भारत ने हाल ही में अपनी विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रदर्शन किया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर एक ही समय पर मिडिल ईस्ट के विभिन्न देशों का दौरा कर रहे हैं और यह एक साथ की गई यात्राएं भारत की बढ़ती वैश्विक महत्वाकांक्षाओं और जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में अपनी स्थिति को मजबूत करने की इच्छा को दर्शाती हैं। जहां प्रधानमंत्री मोदी मुस्लिम बहुल देशों जॉर्डन और ओमान की यात्रा पर हैं, वहीं विदेश मंत्री जयशंकर यहूदी राष्ट्र इजराइल में हैं और यह दोहरी कूटनीति दुनिया को एक स्पष्ट संदेश देती है कि भारत क्षेत्रीय मतभेदों से ऊपर उठकर सभी महत्वपूर्ण भागीदारों के साथ संबंध मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रधानमंत्री मोदी की मिडिल ईस्ट यात्रा: रणनीतिक विस्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिडिल ईस्ट यात्रा की शुरुआत जॉर्डन से हुई, जिसके बाद उन्होंने अफ्रीकी मुल्क इथियोपिया का दौरा किया और फिर मुस्लिम देश ओमान पहुंचे और इस यात्रा का प्राथमिक उद्देश्य मिडिल ईस्ट में भारत के रणनीतिक रिश्तों को मजबूत करना है। यह पहल ऐसे समय में की गई है जब वैश्विक भू-राजनीतिक माहौल व्यापारिक खींचतान, ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों, क्षेत्रीय सुरक्षा संकटों और अन्य रणनीतिक व आर्थिक दिक्कतों से घिरा हुआ है। भारत इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को केवल पारंपरिक सहयोगियों जैसे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात तक सीमित नहीं रखना चाहता, बल्कि अन्य महत्वपूर्ण शक्तियों के साथ भी अपने संबंधों को गहरा करके अपने राष्ट्रीय हितों को साधना चाहता है।
जॉर्डन के साथ मजबूत होते संबंध
जॉर्डन पश्चिम एशिया में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक केंद्र के रूप में उभरा है। इसकी सीमाएं इराक, सीरिया, इजराइल और फिलिस्तीन जैसे देशों से लगती हैं, जो इसे पूरे क्षेत्र के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है। जॉर्डन के साथ संबंधों का विस्तार भारत को अन्य अरब देशों में भी अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद करेगा, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने जॉर्डन के क्राउन प्रिंस के साथ मुलाकात की, जो दोनों देशों के बीच बढ़ते विश्वास और सहयोग का प्रतीक है। यह मुलाकात क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास पर केंद्रित रही,। जिसमें भारत ने जॉर्डन की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया।
ओमान के साथ आर्थिक और रक्षा सहयोग
ओमान के साथ भारत के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं, और प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा इन संबंधों को एक नई ऊंचाई पर ले जाने का लक्ष्य रखती है। इस यात्रा के दौरान भारत और ओमान के बीच संभावित मुक्त व्यापार समझौते (CEPA) पर मुहर लगने की उम्मीद है। यदि यह समझौता होता है, तो यह दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश को अभूतपूर्व बढ़ावा देगा, जिससे आर्थिक संबंध और गहरे होंगे। ओमान पहले से ही खाड़ी क्षेत्र में भारत का एक करीबी रक्षा साझेदार है, और यह यात्रा रक्षा सहयोग को और मजबूत करने के अवसर प्रदान करेगी। कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा मिडिल ईस्ट में भारत की कूटनीति, व्यापार और। रणनीतिक हितों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
विदेश मंत्री जयशंकर का इजराइल दौरा: जटिल परिस्थितियों में सक्रिय कूटनीति
विदेश मंत्री एस जयशंकर की दो दिवसीय इजराइल यात्रा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने इजराइली राष्ट्रपति, विदेश मंत्री गिदोन सार और उद्योग मंत्री नीर बरकत से मुलाकात की। यह बातचीत इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई टेलीफोन पर हुई बातचीत के बाद हुई है, जिसमें दोनों देशों ने मजबूत द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया था। इजराइल-हमास संघर्ष और मिडिल ईस्ट के मौजूदा हालात को देखते हुए जयशंकर की यात्रा का समय और भी महत्वपूर्ण हो जाता है और यह यात्रा नई दिल्ली की सक्रिय कूटनीति का स्पष्ट संकेत देती है, जहां भारत एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत कर रहा है, जो मतभेदों को पाटने, आर्थिक लाभ हासिल करने और अपने सुरक्षा हितों की रक्षा करने का काम कर रहा है।
आतंकवाद पर साझा रुख और वैश्विक संदेश
इजराइल पहुंचते ही विदेश मंत्री जयशंकर ने आतंकवाद पर दुनिया को एक कड़ा संदेश दिया। उन्होंने सिडनी के बॉन्डी बीच पर हनुक्का सेलिब्रेशन के दौरान हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा की और स्पष्ट किया कि भारत और इजराइल दोनों की आतंकवाद के खिलाफ 'ज़ीरो टॉलरेंस' की नीति है। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत को समर्थन देने के लिए इजराइल का धन्यवाद भी किया और यह बयान ऐसे समय में आया है जब रविवार को यहूदी त्योहार हनुक्का बाय द सी सेलिब्रेशन के दौरान भीड़ पर दो बंदूकधारियों ने हमला कर दिया था, जिसमें कम से कम 15 लोगों की मौत हो गई थी। यह साझा रुख वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता का प्रतीक है।
रक्षा और सांस्कृतिक सहयोग का विस्तार
रक्षा क्षेत्र में, भारत और इजराइल ने पिछले महीने रक्षा, औद्योगिक और तकनीकी सहयोग बढ़ाने के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और जयशंकर की यात्रा इस सहयोग को और गति प्रदान करेगी। इसके अतिरिक्त, भारत और इजराइल ने सांस्कृतिक और अकादमिक क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाया है, जिसमें लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करने के मकसद से फिल्म फेस्टिवल, डांस परफॉर्मेंस और फिल्म निर्माताओं का आदान-प्रदान शामिल है। इन मुलाकातों से नए मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) सामने आ सकते हैं, जिससे लोगों के बीच बेहतर संपर्क और संयुक्त परियोजनाओं का रास्ता साफ होगा। जैसे-जैसे भारत वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रहा है, इस तरह की उच्च-स्तरीय बातचीत बहुध्रुवीय जुड़ाव के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दिखाती है। यह दर्शाता है कि भारत केवल एक क्षेत्र या विचारधारा तक सीमित नहीं है, बल्कि एक व्यापक और संतुलित विदेश नीति अपना रहा है।
कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर की मिडिल ईस्ट की एक साथ यात्राएं भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका और उसकी सक्रिय कूटनीति का प्रमाण हैं। यह दर्शाता है कि भारत न केवल अपने पारंपरिक सहयोगियों के साथ संबंध मजबूत कर रहा है, बल्कि नए रणनीतिक साझेदारों की तलाश भी कर रहा है और जटिल क्षेत्रीय संघर्षों के बीच भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। यह भारत की क्षमता को उजागर करता है कि वह विभिन्न भू-राजनीतिक ध्रुवों के साथ प्रभावी ढंग से जुड़ सकता है और वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार और प्रभावशाली खिलाड़ी के रूप में अपनी पहचान बना सकता है और यह दोहरी कूटनीति भारत के लिए आर्थिक, रणनीतिक और सुरक्षा हितों को साधने का एक प्रभावी तरीका है, जो उसे एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में एक मजबूत स्थिति प्रदान करता है।