- भारत,
- 09-Aug-2025 09:12 AM IST
रक्षाबंधन, भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का पवित्र पर्व, इस साल 9 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस बार रक्षाबंधन पर 297 साल बाद एक दुर्लभ ग्रहीय संयोग बन रहा है, जो इस त्योहार के महत्व को कई गुना बढ़ा रहा है। इससे पहले ऐसा संयोग वर्ष 1728 में देखने को मिला था। इस खास मौके पर ग्रहों की स्थिति और शुभ मुहूर्त इस पर्व को और भी विशेष बना रहे हैं।
ग्रहों का दुर्लभ संयोग
इस साल रक्षाबंधन के दिन ग्रहों की स्थिति इस प्रकार होगी:
सूर्य और बुध: कर्क राशि में
चंद्रमा: मकर राशि में
मंगल: कन्या राशि में
गुरु और शुक्र: मिथुन राशि में
राहु: कुंभ राशि में
केतु: सिंह राशि में
यह ग्रहीय संयोग 1728 में भी रक्षाबंधन के समय बना था। उस समय भी भद्रा का प्रभाव नहीं था, और इस बार भी भद्रा का प्रभाव नहीं होगा। इसके साथ ही, सुबह 05:47 से दोपहर 02:23 तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा, जो इस दिन को और भी शुभ बनाएगा। इस शुभ मुहूर्त में राखी बांधने से भाइयों के जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली आएगी।
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 2025
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त: 9 अगस्त को सुबह 05:47 से दोपहर 01:24 तक
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:00 बजे से 12:53 तक
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 8 अगस्त को दोपहर 02:12 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 9 अगस्त को दोपहर 01:24 बजे
राखी बांधते समय मंत्र
राखी बांधते समय इस मंत्र का उच्चारण करें:
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।यह मंत्र भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत करता है और भाई की रक्षा के लिए प्रार्थना करता है।
राखी में कितनी गांठें बांधें?
राखी बांधते समय तीन गांठें बांधनी चाहिए, जिनका विशेष महत्व है:
पहली गांठ: भाई की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए।
दूसरी गांठ: भाई-बहन के बीच अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक।
तीसरी गांठ: भाई को धर्म, सत्य और मर्यादा के मार्ग पर चलने और बहन की रक्षा करने की जिम्मेदारी की याद दिलाती है।
राखी बांधने का सही तरीका
राखी बांधते समय निम्नलिखित विधि का पालन करें:
भाई का मुख पूर्व, उत्तर या पूर्वोत्तर दिशा में होना चाहिए।
भाई को एक आसन पर बिठाएं।
भाई के माथे पर तिलक लगाएं और उनकी आरती उतारें।
रक्षामंत्र का उच्चारण करते हुए भाई के दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांधें।
मन ही मन ईश्वर से भाई की लंबी आयु और सुखी जीवन की प्रार्थना करें।
अंत में भाई का मुंह मीठा करें।
पहली राखी किसने बांधी?
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, राखी की परंपरा की शुरुआत से जुड़ी दो प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं:
द्रौपदी और भगवान कृष्ण: जब भगवान कृष्ण की उंगली सुदर्शन चक्र से कट गई थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा उनकी उंगली पर बांधा था। इसके बाद भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन माना और उनकी रक्षा का वचन दिया।
देवी लक्ष्मी और राजा बलि: देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर उन्हें अपना भाई बनाया और भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापस लाने का वचन मांगा।
सावन पूर्णिमा के बाद राखी बांधना
9 अगस्त 2025 को सावन पूर्णिमा दोपहर 01:26 बजे समाप्त हो जाएगी। यदि किसी कारणवश बहन इस समय तक राखी नहीं बांध पाए, तो पूर्णिमा समाप्त होने के बाद भी राखी बांधना अशुभ नहीं माना जाता। उदयातिथि में पूर्णिमा 2 घंटे से अधिक समय तक रहेगी, इसलिए दोपहर के बाद भी राखी बांधना शुभ रहेगा।
राहुकाल में राखी बांधने की स्थिति
यदि राहुकाल में राखी बांधनी पड़े, तो निम्नलिखित उपाय करें:
सबसे पहले देवी दुर्गा की पूजा करें।
राखी को देवी दुर्गा को समर्पित करें।
इसके बाद प्रसाद के रूप में भाई की कलाई पर राखी बांधें। इससे राहुकाल के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
रक्षाबंधन की पौराणिक कथाएं
कथा 1: राजा बलि और माता लक्ष्मी
प्राचीन काल में राजा बलि ने अश्वमेध यज्ञ के दौरान भगवान विष्णु के वामन अवतार से तीन पग भूमि दान में देने का वचन दिया। भगवान विष्णु ने दो पग में आकाश और पाताल नाप लिया और तीसरे पग के लिए राजा बलि ने अपना सिर उनके चरणों में रख दिया। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने राजा बलि को वचन दिया कि वे हमेशा उनके साथ रहेंगे। इससे माता लक्ष्मी चिंतित हो गईं। नारद मुनि के सुझाव पर माता लक्ष्मी ने राजा बलि को अपना भाई बनाकर राखी बांधी और भगवान विष्णु को वापस मांगा। यहीं से रक्षाबंधन की परंपरा शुरू हुई।
कथा 2: द्रौपदी और भगवान कृष्ण
जब भगवान कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया, तब उनकी उंगली सुदर्शन चक्र से कट गई। द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा उनकी उंगली पर बांधा। इसके बाद भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन माना और उनकी रक्षा का वचन दिया। यही कारण है कि उन्होंने चीर हरण के दौरान द्रौपदी की लज्जा बचाई।
