News18 : May 22, 2020, 08:06 AM
NDRF: भारत में जब मार्च महीने में कोरोना वायरस महामारी ने दस्तक दी तो राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल/एनडीआरएफ (NDRF) एक नए रूप और नए प्रशिक्षण मॉड्यूल के साथ इस आपदा से निपटने के लिए सामने आया। इस महामारी से लड़ते हुए एनडीआरएफ अभी खुद को मानसून और बाढ़ के मौसम के लिए तैयार ही कर रहा था कि प्रचंड चक्रवात 'अम्फान' (Super Cyclone Amphan) के खतरे का संकेत मिला। इस चुनौती के लिए एनडीआरएफ के पास केवल एक महीने का समय था। 1999 के बाद बंगाल के लिए ये अपना प्रचंड चक्रवात था।सुपर साइक्लोन के दायरे में था 600 किमी का क्षेत्रइसके साथ ही सुपर साइक्लोन ने लगभग 200 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की रफ्तार के साथ दस्तक दी और इसका दायरा लगभग 600 किलोमीटर का क्षेत्र था। इसकी पहुंच 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक थी। इससे पहले कि बुधवार दोपहर यह बंगाल और ओडिशा के पट से टकराता, इसकी रफ्तार 160 किमी प्रति घंटे की हो गई थी। हालांकि अभी भी जान-माल को भारी नुकसान पहुंचाने के लिए ये रफ्तार काफी थी। इस तेज रफ्तार का मतलब था विनाश और सबसे बड़ी चुनौती थी कि इससे कम से कम हानि हो। सरकार और एनडीआरएफ इससे निपटने के लिए कई प्रभावशाली कदम उठा रही थी।कोलकाता के उत्तर पूर्व सुंदरवन की ओर से तूफान ने दस्तक दी और राज्य के लगभग 15 जिलों में जमकर तबाही मचाई। पश्चिम बंगाल में अभी तक लगभग 72 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। जिनमें से 15 लोगों की मौत कोलकाता में हुई है। हालांकि सभी जिलों से अभी तक रिपोर्ट नहीं आई है।तूफान ने मचाई भारी तबाहीप्रचंड चक्रवात 'अम्फान' की रफ्तार से हजारों पेड़ जड़ से उखड़ गए। भारी संख्या में बिजली और टेलीफोन के तार गिर गए। भारी संख्या में घर तबाह हो गए। कई कच्चे मकानों का तो छत ही ढह गया। राज्य की राजधानी कोलकाता की सड़कों पर अभी भी पानी भरा हुआ है और राज्य में बिजली की सप्लाई ठप्प हो गई है।ममता ने कहा- इससे पहले ऐसी आपदा नहीं देखीतूफान के नुकसान पर अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उन्होंने ऐसी आपदा इससे पहले कभी नहीं देखी है। यह अब तक की सभी आपदाओं से बढ़कर थी। उन्होंने कहा कि क्षति और अधिक गंभीर हो सकती थी।कोरोना वायरस महामारी ने इस बार बचाव कार्य को और अधिक कठिन बना दिया था। क्योंकि अगर ज्यादा संख्या में लोगों को राहत शिविरों में रखते तो संक्रमण का खतरा बढ़ जाता।1999 के तूफान में गई थी 10 हजार लोगों की जानशुक्र है कि भारत ने वर्ष 1999 में ओडिशा में तबाही मचाने वाले सुपर साइक्लोन से सबक लेकर इस महा चक्रवात को नजरअंदाज नहीं किया। इस वक्त के प्रचंड चक्रवात ने लगभग 10 हजार लोगों की जान ले ली थी। उस समय हम चक्रवात की गति को भांपने में विफल रहे थे। उस समय राज्य सरकार ये अंदाजा नहीं लगा पाई थी कि इससे महत्वपूर्ण शहर भुवनेश्वर और कटक इससे प्रभावित हो जाएंगे। उस समय राहत शिविर की क्षमता भी केवल 75 हजार थी।हालांकि इस बार हम ज्यादा अलर्ट थे। मौसम विभाग ने जब चक्रवात की चेतावनी जारी कि तो एनडीआरएफ की 41 टीमें (एक टीम में 40 सदस्य) पश्चिम बंगाल और ओडिशा के विभिन्न हिस्से में तैनात हो गईं।IMD ने दी थी खतरे की चेतावनीतूफान आने से पहले आईएमडी ने एक एडवाइजरी जारी करके इसके खतरे को बताया था। ऐसा कहा गया था कि तूफान के मद्देनजर पटीय क्षेत्रों को खाली कराया जाए। इस तूफान से कच्चे और पुराने घरों को नुकसान हो सकता है। आग की वस्तुओं से संभावित खतरा, कच्ची और पक्की सड़कों को बड़ा नुकसान, रेलवे का व्यवधान और ओवरहेड पावर की चेतावनी दी गई थी। ऐसा कहा गया था कि रेलवे की लाइनों और सिग्नलिंग प्रणाली, बिजली और संचार के खंबों को भारी नुकसान हो सकता है।मौसम विभाग की चेतावनी के बाद पश्चिम बंगाल में 21 और ओडिशा में 20 एनडीआरएफ की टीमें पटीय क्षेत्रों से लोगों को निकलने के लिए तैनात की गई हैं। पश्चिम बंगाल में 5 लाख से ज्यादा लोगों को निकलकर राहत शिविरों में ले जाया गया जबकि ओडिशा के पटीय जिलों से 2 लाख से अधिक लोगों को निकाला गया।ओडिशा के लोगों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिएएनडीआरएफ के डीआईजी (ऑपरेशनल) आर राणा ने न्यूज18 के साथ बातचीत में बताया, 'ओडिशा में बार-बार चक्रवात देखने को मिल रहे हैं। पिछले साल भी फनी आया था। इसलिए राज्य को लोगों को सरकार की एडवाइजरी को और अधिक गंभीरता से लेना चाहिए। पश्चिम बंगाल में हमें लोगों को उनके घरों से निकलकर राहत शिविरों में शिफ्ट करने के लिए थोड़ा अतिरिक्त काम करना पड़ा।'हालांकि इस बार एनडीआरएफ के सामने कोरोना और तूफान के तौर पर दोहरी चुनौती थी। कोरोना ने कारण सोशल डिस्टेंशिग के पालन करते हुए लोगों को निकालना काफी कठिन हो गया था। इसके कारण राहत शिविरों की पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सका।NDRF को रात दिन काम करना पड़ाइसके कारण स्कूलों, सामुदायिक केंद्रों और अन्य सरकारी भवनों को सामुदायिक केंद्रों में बदल दिया गया था। सागर द्वीप, सुंदरवन और काकद्वीप के उपकेंद्रों में कुछ गांवों को पूरी तरह से खाली करना पड़ा। इनमें से बहुत सारे क्षेत्र द्वीप या नदी के आसपास हैं, इसलिए नावों के माध्यम से लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए निकालने के लिए दिन-रात काम करना पड़ता था। उसके बाद उन सभी लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया जो तूफान के मद्देनजर खतरनाक जगहों में रह रहे थे।डीआईजी ऑपरेशन ने कहा, 'सामान्य तौर पर 2।5 से 3 वर्ग मीटर प्रति व्यक्ति की गणना हम निकासी के समय लोगों को घर आवंटित करते समय करते हैं। हालांकि इस बार कोरोना वायरस के कारण 6-7 वर्ग मीटर प्रति व्यक्ति की गणना से घर का आवंटन किया गया।'IMD की चेतावनी ने तबाही से बचायाएनडीआरएफ के अधिकारियों ने कहा कि IMD की समयबद्ध और सटीक चेतावनी ने उनका काम आसान कर दिया है। एनडीआरएफ को जमीनी स्तर पर काम करने के लिए समय मिल गया था। जहां भी ग्रामीण स्तर पर लोग अपना घर खाली करने के इच्छुक दिखे उन्हें सामुदायिक केंद्रों में पहुंचाया गया।अब पीपीई किट से लैस एनडीआरएफ के कर्मचारियों ने राज्य में कई तरह की सेवाओं की बहाली के लिए काम करना शुरू कर दिया है। हालांकि अभी कहा नहीं जा सकता है राहत कार्य कितने दिन तक चलेगा। ये महीनों भी ले सकता है। कई जगह सड़क संपर्क टूट गया है और बिजली एवं संचार लाइनें सभी क्षतिग्रस्त हो गई हैं।जवानों द्वारा खतरनाक क्षेत्रों से निकालकर लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाने के कारण जीवन का नुकसान कम से कम हो गया है, लेकिन संपत्ति का नुकसान बहुत बड़ा है। खासकर पश्चिम बंगाल में। एनडीआरएफ का कहना है कि सेवाओं की बहाली में अभी समय लगेगा।