लोन मोरेटोरियम केस / SC ने कहा- आखिरी बार टाल रहे हैं मामला, अब सभी ठोस योजना के साथ आएं

NDTV : Sep 10, 2020, 01:59 PM
नई दिल्ली: SC on Loan Moratorium: लोन मोरेटोरियम मामले (Loan Moratorium Case) की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि मामले को बार-बार टाला जा रहा है। अब इस मामले को सिर्फ एक बार टाला जा रहा है वो भी फाइनल सुनवाई के लिए। इस दौरान सब अपना जवाब दाखिल करें और मामले में ठोस योजना के साथ अदालत आएं। साथ ही कोर्ट ने कहा कि तब तक 31 अगस्त तक NPA ना हुए लोन डिफॉल्टरों को NPA घोषित ना करने अंतरिम आदेश जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते दिए। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा, उच्चतम स्तर पर विचार हो रहा है। राहत के लिए बैंकों और अन्य हितधारकों के परामर्श में दो या तीन दौर की बैठक हो चुकी है और  चिंताओं की जांच की जा रही है। केंद्र ने दो हफ्ते का समय मांगा था इस पर कोर्ट ने पूछा था कि दो हफ्ते में क्या होने वाला है?  आपको विभिन्न क्षेत्रों के लिए कुछ ठोस करना होगा। वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एम आर शाह की तीन जजों की बेंच सुनवाई की। 

पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया था कि इस फैसले से लोन लेने वालों पर दोहरी मार पड़ रही है क्योंकि उनसे चक्रवृद्धि ब्याज यानी कंपाउंडिंग इंट्रस्ट (Compounding Interest) लिया जा रहा है।  याचिकाकर्ता ने कहा था कि यह योजना दोगुनी मार है क्योंकि वे हमें चक्रवृद्धि ब्याज चार्ज किया जा रहा है। ब्याज पर ब्याज वसूलने के लिए बैंक इसे डिफॉल्ट मान रहे हैं। यह हमारी ओर से डिफ़ॉल्ट नहीं है। सभी सेक्टर बैठ गए हैं लेकिन RBI चाहता है कि बैंक कोविड-19 के दौरान मुनाफा कमाए और यह अनसुना है।'

साथ ही याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया, 'RBI देश से लूटे गए करोड़ों रुपयों से नहीं जागा। RBI वैधानिक नियामक है, बैंकों का एजेंट नहीं। ब्याज पर ब्याज बिलकुल गलत है और इसे चार्ज नहीं किया जा सकता। आईबीसी को उद्योग को राहत देने के लिए निलंबित किया गया लेकिन उधारकर्ताओं के बारे में क्या?'

वहीं रियल एस्टेट डेवलपर्स के लिए CREDI ने कहा कि 'ब्याज वसूलने से NPA (Non-Performing Assests) में वृद्धि हो सकती है। यदि ब्याज माफ नहीं किया जा सकता है, तो कम से कम इसे उस स्तर तक कम करें जिस पर बैंक जमाकर्ताओं का भुगतान करते हैं। कम से कम 6 महीने तक की मोहलत दी जाए।'

दरअसल, केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया था कि लोन मोरेटोरियम दो साल के लिए बढ़ सकता है। लेकिन यह कुछ ही सेक्टरों को दिया जाएगा। मेहता ने कोर्ट में उन सेक्टरों की सूची सौंपी है, जिन्हें आगे राहत दी जा सकती है। पिछली सुनवाई में लॉकडाउन पीरियड में लोन मोरेटोरियम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए 7 दिन मेंहलफनामा देकर ब्याज माफी की गुंजाइश पर स्थिति साफ करने को कहा था।

कोर्ट ने कहा था कि 'लोगों की परेशानियों की चिंता छोड़कर आप सिर्फ बिजनेस के बारे में नहीं सोच सकते। सरकार आरबीआई के फैसले की आड़ ले रही है, जबकि उसके पास खुद फैसला लेने का अधिकार है। डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत सरकार बैंकों को ब्याज पर ब्याज वसूलने से रोक सकती है।' अदालत ने कमेंट किया था कि बैंक हजारों करोड़ रुपए एनपीए में डाल देते हैं, लेकिन कुछ महीने के लिए टाली गई ईएमआई पर ब्याज वसूलना चाहते हैं।

बता दें कि कोरोना और लॉकडाउन की वजह से आरबीआई ने मार्च में लोगों को मोरेटोरियम यानी लोन की ईएमआई 3 महीने के लिए टालने की सुविधा दी थी। बाद में इसे 3 महीने और बढ़ाकर 31 अगस्त तक के लिए कर दिया गया। आरबीआई ने कहा था कि लोन की किश्त 6 महीने नहीं चुकाएंगे, तो इसे डिफॉल्ट नहीं माना जाएगा। लेकिन, मोरेटोरियम के बाद बकाया पेमेंट पर पूरा ब्याज देना पड़ेगा।

ब्याज की शर्त को कुछ ग्राहकों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनकी दलील है कि मोरेटोरियम में इंटरेस्ट पर छूट मिलनी चाहिए, क्योंकि ब्याज पर ब्याज वसूलना गलत है। एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुनवाई में यह मांग भी रखी कि जब तक ब्याज माफी की अर्जी पर फैसला नहीं होता, तब तक मोरेटोरियम पीरियड बढ़ा देना चाहिए।

SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER