इंडिया / यात्रियों के सेल्फ़ी और वीडियो लेने से परेशान हैं तेजस एक्सप्रेस की रेल होस्टेस

BBC : Oct 16, 2019, 08:14 PM
तेजस एक्सप्रेस | नई नवेली ट्रेन के दरवाज़ों पर आत्मविश्वास से लबरेज़ युवतियां यात्रियों के स्वागत के लिए हाथ जोड़े खड़ी हैं.

उतावले यात्री सेल्फ़ी और तस्वीरें खींचने के लिए उन्हें घेर लेते हैं. बिना उनकी अनुमति के मोबाइल कैमरे क्लिक करते हैं और वो अपने अंदर सिमटती हैं, सिकुड़ती हैं.

इस अनचाहे आकर्षण से असहज होने के बावजूद वो अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखती हैं.

ये नज़ारा नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म 9 का है जहां तेजस एक्सप्रेस लखनऊ रवाना होने के लिए तैयार खड़ी है.

काले-पीले रंग की बदन से चिपकती चुस्त पोशाक पहने खड़ी ये लड़कियां भारत की इस पहली प्राइवेट ट्रेन की होस्टेस हैं.

हाल ही में शुरू हुई तेजस एक्सप्रेस का संचालन भारतीय रेल की ही निजी कंपनी आईआरसीटीसी के हाथ में हैं.

हवाई सेवा की तरह

इसे रेल सेवा को भारत की पहली निजी या कार्पोरेट सेवा भी कहा जा रहा है. आईआरसीटीसी ने तेजस को रेलवे से लीज़ पर लिया है और इसका कमर्शियल रन किया जा रहा है. आईआरसीटीसी अधिकारी इसे प्राइवेट के बजाए कॉर्पोरेट ट्रेन कहते हैं.

ये तेज़ रफ़्तार ट्रेन आधुनिक सुविधाओं से लैस है और देश की राजधानी से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बीच 511 किलोमीटर का सफ़र साढ़े छह घंटे में पूरा कर लेती है.

यूं तो इस ट्रेन में कई ख़ास बातें हैं लेकिन इसकी सबसे ख़ास बात ये ट्रेन होस्टेस ही हैं.

भारत में ये पहली बार है जब किसी रेल सेवा में हवाई सेवा की तरह होस्टेस तैनात की गई हैं. इसलिए यात्रियों में उनके प्रति जिज्ञासा और आकर्षण नज़र आता है.

तेजस एक्सप्रेस में तैनात इन होस्टेस का काम यात्रियों के खाने-पीने और अन्य ज़रूरतों के अलावा सुविधा और सुरक्षा का ध्यान रखना है.

उत्साहित लड़कियां

लखनऊ की रहने वाली श्वेता सिंह अपनी इस नई नौकरी को लेकर बेहद उत्साहित हैं.

चेहरे पर मुस्कान के साथ वो कहती हैं, "मुझे देश की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस में काम करने पर गर्व है. हम भारत की पहली महिलाएं हैं जो ट्रेन में होस्टेस हैं. मैं अपना सपना जी रही हूं."

वो कहती हैं, "हम हर दिन नए यात्रियों से मिलते हैं, बात करते हैं, ये अच्छा लगता है. हर तरह के लोग मिलते हैं, उन्हें संतोषजनक सेवा देना ही सबसे बड़ा चेलेंज होता है."

तेजस एक्सप्रेस के दस डिब्बों में श्वेता जैसी 20 कोच क्रू तैनात हैं. इन सभी ने लखनऊ के एक इंस्टीट्यूट से एविएशन हॉस्पीटेलिटी और कस्टमर सर्विस में डिप्लोमा किया है.

ये सभी आईआरसीटीसी की कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि एक अन्य प्राइवेट कंपनी के ज़रिए इनकी सेवाएं ली जा रही हैं.

तीन दौर की चयन प्रक्रिया

श्वेता बताती हैं, "तीन दौर की चयन प्रक्रिया के बाद हमें ये काम मिला है. मेरे परिजनों को गर्व है कि मैं तेजस एक्सप्रेस में काम कर रही हूं."

मूलरूप से उन्नाव की रहने वाली वैशाली जायसवाल सर्विस ट्रॉली सजा रही हैं.

उन्होंने भी श्वेता की ही तरह एयर होस्टेस बनने की तैयारी की थी. वो अपने काम को बिलकुल एयर होस्टेस के काम जैसा ही मानती हैं.

वैशाली कहती हैं, "जो काम विमान में केबिन क्रू करते हैं वही काम हम करते हैं. फ़र्क यही है कि एयर होस्टेस हवा में काम करती हैं, हम पटरी पर हैं."

वो कहती हैं, "हम एक चलती ट्रेन में हैं और यहां कई बार परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं. हमें उनसे निबटने का प्रशिक्षण दिया गया है."

आगे के लिए सबक

तेज़ रफ़्तार से चलती और हिलती डुलती ट्रेन में अंशिका गुप्ता पूरे विश्वास से सर्विस ट्रॉली को थामे हुए हैं. अभी तक भारतीय ट्रेनों में ये काम मर्द ही करते रहे थे.

अंशिका कहती हैं, "हम अभी सीख ही रहे हैं. ये पहली बार है जब भारत में हम जैसी लड़कियां ट्रेन में सेवाएं दे रही हैं. हमारे सीखे सबक आगे काम आएंगे."

इस ट्रेन की अधिकतर क्रू मेंबर 20 साल की उम्र के आसपास की हैं और मध्यमवर्गीय परिवारों से हैं.

रेलवे में निजीकरण के इस प्रयोग ने उनके लिए नौकरी के अवसर पैदा किए हैं.

अंशिका कहती हैं, "मेरी मां हमेशा कहती थीं कि मैं कुछ ना कुछ कर लूंगी, वो अब मुझे यहां देखकर बहुत ख़ुश हैं."

महिला सशक्तीकरण

सीने पर महिला सशक्तीकरण का बिल्ला लगाए ये लड़कियां पारंपरिक तौर पर पिछड़ी मानी जाने वाली आधी आबादी के लिए नई मिसाल भी पेश कर रही हैं.

कोच क्रू की ज़िम्मेदारी संभाल रहीं संध्या सिंह यादव लखनऊ से हैं जहां उनके पिता ऑटो चलाते हैं. संध्या का यहां तक पहुंचने का सफ़र बहुत आसान नहीं रहा.

वो कहती हैं, "मेरे पिता ने तो पूरा सहयोग किया और जो मैं चाहती थी वो करने दिया लेकिन लोगों ने बहुत ताने मारे."

"जब मैंने होस्टेस बनने की बात कही तो बार-बार मेरे पापा से कहा गया कि ये लड़कियों के करने का काम नहीं है. उन्हें सलाह दी गई कि बेटी को किसी सुरक्षित सरकारी नौकरी की तैयारी करवाओ."

रिश्तेदारों ने बहुत ताने मारे...

सुंबुल फ़ातिमा की कहानी भी ऐसी ही है. उनके पिता सरकारी नौकरी से रिटायर हैं. होस्टेस बनने के लिए उनके घरवाले तो राज़ी हो गए लेकिन रिश्तेदारों ने बहुत ताने मारे.

सुंबुल कहती हैं, "अब लड़कियां किसी से पीछे नहीं हैं. वो ज़िम्मेदारी संभाल सकती हैं. मैंने किसी के तानों की परवाह नहीं की, मैं जानती हूं मैं जो काम कर रही हूं वो सही है."

शुभांगी श्रीवास्तव तेजस में तैनात कोच क्रू की मैनेजर हैं. उनके साथ दो कैप्टन और एक सहायक मैनेजर भी हैं.

ट्रेन की व्यवस्था और पूरी टीम को संभालने की ज़िम्मेदारी उनकी ही है.

शुभांगी बताती हैं कि अभी तेजस में मर्द स्टाफ़ भी हैं लेकिन आगे चलकर इस ट्रेन को पूरी तरह महिलाओं के हाथ में सौंपे जाने की योजना है.

महिलाओं के लिए सुलभ

शुभांगी बताती हैं कि उनकी टीम का ज़ोर इस बात पर भी है कि इस ट्रेन को महिलाओं के लिए सुलभ बनाया जाए.

वो कहती हैं, "ट्रेन में महिला क्रू मेंबर्स का होना महिला यात्रियों में भरोसा पैदा करता है. जो महिलाएं अकेले यात्रा करती हैं वो हमारी उपस्थिति में अधिक सुरक्षित महसूस करती हैं."

इस ट्रेन में सैनिटरी नैपकिन और महिलाओं की ज़रूरत की अन्य चीज़ों की भी व्यवस्था की गई है. क्रू को गर्भवती महिलाओं का विशेष ध्यान रखने के निर्देश दिए गए हैं.

शुभांगी कहती हैं, "कई बार महिलाओं को अचानक पीरियड्स हो जाते हैं, उनके पास सैनिटरी पैड नहीं होते. हमारे पास ये उपलब्ध रहते हैं."

"ऐसी स्थिति में महिलाएं होस्टेस के साथ आराम से बात कर सकती हैं."

वो कहती हैं, 'छोटे बच्चों के साथ यात्रा कर रही महिलाओं का भी हम ख़ास ख्याल रखने की कोशिश करते हैं. हम बच्चों को गोद में भी ले लेते हैं.'

पोशाक पर विवाद

चार अक्तूबर को जब इस रेल सेवा का उद्घाटन किया गया तो ये मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा में रही.

बदन से चिपकता कॉस्ट्यूम पहने यात्रियों पर फूल बरसाती ट्रेन होस्टेस की तस्वीरें जब प्रकाशित हुईं तो सोशल मीडिया पर कई लोगों ने उनकी पोशाक पर सवाल उठाए.

कई लोगों ने रेल मंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय को टैग करके ट्वीट किए और कहा कि होस्टेस को साड़ी पहनाई जाए.

सवाल उठाने वालों का तर्क था कि भारतीय रेल में कार्यरत इन होस्टेस को पश्चिमी स्कर्ट पहनने के बजाए भारतीय संस्कृति की प्रतीक साड़ी पहनी चाहिए.

शुभांगी कहती हैं कि ये तर्क सांस्कृतिक या पारंपरिक रूप से तो सही लग सकता है लेकिन व्यावहारिक रूप से नहीं.

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