Supreme Court / बिहार SIR पर SC ने कहा- हटाए गए 65 लाख लोगों की लिस्ट सावर्जनिक करें

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार की वोटर लिस्ट से 65 लाख नाम हटाए जाने पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा। कोर्ट ने कहा कि हटाए गए लोगों का डेटा सार्वजनिक हो और कारण स्पष्ट हों। आयोग ने आश्वासन दिया कि यह जानकारी 48 घंटे में वेबसाइट पर जिलावार उपलब्ध करा दी जाएगी।

Supreme Court: बिहार में मतदाता सूची संशोधन (Special Intensive Revision - SIR) के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में सुनवाई हुई। इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से 65 लाख वोटरों को हटाए जाने के डेटा को सार्वजनिक करने की मांग की। कोर्ट ने इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर दिया, ताकि नागरिकों के मताधिकार को सुनिश्चित किया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया:

  1. पारदर्शिता की आवश्यकता: कोर्ट ने कहा कि 65 लाख वोटरों को हटाए जाने का डेटा सार्वजनिक होना चाहिए। इसमें हटाए गए व्यक्तियों के नाम, EPIC नंबर, आधार नंबर (यदि दर्ज हो), और हटाने का कारण स्पष्ट रूप से वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाए।

  2. मृतक और जीवित व्यक्तियों का विवाद: कोर्ट ने ड्राफ्ट मतदाता सूची में मृत और जीवित व्यक्तियों को लेकर गंभीर विवाद की ओर ध्यान दिलाया। कोर्ट ने पूछा कि चुनाव आयोग के पास ऐसी क्या व्यवस्था है, जिससे परिवारों को पता चल सके कि उनके सदस्य को मृतक के रूप में चिह्नित किया गया है।

  3. नागरिकों के अधिकार: जस्टिस कांत ने कहा कि नागरिकों के अधिकार, जो संविधान और कानून से जुड़े हैं, स्थानीय राजनीतिक दलों या उनके कार्यकर्ताओं पर निर्भर नहीं होने चाहिए। कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और सुलभ बनाया जाए।

  4. 2003 की मतदाता सूची: कोर्ट ने 2003 के बिहार मतदाता सूची संशोधन में उपयोग किए गए दस्तावेजों का विवरण मांगा, ताकि यह समझा जा सके कि उस समय की प्रक्रिया में क्या मापदंड अपनाए गए थे।

  5. समय-सीमा: जस्टिस बागची ने सुझाव दिया कि हटाए गए वोटरों की सूची को 48 घंटे के भीतर वेबसाइट पर अपलोड किया जाए।

कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि बिहार में 7.89 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से 7.24 करोड़ ने फॉर्म भरे हैं और 65 लाख हटाए गए हैं, जिसमें 22 लाख मृतक शामिल हैं। कोर्ट ने इस आंकड़े को बहुत बड़ा बताते हुए इसकी पारदर्शिता पर सवाल उठाए।

चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया

चुनाव आयोग ने कोर्ट के सवालों का जवाब देते हुए निम्नलिखित बिंदु रखे:

  1. डेटा सार्वजनिक करने की सहमति: आयोग ने कहा कि वह कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए हटाए गए वोटरों की सूची को विधानसभा क्षेत्र और जिला स्तर पर वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा। इसमें नाम, EPIC नंबर, और हटाने का कारण शामिल होगा।

  2. मृतकों की पहचान: आयोग ने बताया कि मृतकों की पहचान के लिए अधिकारी स्वयंसेवकों के साथ घर-घर जाकर सत्यापन करेंगे। इसके अलावा, बूथों की संख्या बढ़ाई गई है और बीएलओ (Booth Level Officers) की जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध है।

  3. ऑनलाइन सत्यापन: आयोग ने कहा कि छूटे हुए व्यक्तियों की जानकारी वेबसाइट पर उपलब्ध है। कोई भी व्यक्ति नाम और EPIC नंबर दर्ज करके यह जांच सकता है कि उसने गणना फॉर्म भरा है या नहीं।

  4. कानूनी दायरा: आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि अनुच्छेद 324, धारा 15, और धारा 21(2) व 21(3) के तहत आयोग को व्यापक शक्तियाँ प्राप्त हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि SIR प्रक्रिया नियमों और विनियमों के अनुसार है, और 2003 को कटऑफ तारीख मानना समावेशी है।

याचिककर्ताओं का पक्ष

याचिककर्ताओं के वकील निजाम पाशा ने कोर्ट से कहा कि यदि 1 जनवरी 2003 की कटऑफ तारीख को हटा दिया गया, तो पूरी प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। उन्होंने इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग की।

विपक्ष का हंगामा

विपक्ष ने आरोप लगाया है कि यह संशोधन प्रक्रिया लाखों मतदाताओं को उनके मताधिकार से वंचित कर सकती है। ड्राफ्ट मतदाता सूची 1 अगस्त 2025 को प्रकाशित हुई थी, और अंतिम सूची 30 सितंबर 2025 को जारी होने वाली है। इस मुद्दे पर विपक्ष लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहा है।