Supreme Court / जेल से चुनाव लड़ने का अधिकार पर वोटिंग का नहीं: विचाराधीन कैदियों के मताधिकार पर SC करेगा विचार

सर्वोच्च न्यायालय विचाराधीन कैदियों के मताधिकार पर फिर विचार करेगा। वर्तमान में वे चुनाव लड़ सकते हैं लेकिन वोट नहीं डाल सकते, जिसे जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 62(5) प्रतिबंधित करती है। याचिका में जेलों में मतदान केंद्र या डाक मतपत्र की सुविधा मांगी गई है, क्योंकि 73.5% कैदी विचाराधीन हैं।

भारत में यह एक विडंबना है कि जेल में बंद विचाराधीन कैदी चुनाव तो लड़ सकते हैं, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय एक बार फिर इस जटिल प्रश्न पर विचार करने जा रहा है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीआर गवई ने विचाराधीन कैदियों को मताधिकार की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है। यह मुद्दा जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 62(5) से संबंधित है, जिसने कैदियों के मताधिकार पर प्रतिबंध लगा रखा है।

पूर्व निर्णय और वर्तमान परिप्रेक्ष्य

करीब ढाई दशक पहले, 1997 में अनुकूल चंद्र प्रधान बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसी धारा को बरकरार रखा था। उस समय मतदान के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि अनुच्छेद 326 के तहत एक संवैधानिक अधिकार माना गया था। हालांकि, 2023 में अनूप बरनवाल बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मतदान के अधिकार को संविधान के भाग-3 के तहत मौलिक अधिकार भी माना। इस बदलाव ने विचाराधीन कैदियों के मताधिकार के मुद्दे को एक नया आयाम दिया है और

याचिकाकर्ता की दलीलें और आंकड़े

याचिकाकर्ता सुनीता शर्मा ने दलील दी है कि देश की जेलों में बंद पांच लाख से अधिक कैदियों में से 73. 5% विचाराधीन हैं, यानी लगभग 3. 9 लाख लोग जिन पर अभी मुकदमा चल रहा है और उन्हें दोषी नहीं ठहराया गया है। याचिका में तर्क दिया गया है कि जब तक कोई व्यक्ति दोषी सिद्ध नहीं हो जाता, उसे मतदान जैसे संवैधानिक अधिकार से वंचित करना अनुचित है। कई मामलों में 80-90% विचाराधीन कैदी अंततः बरी हो जाते हैं,। फिर भी वे दशकों तक इस अधिकार से वंचित रहते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य और मांगे

याचिका में बताया गया है कि पाकिस्तान सहित कई अन्य देशों में विचाराधीन कैदियों को वोट देने का अधिकार प्राप्त है। याचिका में चुनाव आयोग से दिशानिर्देश तैयार करने, जेलों में मतदान केंद्र स्थापित करने या डाक मतपत्र की सुविधा प्रदान करने की मांग की गई है। हालांकि, यह भी स्पष्ट किया गया है कि दोषी ठहराए गए कैदियों या भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार लोगों को यह अधिकार नहीं मिलना चाहिए। यह मामला अब सरकार के जवाब और सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले पर निर्भर करेगा, जो लाखों विचाराधीन कैदियों के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होगा।