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- 03-Aug-2025 10:00 AM IST
Film On Dementia: बॉलीवुड की फिल्में हमेशा से ही प्यार, रोमांस, और जुदाई जैसे इमोशन्स की कहानियां बयां करती आई हैं। लेकिन कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जो इन भावनाओं को एक अलग नजरिए से पेश करती हैं, जो समाज का आईना बनकर सामने आती हैं। ये कहानियां न केवल प्रेमी-प्रेमिका के रिश्तों को दर्शाती हैं, बल्कि परिवार, दोस्ती, और इंसानियत जैसे रिश्तों को भी गहराई से उजागर करती हैं। खासकर, जब बात अल्जाइमर या डिमेंशिया जैसी बीमारियों की आती है, जो याददाश्त को धीरे-धीरे छीन लेती हैं, तो ये फिल्में रिश्तों की ताकत और इंसान की जिजीविषा को बखूबी दिखाती हैं। हाल ही में रिलीज हुई फिल्म सैयारा ने इस दिशा में एक नया मुकाम हासिल किया है। आइए, ऐसी ही कुछ चुनिंदा फिल्मों पर नजर डालते हैं, जिन्होंने इस बीमारी को संवेदनशीलता के साथ बड़े पर्दे पर उतारा।
सैयारा (2025): प्यार की एक अनोखी दास्तान
मोहित सूरी के डायरेक्शन में बनी सैयारा कृष कपूर और वाणी बत्रा की प्रेम कहानी है, जो शुरू में एक परीकथा-सी लगती है। लेकिन कहानी तब दिलचस्प मोड़ लेती है, जब पता चलता है कि वाणी को अल्जाइमर है। यह बीमारी धीरे-धीरे उसकी यादों को मिटाती जाती है, लेकिन कृष उसका साथ नहीं छोड़ता। वह हर पल अपने प्यार को जिंदा रखने की कोशिश करता है। फिल्म की यह खासियत इसे अन्य लव स्टोरीज से अलग करती है। सोशल मीडिया से लेकर बॉक्स ऑफिस तक, सैयारा ने दर्शकों को भावुक करने के साथ-साथ इस बीमारी के प्रति जागरूकता भी बढ़ाई।
ब्लैक (2005): टीचर और स्टूडेंट का अनमोल रिश्ता
संजय लीला भंसाली की ब्लैक एक ऐसी फिल्म है, जिसने अल्जाइमर को एक अलग तरह के रिश्ते के जरिए दर्शाया। इस फिल्म में मिशेल (रानी मुखर्जी) और उसके टीचर देबराज (अमिताभ बच्चन) की कहानी है। देबराज, जो मिशेल को पढ़ाने और उसे आत्मनिर्भर बनाने में अपनी जिंदगी लगा देता है, बाद में खुद अल्जाइमर का शिकार हो जाता है। कहानी का अंत बेहद भावुक है, जब मिशेल अपने टीचर की देखभाल करती है। यह फिल्म न केवल बीमारी के दर्द को दर्शाती है, बल्कि एक स्टूडेंट और टीचर के रिश्ते को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाती है।
थ्री ऑफ अस (2022): यादों का खोना और प्यार का बंधन
थ्री ऑफ अस शैफाली शाह, जयदीप अहलावत, और स्वानंद किरकिरे जैसे बेहतरीन कलाकारों से सजी एक संवेदनशील फिल्म है। यह शैलजा (शैफाली शाह) की कहानी है, जो डिमेंशिया की शुरुआत का सामना करती है। उसे एहसास होता है कि उसकी यादें और पहचान धीरे-धीरे उससे छिन रही हैं। वह अपने बचपन को फिर से जीना चाहती है, और इस सफर में उसका पति (स्वानंद किरकिरे) उसका साथ देता है। यह फिल्म प्यार के साथ-साथ आत्म-खोज और परिवार के महत्व को भी दर्शाती है।
यू मी और हम (2008): मुश्किलों में प्यार की ताकत
अजय देवगन और काजोल की जोड़ी वाली यू मी और हम एक ऐसी प्रेम कहानी है, जो अल्जाइमर की बीमारी के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में अजय (अजय देवगन) और पिया (काजोल) एक सुखी वैवाहिक जीवन जी रहे होते हैं, लेकिन पिया को अल्जाइमर होने का पता चलता है। वह धीरे-धीरे अपनी यादें खो देती है, यहां तक कि अपने पति और बेटे को भी नहीं पहचान पाती। लेकिन अजय हर कदम पर उसका साथ देता है। यह फिल्म दिखाती है कि सच्चा प्यार मुश्किल हालात में भी अडिग रहता है।
गोल्डफिश (2022): मां-बेटी का अटूट रिश्ता
गोल्डफिश एक ऐसी फिल्म है, जो डिमेंशिया को मां-बेटी के रिश्ते के जरिए दर्शाती है। कल्कि कोचलिन और दीप्ति नवल अभिनीत यह फिल्म अनामिका और उसकी मां सुधा की कहानी है। अनामिका, जो विदेश में रहती है, अपनी मां के डिमेंशिया का पता चलने पर वापस आती है। फिल्म न केवल मां-बेटी के रिश्ते को दिखाती है, बल्कि आसपास के लोगों के साथ उनके बंधन को भी खूबसूरती से उजागर करती है। यह फिल्म रिश्तों की गहराई और बीमारी के प्रभाव को संवेदनशीलता से पेश करती है।
