India-China Relation / चीन की दोहरी रणनीति: भारत, रूस, फिलीपींस और ताइवान पर नजर

अमेरिका ने चीन की दोहरी रणनीति पर चेतावनी दी है, जिसमें वह भारत के साथ तनाव कम करने की बात करते हुए क्षेत्रीय दावे मजबूत कर रहा है। अरुणाचल प्रदेश के अलावा, चीन की नजर रूस के साइबेरियाई इलाकों, फिलीपींस के पाग-आसा द्वीप और ताइवान पर भी है, जिससे वैश्विक चिंताएं बढ़ रही हैं।

चीन की बढ़ती वैश्विक महत्वाकांक्षाएं एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर चर्चा का विषय बन गई हैं। हाल ही में अमेरिका के पेंटागन द्वारा जारी 2025 की रिपोर्ट ने चीन की उस दोहरी रणनीति को उजागर किया है, जिसमें वह एक तरफ। भारत जैसे देशों के साथ तनाव कम करने की बात करता है, वहीं दूसरी तरफ चुपचाप अपने क्षेत्रीय दावों को मजबूत करने में लगा है। इस रिपोर्ट में विशेष रूप से भारत के अरुणाचल प्रदेश पर चीन के दावों का जिक्र किया। गया है, जो दोनों देशों के बीच लंबे समय से चला आ रहा एक बड़ा विवाद है।

भारत के अरुणाचल प्रदेश पर चीन का दावा

भारत और चीन के बीच लगभग 3,500 किलोमीटर लंबी सीमा है, और इस सीमा पर अरुणाचल प्रदेश को लेकर विवाद आज भी सबसे बड़ा और संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है। चीन अरुणाचल प्रदेश को 'दक्षिणी तिब्बत' का हिस्सा बताता है और उस पर अपना दावा करता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे भारत का एक अभिन्न अंग मानता है। बीजिंग के लिए अरुणाचल प्रदेश का मुद्दा उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि ताइवान या दक्षिण चीन सागर का और तवांग जैसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों पर चीन का दावा दोनों देशों के बीच अविश्वास और तनाव को और गहरा करता है। चीन लगातार इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और दावे को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, जिससे सीमा पर शांति बनाए रखने के प्रयासों में बाधा आती है।

रूस: दोस्ती के पीछे छुपा पुराना दावा

भारत के अलावा, चीन की नजर रूस के कुछ इलाकों पर भी बताई जाती है,। जो अक्सर पश्चिमी देशों के खिलाफ एक मजबूत साझेदारी के रूप में देखे जाते हैं। हालांकि, जमीनी हकीकत कुछ और ही संकेत देती है। 2023 में चीन द्वारा जारी किए गए नए सरकारी नक्शों में रूस के कुछ शहरों को चीनी नामों से दिखाया गया था, जिससे एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया। इन शहरों में व्लादिवोस्तोक जैसे महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर भी शामिल थे, जो रूस। के सुदूर पूर्व के लिए आर्थिक और रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

सीमा विवाद और ऐतिहासिक दावे

इसके अतिरिक्त, उस्सुरी और अमूर नदियों के संगम पर स्थित एक द्वीप को चीन ने अपने नए नक्शे में पूरी तरह से चीनी इलाका दिखाया, जबकि 2008 की संधि के तहत इस द्वीप को दोनों देशों के बीच बांटा गया था और रूस और चीन के बीच 4,200 किलोमीटर लंबी सीमा रही है, जिस पर 1960 के दशक में दोनों देशों के बीच गोलीबारी तक हो चुकी है। यह इतिहास दर्शाता है कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद कोई नया नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें काफी गहरी हैं। चीन इन इलाकों को लेकर इतिहास का सहारा लेता है, यह दावा करते हुए कि लगभग 150 साल पहले किंग। राजवंश के दौर में ये क्षेत्र चीन का हिस्सा थे, जिन्हें 19वीं सदी में रूसी साम्राज्य को सौंप दिया गया था।

साइबेरिया पर चीन की नजर

रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन की नजर रूस के साइबेरियाई इलाकों पर भी। है, विशेष रूप से व्लादिवोस्तोक और अमूर ओब्लास्ट के एक द्वीप पर। अमेरिकी मैगजीन न्यूज़वीक का दावा है कि चीन रूस की सीमा के पास कृषि। भूमि खरीद रहा है और लंबे समय के लिए लीज पर ले रहा है। जानकारों का मानना है कि यह भविष्य में इन क्षेत्रों पर अपने दावों को मजबूत करने की एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है। चीन की यह रणनीति रूस के साथ उसकी 'दोस्ती' के बावजूद उसके क्षेत्रीय विस्तारवादी इरादों को उजागर करती है।

फिलीपींस: पाग-आसा द्वीप पर टकराव

दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस के साथ चीन का विवाद किसी से छुपा नहीं है और पाग-आसा (थिटू द्वीप) फिलीपींस का एक छोटा लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण द्वीप है, जिस पर चीन लंबे समय से नजर बनाए हुए है। 2016 में, अंतरराष्ट्रीय अदालत ने दक्षिण चीन सागर में चीन के अधिकांश दावों को खारिज कर दिया था, लेकिन चीन ने इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया और इसके बाद, चीन ने कृत्रिम द्वीप बनाए, उन पर सैन्य ढांचे खड़े किए और इस इलाके में अपने जहाजों की मौजूदगी बढ़ा दी, जिससे क्षेत्रीय तनाव में भारी वृद्धि हुई। फिलीपींस लगातार चीन की इन गतिविधियों का विरोध करता रहा है, लेकिन चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों पर अडिग है। ताइवान को लेकर चीन का रुख सबसे सख्त और आक्रामक है। हाल के वर्षों में चीन ने ताइवान के आसपास बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास किए हैं, जिससे क्षेत्र में युद्ध का खतरा बढ़ गया है। जानकारों का मानना है कि चीन किसी भी कीमत पर ताइवान को अपने नियंत्रण में लाना चाहता है, भले ही इसके लिए उसे सैन्य बल का प्रयोग करना पड़े। पेंटागन की रिपोर्ट के अनुसार, पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ताइवान को जबरन चीन में मिलाने के लिए कई विकल्पों पर काम कर रही है, जिनमें समुद्र के रास्ते हमला, मिसाइल स्ट्राइक और ताइवान की नाकाबंदी शामिल हैं।

सैन्य अभ्यास और संभावित हमले

2024 में चीन ने ऐसे कई सैन्य अभ्यास किए, जिनमें ताइवान और आसपास के इलाकों में हमले और अमेरिकी सेनाओं को निशाना बनाने के परिदृश्य शामिल थे। इन हमलों की मारक दूरी 1500 से 2000 समुद्री मील तक हो सकती है, जो यह दर्शाता है कि चीन। की सैन्य क्षमताएं कितनी व्यापक हैं और वह ताइवान पर नियंत्रण के लिए कितनी दूर तक जाने को तैयार है। ताइवान पर चीन का बढ़ता दबाव और सैन्यीकरण वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करता है। चीन की ये क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं न केवल उसके पड़ोसियों के लिए,। बल्कि पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं।