुए समय रहते सोशल डिस्‍टेंसिंग (Social Distancing) और लॉकडाउन (Lockdown) जैसे नियमों को बड़े पैमाने पर लागू किया। इससे एशिया में मृत्‍यु दर कम रही है। हालांकि, वैज्ञानिक और शोधकर्ता इसके अलावा लोगों के जेनेटिक्‍स (Genetics), इम्‍यून सिस्‍टम (Immune System), अलग वायरस स्‍ट्रेंस (Virus Strains) में अंतर जैसे दूसरे पहलुओं पर भी काम कर रहे हैं।

प्रति 10 लाख लोगों पर मरने वालों के आंकड़ों में बड़ा अंतर

चीन के वुहान (Wuhan) शहर में सबसे पहले दिसंबर 2019 में कोरोना वायरस फैलना शुरू हुआ। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, चीन (China) में अब तक 5,000 से कम लोगों की कोरोना वायरस (COVID-19) से मौत हुई है। इस आधार पर चीन में प्रति 10 लाख लोगों पर 3 लोगों की मौत हुई है। वहीं, जापान में ये आंकड़ा 7 लोगों की मौत का है। वियतनाम, कंबोडिया और मंगोलिया का कहना है कि उनके यहां कोविड-19 से एक भी व्‍यक्ति की मौत नहीं हुई है।

अब अगर जर्मनी का आंकड़ा देखें तो वहां हर 10 लाख लोगों में करीब 100 लोगों की कोविड-19 से मौत हुई है। वहीं, प्रति 10 लाख लोगों पर कनाडा में 180, अमेरिका में करीब 300 और ब्रिटेन, इटली व स्‍पेन में 500 से ज्‍यादा लोगों की मौत हुई है। जापान की Chiba University के वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस से निपटने की योजना और दूसरे कारणों से पहले सभी क्षेत्रों के भौगोलिक अंतर पर विचार करना जरूरी है।

सभी देशों के टेस्टिंग, रिपोर्टिंग और कंट्रोल करने के तरीकों में काफी अंतर है। इसके अलावा अलग-अलग देशों में हाइपरटेंशन, क्रॉनिक लंग्‍स डिजीज की दर में भी बड़ा अंतर है।


शुरुआत में अपनाए उपायों और अनदेखी से बदली तस्‍वीर

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में महामारी विशेषज्ञ जेफरी शमन का कहना है कि सभी देशों के टेस्टिंग, रिपोर्टिंग और कंट्रोल करने के तरीकों में काफी अंतर है। इसके अलावा अलग-अलग देशों में हाइपरटेंशन, क्रॉनिक लंग्‍स डिजीज की दर में भी बड़ा अंतर है। अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में ऊंची मृत्‍यु दर का बड़ा कारण शुरुआत में वैश्विक महामारी के खतरों को नजरअंदाज करना भी माना जा रहा है।

वहीं, एशियाई देशों ने सार्स और मर्स के अनुभवों के आधार पर कोरोना वायरस फैलना शुरू होने के साथ ही रोकथाम के ठोस कदम उठा लिए थे। इनमें वुहान से आने वाले हवाई यात्रियों की स्‍क्रीनिंग भी शामिल थी। दक्षिण कोरिया ने शुरुआत में ही टेस्टिंग, ट्रेसिंग और आइसोलेट करने की व्‍यापक योजना पर काम करना शुरू कर दिया था। लेकिन, जापाान और भारत में मृत्‍यु दर कम रहने पर वैज्ञानिक आश्‍चर्य में हैं। पाकिस्‍तान और फिलीपींस को लेकर भी वैज्ञानिकों की सोच कुछ ऐसी है।


गर्म और आर्द्र मौसम की भी रही है मृत्‍यु दर में भूमिका

वैज्ञानिकों का मानना है कि कंबोडिया, वियतनाम और सिंगापुर में गर्म व आर्द्र मौसम (Hot and Humid Weather) की कम मृत्‍यु दर में अहम भूमिका हो सकती है। कुछ अध्‍ययनों से पता चला था कि गर्मी और उमस कोरोना वायरस के फैलने की रफ्तार को कम कर सकती हैं। साथ ही इससे वायरस की लोगों को गंभीर तौर पर बीमार करने की क्षमता भी घट सकती है। हालांकि, इसके उलट इक्‍वाडोर (Ecuador) और ब्राजील (Brazil) में कोविड-19 की वजह से काफी मौतें हुईं।

वाशिंगटन पोस्‍ट की रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं का मानना है कि जनसांख्यिकी (Demography) की भी इसमें भूमिका है। अफ्रीका (Africa) की युवा आबादी की रोगप्रतिरोधी क्षमता इटली (Italy) के बुजुर्गों के मुकाबले वायरस से लड़ने में ज्‍यादा प्रभावी रही है। वहीं, दुनिया की सबसे ज्‍यादा बुजुर्ग आबादी वाले जापान (Japan) में कम मृत्‍यु दर के दूसरे कारण हो सकते हैं। जापान में हमेशा से साफ-सफाई पर विशेष ध्‍यान देने के कारण संक्रमण बहुत तेजी से नहीं फैला।


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