देश / IT कंपनी में काम करने वाले ये शख्स हफ्ते में 2 दिन उठाते हैं कोरोना से मरने वालों के शव

News18 : Jul 25, 2020, 08:13 AM
बेंगलुरु।  कोरोना वायरस (Coronavirus) से मौत के बाद शुरू होती है दुख और दर्द की असली कहानी। इस बीमारी को लेकर समाज में डर का माहौल है, लोग कोविड-19 से मरने वालों के शवों (Dead Body) को छूने से परहेज कर रहे हैं। अपने परिवार के लोग भी शवों को हाथ लगाने से डरते हैं। वो इस बात से डरते हैं कि कहीं उन्हें भी कोरोना न हो जाए। लिहाजा कई बार अस्पताल प्रशासन को खुद शवों को दफनाने का इंतज़ाम करना पड़ता है। ऐसे मौके पर लाशों को सम्मान के साथ श्मशान घाट तक पहुंचाने का काम करते हैं बेंगलुरु के आईटी कंपनी में काम करने वाले मोहम्मद अजमतुल्ला।


 'दर्द को बयां करना मुश्किल'

मोहम्मद अजमतुल्ला पावरलिफ्टर भी रहे हैं। एक बार में आसानी से 295 किलोग्राम का वजन उठाने वाले पावरलिफ्टर मोहम्मद अजमतुल्ला कोविड-19 से मरने वालों का पूरे सम्मान से 'अंतिम संस्कार' करने का सामाजिक काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसे शवों का वजन उठाने में होने वाले दर्द को बयां करने के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वाले किसी व्यक्ति के शव को उठाते वक्त जो दर्द मैं महसूस करता हूं, उसे बयां नहीं कर सकता।’


इसलिए करते हैं ये काम।।।

अजमतुल्ला ऊर्फ अजमत वैसे तो एक आईटी फर्म डीएक्ससी में प्रोग्राम मैनेजर हैं और सप्ताह में पांच दिन, सोमवार से शुक्रवार तक नौकरी करते हैं, लेकिन बचे हुए अपने दो दिन (शनिवार, रविवार) को वो ‘मर्सी मिशन’ के साथ मिलकर कोरोना वायरस संक्रमण से मरने वालों का अंतिम संस्कार करते हैं। अजमत ने कहा, ‘मैं लॉकडाउन के दौरान राहत कार्य करने वाले ग्रुप का हिस्सा था, और जब मैंने इस बीमारी से जुलाई में बड़ी संख्या में लोगों को मरते हुए देखा तो मैंने खुद को मर्सी मिशन के साथ जोड़ने का फैसला लिया।’

दिक्कतों के बाद भी मोर्चे पर

इन दिनों हालत ये है कि लोग संक्रमण से मरने वालों के रिश्तेदारों को भी शक की नजर से देख रहे हैं। ऐसे में किसी शव का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करने की जिम्मेदारी उठाना बड़ी बात है। मर्सी मिशन के साथ काम करने वालों की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि अंतिम संस्कार में बहुत वक्त लगता है, अस्पताल से लेकर कब्रिस्तान तक पूरी प्रक्रिया बहुत लंबी है। इतना ही नहीं, स्थानीय लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ता है जिससे और देरी होती है। लेकिन अजमत मोर्चे पर हमेशा डटे रहते हैं।

'कोरोना से किस बात डर'

कोरोना वायरस संक्रमण से बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं, लेकिन अजमत को उनसे डर नहीं लगता है। उनका कहना है, ‘मौत को आना ही है, उसके बारे में ज्यादा सोचना नहीं चाहिए। लेकिन मैं पूरा एहतियात बरतता हूं, क्योंकि मेरा भी परिवार है।

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