India-Nepal / नहीं मान रहा नेपाल, भारत के खिलाफ ओली सरकार ने की एक और हरकत

AajTak : Sep 17, 2020, 04:02 PM
Delhi: जब भारत और नेपाल के रिश्ते पटरी पर आते दिख रहे थे तो ओली सरकार ने एक बार फिर नक्शा विवाद छेड़ दिया है। नेपाल की सरकार ने मंगलवार को अपने देश के विवादित नक्शे को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है। नेपाल ने अपने देश के एक और दो रुपयों के सिक्कों पर भी नए नक्शे को अंकित करने का फैसला किया है। जाहिर है कि नेपाल के इस तरह के कदमों से भारत-नेपाल के बीच द्विपक्षीय वार्ता की गुंजाइश कम होती जाएगी।

नेपाल उत्तराखंड के कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा पर अपना दावा पेश करता है। मई महीने में जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख से होकर जाने वाले कैलाश मानसरोवर रोड लिंक का उद्घाटन किया तो नेपाल ने कड़ी आपत्ति जताई। इसके बाद नेपाल ने इन तीनों इलाकों को शामिल करते हुए अपना नया नक्शा भी जारी कर दिया था। नेपाल ने नए नक्शे को मान्यता देने के लिए संविधान संशोधन भी किया।

नेपाल के शिक्षा मंत्रालय ने माध्यमिक शिक्षा की नई किताब में संपूर्ण नेपाल का क्षेत्रफल सार्वजनिक किया है। इसमें भी कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को नेपाल का हिस्सा बताया गया है। किताब में दावा किया गया है कि लिंपियाधुरा, लिपुलेख व कालापानी क्षेत्र में करीब 542 वर्ग किमी क्षेत्रफल पर भारत ने कब्जा कर रखा है और ये नेपाल का ही हिस्सा है।

नेपाल सरकार ने ‘नेपाली भूभाग और संपूर्ण सीमा स्वाध्याय सामग्री’ नामक किताब का विमोचन किया है। इस किताब में नेपाल का कुल क्षेत्रफल 1,47,641।28 वर्ग किलोमीटर बताया गया है। इसमें विवादित इलाकों का क्षेत्रफल भी जोड़ा गया है।

नेपाल सरकार ने अपने राष्ट्रीय बैंक को एक और दो रुपये के सिक्के पर नेपाल का नया नक्शा अंकित करने की स्वीकृति भी दी है। अभी तक सिक्कों और नोटों पर नेपाल का पुराना नक्शा अंकित होता रहा है। नए सिक्के में अंकित होने वाले नक्शे में लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को भी शामिल करने की स्वीकृति केंद्रीय बैंक को दी गई है। नेपाल की इन हरकतों से साफ़ है कि मौजूदा सरकार भारत के साथ संबंधों को सुधारना नहीं चाहती है।

स्कूली बच्चों के लिए लाई गई किताब के एक अंश में लिखा गया है, 1962 में चीन से युद्ध के खत्म होने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने नेपाल के राजा महेंद्र से अपनी आर्मी को कुछ वक्त तक और ठहरने देने का अनुरोध किया था। लेकिन 60 सालों के बाद भी नेपाल की जमीन से अपनी आर्मी हटाने के बजाय भारत सरकार इन इलाकों को अपने नक्शे में शामिल कर रही है जबकि ये जमीन उसे अस्थायी तौर पर दी गई थी।

इसी किताब के 27वें पन्ने पर लिखा हुआ है, भारत के साथ लगे 27 जिलों में से 24 जिलों में सीमा विवाद है। कुछ भू-भाग के लिए स्थानीय लोगों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है लेकिन बाकी अतिक्रमण भारत का सुनियोजित और जानबूझकर उठाया गया कदम है। 

इस किताब को लेकर नेपाल में ही सवाल उठने लगे हैं कि क्या भारत से जारी तनाव के बीच ऐसा कदम उठाना जरूरी था। त्रिभुवन यूनिवर्सिटी में विदेश संबंध एवं कूटनीति विभाग के प्रमुख खड्गा केसी ने नेपाल के प्रमुख अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा, क्या इस तरह की किताब लाने के लिए ये सही वक्त है? इस तरह के कदमों को उठाने से पहले इनके नतीजों पर सरकार को अच्छी तरह से विचार कर लेना चाहिए।

नेपाल और एशियन स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर मृगेन्द्र बहादुर कर्की ने काठमांडू पोस्ट से कहा कि देश का करिकुलम ऐसा होना चाहिए कि उससे एकेडेमिक्स पैदा हों ना कि ऐक्टिविस्ट। ऐसी किताबों से ना तो नई पीढ़ी जागरुक होती है और ना ही दोनों देशों के रिश्तों में आई दरार के बीच वार्ता को प्रोत्साहित करने में मदद मिलती है।

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