Pakistan News / पाक यूं ही कटोरा लेकर भीख नहीं मांगता, देश के हर शख्स पर है 3 लाख का कर्ज

पाकिस्तान पर 76 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपए का रिकॉर्ड कर्ज चढ़ चुका है। अगर यह कर्ज हर नागरिक में बांटा जाए तो हरेक पर करीब 3 लाख रुपए का बोझ पड़ेगा। इकोनॉमिक ग्रोथ 3% से भी कम है, फिर भी पाकिस्तान हथियारों पर खर्च बढ़ा रहा है।

Pakistan News: पाकिस्तान इस वक्त ऐसे चौराहे पर खड़ा है, जहां से आगे केवल आर्थिक अस्थिरता, बढ़ती गरीबी और वैश्विक अविश्वास की राह दिखाई देती है। "जिस देश का हरेक शख्स कर्ज की रोटी खाता हो, उसकी दुनिया में क्या साख होगी?"—ये सवाल अब महज़ कटाक्ष नहीं, बल्कि पाकिस्तान की सच्ची तस्वीर बन चुका है। शहबाज शरीफ की अगुवाई वाली सरकार ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को इतना बोझिल बना दिया है कि अब वहां का हर नागरिक औसतन तीन लाख रुपए के कर्ज में डूबा हुआ है।

रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा पाकिस्तान का कर्ज

पाकिस्तान सरकार द्वारा हाल ही में पेश किए गए इकोनॉमिक सर्वे 2025 में यह खुलासा हुआ है कि मार्च 2025 के अंत तक पाकिस्तान पर कुल कर्ज 76,007 बिलियन पाकिस्तानी रुपए (करीब 76 ट्रिलियन PKR) हो गया है। इसे डॉलर में मापें तो यह कर्ज 269.34 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है, जो उसकी कुल जीडीपी (390 अरब डॉलर) का लगभग 70 प्रतिशत है। चार साल पहले यही कर्ज लगभग आधा था, और एक दशक पहले तो सिर्फ 17,380 बिलियन PKR के आसपास था। मतलब, पाकिस्तान का कर्ज 10 साल में 5 गुना और सिर्फ 4 साल में दोगुना हो चुका है।

हर नागरिक पर है 3 लाख रुपए से ज़्यादा का कर्ज

पाकिस्तान की कुल आबादी को इस कर्ज में बराबर बांट दिया जाए, तो हरेक पाकिस्तानी नागरिक पर लगभग 3 लाख रुपए का बोझ है। ऐसे देश में जहां बेरोजगारी, महंगाई और खाद्य संकट चरम पर हो, वहां इतनी बड़ी कर्ज़दारी सामाजिक अस्थिरता को और गहरा करती है।

आंतरिक-बाहरी स्रोतों से बढ़ा कर्ज

पाकिस्तान के इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार, कुल कर्ज में 51,500 अरब PKR का कर्ज लोकल बैंकों से लिया गया है, जबकि 24,500 अरब PKR का कर्ज विदेशी स्रोतों से लिया गया है। इनमें आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक, इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक और मित्र देशों से लिए गए ऋण शामिल हैं। हाल ही में पाकिस्तान को IMF से 1.03 बिलियन डॉलर की सहायता मिली है, लेकिन यह राहत एक अस्थायी समाधान मात्र है।

फिस्कल स्टेबिलिटी पर खतरा

रिपोर्ट चेतावनी देती है कि अत्यधिक और अव्यवस्थित कर्ज न केवल ब्याज के बोझ को बढ़ाता है, बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता को भी खतरे में डालता है। यही वजह है कि पाकिस्तान जैसे देश के लिए यह कर्ज अब सिर्फ एक आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न बन चुका है।

कर्ज में डूबकर भी रक्षा बजट में बढ़ोतरी

आश्चर्य की बात यह है कि इतनी दयनीय आर्थिक स्थिति के बावजूद पाकिस्तान अपनी रक्षा तैयारियों पर और पैसा खर्च करने की योजना बना रहा है। ऑपरेशन सिंदूर में भारत के हाथों मिली करारी हार के बाद पाकिस्तान चीन से हथियार खरीद रहा है और सैन्य ढांचे को मज़बूत करने में जुटा है। यह कदम बताता है कि पाकिस्तान ने अपनी प्राथमिकताओं में जनता की भलाई के बजाय सैन्य ताकत और आतंकवाद के समर्थन को तरजीह दी है।

वैश्विक मंच पर साख पर सवाल

जब कोई देश बार-बार कर्ज के लिए विश्व समुदाय के दरवाज़े खटखटाता है, तो उसकी साख स्वतः ही गिरती है। पाकिस्तान को कई बार "भीख का कटोरा" उठाए देश की संज्ञा दी गई है, खासकर इस्लामी देशों के बीच। ऐसे हालात में निवेशकों और वैश्विक संस्थानों का भरोसा डगमगाना स्वाभाविक है।